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Haldwani Protest के स्वरूप ने साबित किया- ‘शाहीन बाग’ संयोग नहीं प्रयोग था जोकि दोहराया जा रहा है

Haldwani Protest के स्वरूप ने साबित किया- ‘शाहीन बाग’ संयोग नहीं प्रयोग था जोकि दोहराया जा रहा है

Haldwani Protest के स्वरूप ने साबित किया- ‘शाहीन बाग’ संयोग नहीं प्रयोग था जोकि दोहराया जा रहा है

अवैध कॉलोनियों से जब भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाती है तो उसे सियासी लोग धार्मिक रंग देने का काम करते हैं। दिल्ली में पिछले साल एमसीडी का बुलडोजर शाहीन बाग समेत कई अन्य इलाकों में पहुँचा तो इस कार्रवाई को एक धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ अभियान करार दिया गया। अब उत्तराखंड चर्चा में है क्योंकि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे की जमीन पर बनी अवैध कॉलोनी से कब्जा हटाने का जो आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिया है उसके खिलाफ सियासत शुरू हो गयी है। एकदम शाहीन बाग के आंदोलन की तर्ज पर महिलाओं और बच्चों को ठंड के मौसम में आगे कर प्रदर्शन करवाया जा रहा है, कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। यहाँ हमें समझना होगा कि सरकारी जमीन सार्वजनिक संपत्ति होती है किसी एक की बपौती नहीं। सरकारी जमीन से कब्जा छुड़वाने के प्रयास को अन्याय का रूप देना गलत है। देश संविधान से चलता है ना कि भावनात्मक या धार्मिक आधार पर। अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है तो नेताओं को बड़बोले बयान देने की बजाय अदालत के आदेश का इंतजार करना चाहिए। वैसे हल्द्वानी में आंदोलन का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है उससे एक बात साबित हो गयी है कि शाहीन बाग कोई संयोग नहीं बल्कि प्रयोग था जोकि अब जगह-जगह दोहराया जा रहा है।

जहां तक हल्द्वानी मामले की बात है तो आपको बता दें कि अवैध कॉलोनी बताये जा रहे बनभूलपुरा के पांच हजार से ज्यादा घरों पर संकट मंडराने लगा है क्योंकि रेलवे ने अपनी जमीन पर कब्जा छुड़ाने के लिए जो याचिका दायर की थी उस पर सुनवाई के बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जमीन खाली कराने के निर्देश दिये हैं। इसके बाद सियासत ऐसी शुरू हो गयी है कि इस पहाड़ी राज्य के नेताओं से लेकर हैदराबाद के ओवैसी तक इस मामले में कूद गये हैं। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुँच चुका है और पांच जनवरी को इस पर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका स्थानीय निवासियों के साथ हल्द्वानी के कांग्रेस विधायक ने दाखिल की है। उनके वकील सलमान खुर्शीद हैं। दूसरी याचिका वकील प्रशांत भूषण ने दाखिल की है। रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका पर प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा सुनवाई करेंगे।

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हम आपको बता दें कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को हल्द्वानी में बनभूलपुरा में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके बनाए गए ढांचों को गिराने के आदेश दिए थे। न्यायालय ने कहा था कि अगर जरूरत पड़े तो जिला प्रशासन अतिक्रमण हटाने के लिए पैरा मिलिट्री फोर्स की मदद ले, फिर भी कोई दिक्कत हो तो बलपूर्वक कार्रवाई की जाए। इसके बाद जगह खाली करने के लिए स्थानीय समाचार पत्रों की मदद से नोटिस दिये गये। जिसके बाद हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के नेतृत्व में क्षेत्र के निवासियों ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। इलाके के लोगों का कहना है कि वे लोग इस क्षेत्र में 70 साल से रह रहे हैं। वहां 20 मस्जिदें, 9 मंदिर, पानी की टंकी, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 1970 में डाली गई एक सीवर लाइन, दो इंटर कॉलेज और एक प्राथमिक विद्यालय है इसलिए यह क्षेत्र अवैध कब्जे वाला नहीं है। इलाके के लोगों का कहना है कि हम प्रधानमंत्री, रेल मंत्री और मुख्यमंत्री से अपील करते हैं कि वे इस तथा-कथित अतिक्रमण को हटाने पर मानवीय पहलू से विचार करें। इलाके के लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर यह रेलवे की जमीन थी तो सरकार ने इसे पट्टे पर कैसे दिया था?

इस मामले में क्षेत्र के कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश ने कहा, ''करीब सौ साल से इस क्षेत्र में लोग बसे हुए हैं। यहां 70 साल पुरानी मस्जिदें और मंदिर हैं। यहां नजूल जमीन, पूर्ण स्वामित्व वाली भूमि और लीजधारक हैं।'' उन्होंने कहा, ''रेलवे जिस 78 एकड़ जमीन को अपना बताता है, उसे खाली करने का विरोध करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से उच्च न्यायालय गये। हम उच्चतम न्यायालय भी गये जहां हमारे वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद मामले की पैरवी कर रहे हैं लेकिन जिस सरकार ने जमीन पर स्कूल एवं अस्पताल बनवाये, उसने अपने नागरिकों की कोई परवाह नहीं की।’’ विधानसभा में हल्द्वानी सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे सुमित हृदयेश ने हाल में प्रदर्शनकारियों के धरने में भी हिस्सा लिया था। हम आपको बता दें कि यह सीट पारंपरिक रूप से वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं उनकी मां इंदिरा हृदयेश जीतती थीं।

जहां तक इस पूरे मामले का सवाल है तो आपको बता दें कि उत्तराखंड उच्च न्यायायल ने हल्द्वानी के इस इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का 20 दिसंबर को आदेश दिया था। न्यायालय ने अतिक्रमणकर्ताओं को वह जगह खाली करने के लिए एक हफ्ते का नोटिस देने का आदेश दिया था। हालांकि बनफूलपुरा के हजारों बाशिंदों ने अतिक्रमण हटाने का यह कहते हुए विरोध किया कि वे बेघर हो जायेंगे और स्कूल जाने वाले उनके बच्चों का भविष्य तबाह हो जाएगा।

इस बीच, कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी अनुरोध किया है कि वे अतिक्रमण हटाने संबंधी इस आदेश पर मानवीय तरीके से विचार करें क्योंकि ऐसा होने पर हजारों लोग बेघर हो जाएंगे। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम एक खुला पत्र लिखते हुए इसे सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपील की है कि कानूनी पक्ष के इतर मानवीय दृष्टिकोण से मामले में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए। हरीश रावत ने अपने पत्र के माध्यम से सवाल भी किया है कि यदि 50 हजार से ज्यादा लोगों को हटाया जाएगा तो ये लोग कहां जाएंगे? हरीश रावत ने कहा है कि अशांति का वातावरण पूरे हल्द्वानी और कुमाऊं के अंचल में फैलेगा जोकि ठीक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि आज भले कुछ लोग चुप हों लेकिन जब स्थितियां बिगड़ेंगी तो वो लोग भी सरकार के विवेक पर उंगली उठाएंगे। हरीश रावत ने पत्र के माध्यम से चेतावनी भी देते हुए कहा है कि जहां तक सवाल हमारे कर्तव्य का है, तो हम केवल इतना भर कर सकते हैं कि जब घर तोड़ने के लिए हथौड़ा उठेगा तो हम उसके आगे बैठ सकते हैं। 

वहीं एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि प्रधानमंत्री को इंसानियत की बुनियाद पर हल्द्वानी के लोगों की मदद करनी चाहिये और उन्हें वहां से नहीं निकालना चाहिए। उन्होंने सवाल किया है कि हल्द्वानी के लोगों के सर से छत छीन लेना कौन-सी इंसानियत है? 

बहरहाल, मामला अब न्यायालय में है इसलिए प्रदर्शनकारियों को भी घरों में बैठना चाहिए और नेताओं को भी जुबान पर काबू रखना चाहिए साथ ही सोशल मीडिया पर तनाव बढ़ाने जैसी पोस्ट करने से भी बचना चाहिए। सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रख कर ही हम देश को आगे बढ़ा सकते हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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