हर दौर में रुपया हर किसी की जरूरत होती है। इसलिए तो दुनिया कहती भी है कि 'बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़ा रुपैया'। जिसके पास रुपया नहीं है वो रोता है, लेकिन आज रुपया खुद रो रहा है। उसकी आवाज में अब वो दम नहीं रह गया और खनक भी कमजोर पड़ती जा रही है। पिछले 100 सालों में रुपये की अहमियत तो बढ़ी लेकिन कीमत गिरती चली गई। डॉलर की ताकत के आगे रुपया कमजोर होता गया। रुपये ने बहुत ठोकरें खाईं लेकिन संभलने का मौका नहीं मिला। एक वक्त ऐसा भी था जब डॉलर रुपये के आगे नजरे नहीं उठा पाता था। लेकिन रुपये के हाल को लेकर एक सवाल जब देश की वित्त मंत्री से पूछा गया तो उनके दिए जवाब ने एक नए बवाल को जन्म दे दिया। वित्त मंत्री अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर गईं थीं। वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब पत्रकारों ने उसके रुपये की नरमी को लेकर सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा कि भारतीय रुपया गिर नहीं रहा, बल्कि डॉलर निरंतर मजबूत हो रहा है। वित्त मंत्री की तरफ से ये बयान सामने आने के बाद विपक्ष की तरफ से इसकी आलोचना की जा रही है। सोशल मीडिया पर भी खिंचाई की जा रही है। हालांकि कई अर्थशास्त्री वित्त मंत्री के बयान से सहमति जता रहे हैं। ऐसे में आईए जानते हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान के मायने क्या हैं? पिछले 22 बरस में कितने की गिरावट रुपये में दर्ज की गई है और भारत के पड़ोसी देशों का क्या हाल है। कुल मिलाकर कहें तो रुपये की कहानी, आंकड़ों की जुबानी।
रुपया क्या था और क्या हो गया
रुपये की गिरती कीमत से पूरा देश परेशान हैं। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में एक बार फिर से गिरावट देखने को मिली है। 14 अक्टूबर को रुपया आठ पैसे टूटकर 82.32 रुपये प्रति डॉलर पहुंच गया। आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत के दौर में रुपया पहली बार 1917 में वजूद में आया। ब्रिटिश शासक जार्ज किंग पंचम की तस्वीर के साथ 1 रुपये का नोट भारत की मुद्रा बना। हल्के पीले रंग के इस नोट के मुकाबले डॉलर बहुत छोटा था। उस दौर में एक डॉलर की कीमत थी साढे सात पैसे। यानी डॉलर रुपये के नीचे था। इस नोट पर पांचवे किंग जार्ज की तस्वीर लगी होती थी। इसके बाद रुपये के गिरने की कहानी शुरू हुई। स्वतंत्र भारत से 30 साल पहले शुरू हुआ रुपया बाजार में काफी चमक रखता था। उसकी कीमत डॉलर और बाकी मुद्राओं से ज्यादा थी। लेकिन धीरे-धीरे डॉलर रुपये के करीब आने लगा। स्वतंत्रत भारत में जिस दिन तिरंगा लहराया गया। उस वक्त बाजार में नया नोट आया। उस वक्त रुपये की सूरत पहली बार बदली। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो छठे जार्ज किंग की तस्वीर वाला नोट अर्थव्यवस्था में आया। आजाद भारत के दौर में डॉलर और रुपया दोनों एक ही मुकाम पर थे। इस वक्त में डॉलर ने रुपये की बराबरी कर ली थी।
रुपया कमजोर नहीं हुआ!
