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यदुवंशी-कुशवंशी का मेल, क्यों हो रहा फेल, मुकाबला अब 2:1 से बीजेपी के पक्ष में, 2024 के लिहाज से क्या संकेत दे रहा बिहार?

यदुवंशी-कुशवंशी का मेल, क्यों हो रहा फेल, मुकाबला अब 2:1 से बीजेपी के पक्ष में, 2024 के लिहाज से क्या संकेत दे रहा बिहार?

यदुवंशी-कुशवंशी का मेल, क्यों हो रहा फेल, मुकाबला अब 2:1 से बीजेपी के पक्ष में, 2024 के लिहाज से क्या संकेत दे रहा बिहार?

बिहार की राजनीति में तीन प्रमुख राजनीतिक दल ही सबसे ताकतवर माने जाते हैं। इन तीनों में से दो का मिल जाना जीत की गारंटी माना जाता है। बिहार की राजनीति में अकेले दम पर बहुमत पा जाना अब दूर की कौड़ी ही है। पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा वक्त से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार जिनके पास राजनीति की ऐसी घड़ी है जो क्लॉकवाइज और एंटी क्लॉकवाइज दोनों दिशा में चलती है। वो ये भली भांति जानते हैं कि बगैर बैसाखी के चुनाव में उनके लिए दो कदम बढ़ाने भी भारी पड़ेंगे। बैसाखी भी कोई मामूली नहीं बल्कि इतनी मजबूत होनी चाहिये तो साथ में तो पूरी ताकत से डटी ही रहे, विरोधी पक्ष की ताकत पर भी बीस पड़े। अगर वो बीजेपी को बैसाखी बनाते हैं और विरोध में खड़े लालू परिवार पर भारी पड़ते हैं और अगर लालू यादव के साथ मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी की ताकत हवा हवाई कर देते हैं। लेकिन आखिर क्या हुआ नीतीश कुमार को जो पिछले तीन चुनावी प्रदर्शन में बैसाखी के बावजूद भी बीजेपी से 2:1 के अंतर से पिछड़ते नजर आ रहे हैं। जहां अभी तक उपचुनावों को लेकर मान्यता देखी जाती रही है कि वे सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में ही जाती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के उपचुनाव में नतीजे सत्ताधारी कांग्रेस के पक्ष में गए। ओडिशा में नवीन पटनायक का दबदबा कायम दिखा। यूपी की रामपुर सीट बीजेपी की झोली में गई। ये और बात है कि समीकरण अलग होने और मुलायम की मृत्यु की सहानभूति लहर में मैनपुरी की सीट सपा के पाले में चली गई। लेकिन बिहार के कुढ़नी की सीट पर विपक्षी दल बीजेपी के उम्मीदवार ने सत्ताधारी जेडीयू प्रत्याशी को मात दे दी। 

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बिहार के ग्रैंड अलायंस को बड़ा झटका
कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी द्वारा जनता दल (यूनाइटेड) की हार ने बिहार के महागठबंधन (ग्रैंड अलायंस) को झटका देने के अलावा, सत्तारूढ़ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन को कई तरह के कड़े संदेश दिए हैं। जद (यू) के उम्मीदवार मनोज कुमार सिंह उर्फ ​​मनोज कुशवाहा कुरहानी से भाजपा के केदार गुप्ता से 3,632 मतों के अंतर से हार गए। इस प्रकार विपक्षी भाजपा महागठबंधन से सीट छीनने में सफल रही क्योंकि 2020 के चुनावों में राजद के अनिल साहनी ने जीत हासिल की थी। एलटीसी घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद साहनी ने अपनी विधानसभा सदस्यता खो दी थी। केदार गुप्ता ने 2015 के चुनाव में यह सीट जीती थी, जबकि मनोज कुशवाहा इससे पहले दो बार जीत चुके थे।
भाजपा के पक्ष में 2:1 से है मुकाबला 
पिछले महीने गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद महागठबंधन के लिए कुढ़नी की हार दूसरा चुनावी झटका है, हालांकि तब राजद अपनी मोकामा सीट को बरकरार रखने में कामयाब रहा था। इस साल अगस्त में मुख्यमंत्री और जद (यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार के महागठबंधन में वापसी के बाद से बिहार में चुनावी स्कोर अब भाजपा के पक्ष में 2:1 है। भाजपा से नाता तोड़ने के बाद, नीतीश "सात दलों के महागठबंधन की शक्ति" का प्रदर्शन कर रहे हैं। नीतीश कुमार-तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले गठबंधन के दुर्जेय सामाजिक अंकगणित को देखते हुए, यह न केवल कुढ़नी में मनोज कुशवाहा के लिए बल्कि गोपालगंज में महागठबंधन के उम्मीदवार के लिए भी एक सहज चुनाव होना चाहिए था। कागज पर, सत्तारूढ़ खेमे ने राजद के मुस्लिम-यादव समर्थन आधार (ईबीसी और यहां तक ​​कि उच्च जातियों के वर्गों के साथ), भाकपा-माले के अनुसूचित जाति (एससी) के वोटों, भाकपा के छोटे समर्थन समूहों से युक्त, सीपीआई (एम), कांग्रेस के एससी और उच्च जाति के वोटों के अलावा नीतीश का ओबीसी के बीच कोईरी-कुर्मी (लव-कुश) का समर्थन आधार, ईबीसी और एससी (महादलितों) का एक अपराजेय सामाजिक गठबंधन का दावा किया। 
इसके विपरीत भाजपा को कुढ़नी और गोपालगंज उपचुनावों में खराब प्रदर्शन करना चाहिए था। आखिरकार, नीतीश के पाला बदलने के बाद बिहार में एनडीए लगभग निष्क्रिय हो गया, भगवा पार्टी के पास वर्तमान में कोई सहयोगी नहीं है। लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने भले ही चुनावों में भाजपा के लिए प्रचार किया हो, लेकिन उनकी पार्टी, जिसके पास कोई विधायक नहीं है, अभी एनडीए का हिस्सा नहीं है। चिराग के चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस, जो राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख हैं, उन्हें भी राज्य में एक प्रमुख दलित नेता का राजनीतिक कद नहीं माना जाता है। हालांकि कुढ़नी की हार पर नीतीश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, राजद नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी ने संवाददाताओं से कहा: “हम संकीर्ण अंतर से चुनाव हार रहे हैं। हमें इसके कारणों की तलाश करनी होगी।” गोपालगंज सीट पर भी बीजेपी ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी।

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नहीं बैठ रहा कोईरी-कुर्मी और यादव समीकरण?
राजद ने कुढ़नी और गोपालगंज के नुकसान के लिए असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम पर कुछ दोष मढ़ा है। राजद के मुताबिक दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में एआईएमआईएम की मौजूदगी की वजह से महागठबंधन के कुछ मुस्लिम वोटों में कटौती हो गई लेकिन ऐसा लगता है कि लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली पार्टी को जो सबसे ज्यादा परेशान कर रहा है, वह है "कोईरी-कुर्मी और यादव वोटों को एक साथ रखने" की चिंता। राजद में बेचैनी की भावना रही है कि क्या महागठबंधन राजद के समर्थन आधार यादवों और जद (यू) के प्रमुख वोट आधार कुर्मी-कोइरी दोनों को लंबे समय तक अपने साथ ले पाएगा। जद (यू) संसदीय दल के बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कुढ़नी के परिणाम से हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। पहली सीख- "जनता हमारे हिसाब से नहीं बल्कि हमें जनता के हिसाब से चलना पड़ेगा। 
 निर्वाचन क्षेत्रों को मजबूत करने की जरूरत
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हर चुनाव हार का एक संदेश होता है। हमें निश्चित रूप से महागठबंधन दलों, मुख्य रूप से राजद और जद (यू) के प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों को मजबूत करने के पहलू पर गौर करना होगा। परंपरागत रूप से, 1933 में त्रिवेणी संघ (कोइरी, कुर्मी और यादवों का एक समूह) के गठन के बाद से यह संयोजन काम कर रहा है। हमारी एकता ने 1967 में कांग्रेस को खत्म कर दिया और लालू प्रसाद ने भी उन्हें साथ रखा। उन्होंने कहा: “1993 में नीतीश कुमार के जनता दल से बाहर निकलने के बाद इस संयोजन को नुकसान हुआ। लेकिन हमारी ताकत 2015 के चुनावों में प्रदर्शित हुई जब हमने फिर से हाथ मिलाया। अब जब हम पांच साल के अंतराल के बाद फिर से साथ हैं तो हमें कुछ बिन्दुओं पर फिर से विचार करना होगा। किसी भी मामले में, हम इंद्रधनुषी सामाजिक संयोजन सुनिश्चित करने के लिए A से Z राजनीति पर काम कर रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “कुढ़नी की हार (महागठबंधन के लिए) कोई साधारण हार नहीं है। यह जनता के जनादेश का आदतन अपराधी बन चुके नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा, मर्यादा और विश्वसनीयता का नुकसान है। कुढ़नी की हार नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर के ताबूत में आखिरी कील है।
ये हार क्या कहता है?
चाचा-भतीजे की जोड़ी के लिए ये हार कितनी अहम है इसका अंदाजा पीएम मोदी के बयान से समझा जा सकता है। पीएम मोदी ने एक उपचुनाव की जीत को भी एक बड़ी जीत की तरह पेश किया। उन्होंने गुजरात की ऐतिहासिक जीत, हिमाचल में हार जीत के बीच 0.9 फीसदी के वोट शेयर का अंतर और कुढ़नी की विजय का अपने भाषण में एक साथ जिक्र किया। कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार केदार गुप्ता की जीत का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा - 'बिहार में बीजेपी की जीत आने वाले दिनों का संकेत दे रहा है। बात यहां केवल एक उपचुनाव हारने की नहीं है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि सारे समीकरण दुरुस्त होने के बाद भी सत्ताधारी पार्टी का उम्मीदवार कैसे हार जाता है। इसे 2024 के लिए संतोषजनक संकेत तो बिल्कुल भी नहीं समझा जा सकता है। 

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