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बयान जब उनसे पत्रकारों ने सवाल किया कि डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि डॉलर मजबूत हो रहा है, रुपया गिर नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि अन्य देशों की करेंसी की तुलना में भारत का रुपया एक बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्री ने कहा कि आरबीआई रुपये को नीचे जाने से रोकने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत है। बता दें कि निर्मला सीतारमण 11 अक्टूबर से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर गईं गईं थीं, जहां उन्होंने ये बयान दिया। चुनौतियों के बावजूद भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। सीतारमण ने कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा, हमें इसे देखना चाहिए कि डॉलर मजबूत हो रहा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सात अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था जो एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है।
2000 से अब तक रुपये का हाल
साल | भारतीय रुपया प्रति डॉलर |
2000 | 44.94 |
2001 | 47.18 |
2002 | 48.61 |
2003 | 46.58 |
2004 | 45.31 |
2005 | 44.10 |
2006 | 45.30 |
2007 | 41.34 |
2008 | 43.50 |
2009 | 48.40 |
2010 | 45.72 |
2011 | 46.67 |
2012 | 53.43 |
2013 | 58.59 |
2014 | 63.33 |
2015 | 64.15 |
2016 | 67.19 |
2017 | 65.12 |
2018 | 69.79 |
2019 | 70.42 |
2020 | 74.10 |
2021 | 73.91 |
2022 | 82.32 |
केवल रुपये नहीं बल्कि विदेशी करेंसी का भी है यही सूरत-ए-हाल
अगस्त के शुरुआती महीने में 1 पाउंड की कीमत 1.22 डॉलर हुआ करती थी। लेकिन सितंबर आते-आते ये गिरकर 1.16 डॉलर प्रति पाउंड हो गई। जबकि 17 अक्टूबर को 1.13 डॉलर प्रति पाउंड हो गई है। यूरो भी दो महीने में 1.03 डॉलर प्रति यूरे सो कमजोर होकर 0.97 डॉलर पर आ गया है। जबकि भारतीय रुपया पाउंड और यूरो के मुकाबले लगातार मजबूत हो रहा है। एक्सपर्ट्स की भी ये राय है कि इस समय भारत की स्थिति बेहतर है और मंदी आने की कोई संभावना नहीं है।
पड़ोसी देशों का क्या है हाल
भारत में एक डॉलर की कीमत अभी 82.32 रुपया है। लेकिन पड़ोसी देशों की हालत और भी अधिक खराब है। पाकिस्तान में एक डॉलर की कीमत 218.14 पाकिस्तानी रुपया है। इसी तरह श्रीलंका में एक डॉलर की कीमत 365.11 श्रीलंकाई रुपये के बराबर है। चीन इस मामले में मजबूत स्थित में है, 7.18 चीनी युआन के बराबर एक यूएस डॉलर है। 131.74 नेपाली और 104.86 बांग्लादेशी रुपए के बराबर एक यूएस डॉलर है। जबकि म्यांमार में एक यूएस डॉलर की कीमत 2,095.81 बर्मी क्यात्सो है।
डॉलर के मजबूत होने की वजह?
डॉलर के लगातार मजबूत होने की वजह से इसका असर दुनिया भर के देशों की मुद्र पर पड़ रहा है। रुबेल से लेकर पाउंड और यूरो की कीमतों में बदलाव देखने को मिला है। जिसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका की तरफ से लगातार अपने नीतिगत फैसलों में उलटफेर करना। फेडरल बैंक की तरफ से 0.75 बेसिस प्वाइंट की टैक्स रेट में बढ़ोतरी। अमेरिकी सरकार का कदम दुनिया भर के इन्वेस्टर को आकर्षित करने लगा। उन्हें लगा कि अमेरिका में पैसा इन्वेस्ट करने से पहले की तुलना में ज्यादा रिटर्न मिलेगा। इसके अलावा इन्वेस्टर्स को करेंसी डॉलर में कंवर्ट भी नहीं करनी पड़ेगी। किसी भी देश की अर्थवस्थता के मजबूत होने के पीछे निवेश के बढ़ने को बड़ी वजह माना जाता है। जिसका सीधा असर देश की करेंसी पर भी देखने को मिलता है। यही वजह है कि अमेरिकी डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है।
डॉलर के मुकाबले अन्य देशों की करेंसी
करेंसी | गिरावट |
लिरा (तुर्कीये) | -28.28% |
येन (जापान) | -20.9% |
पाउंड (यूके) | -18.12% |
यूरो (यूरोपीयन यूनियन) | -14.37% |
रुपया (भारत) | -10.1% |
रुपिया (इंडोनेशिया) | -6.73% |
अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा
यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग के दौरान तेल की खरीद डॉलर में ज्यादा हो रही है। डॉलर की खपत इंटरनेशनल मार्केट में ज्यादा हो रही है। जिसको देखते हुए फेडरल बैंक ने इंटरेस्ट रेट में भी इजाफा किया है। इंटरेस्ट रेट बढ़ने का असर वैल्यू पर भी पड़ता है। फेडरल बैंक के द्वारा बढ़ाए गए रेट की वजह से जहां भी डॉलर से इंपोर्ट-एक्सपोर्ट हो रहा है, वहां की करेंसी में आमूल-चूल बदलाव देखने को मिला है। इंटरनेशनल मार्केट के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट में अमेरिका के इंटरेस्ट रेट को बढ़ाया है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार है उसका 64% अकेले अमेरिकी डॉलर है। दुनिया भर में अधिकतर देश डॉलर में व्यापार करते है। यही वजह है कि अमेरिकी डॉलर को और मजबूत बनाता है। इस समय दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका है। उसके पास 25,350 अरब डॉलर की संपत्ति है।
डॉलर के वर्चस्व ने बढ़ाई मुश्किल
आईएमएफ की पूर्व मुख्य गीता गोपीनाथ और मौजूदा अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवियर गौरिनचास ने अपने ब्लॉग में लिखा कि इंटरनेशनल ट्रेड और फाइनेंस में डॉलर के वर्चस्व की वजह से हाल के दिनों में डॉलर में मजबूती कई देशों पर बड़े पैमाने पर व्यापक आर्थिक प्रभाव डाल सकती है। रुपये में कमजोरी को लेकर भारत की अपनी भी चिंताएं हैं। आयात महंगा होता जा रहा है। इसका असर अर्थव्यवस्था और मांग पर पड़ सकता है।- अभिनय आकाश
Has the rupee not weakened dollar dominance increased difficulty
Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero