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हैदराबाद मुक्ति दिवस या राष्ट्रीय एकता दिवस: 17 सितंबर को लेकर इतनी चर्चा क्यों?

हैदराबाद मुक्ति दिवस या राष्ट्रीय एकता दिवस: 17 सितंबर को लेकर इतनी चर्चा क्यों?

हैदराबाद मुक्ति दिवस या राष्ट्रीय एकता दिवस: 17 सितंबर को लेकर इतनी चर्चा क्यों?

15 अगस्त 1947 को हैदराबाद उन रियासतों में से एक था जिनका भारत में शामिल होना तो दूर वो इस बारे में बातचीत को भी तैयार नहीं थे। निजाम के खास रिजवी दिल्ली में सरदार पटले को तल्ख तेवर दिखा रहे थे और सरदार साहब शौम्यता के साथ उनकी बात सुन रहे थे। अब बारी थी सरदार साहब के बोलने की और उन्होंने अपने अंदाज में ये बता दिया कि हैदराबाद हमेशा हिन्दुस्तान का रियासत रहा है और अब अंग्रेज हिन्दुस्तान छोड़कर चले गए वैसे ही हैदराबाद को अपना निजाम आवाम के हाथ में देना होगा इसी में आपकी और आपके निजाम की भलाई है। चलते-चलते सरदार साहब ने बड़े ही सौम्यता के साथ कहा कि- अपने निजाम को मेरा सलाम कहना। उसके बाद जो कुछ हुआ वो तो इतिहास है। 17 सितंबर 1948 को देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद का देश में विलय कर संपूर्ण भारत का सपना पूरा किया था। अब केंद्र सरकार हैदराबाद के विलय यानी हैदराबाद की निजामशाही से मुक्ति के 75 साल पूरे होने के मौके पर आयोजनों की योजना बनाई है। इसे 'हैदराबाद मुक्ति दिवस' के तौर पर मनाया जाएगा। सूत्रों मुताबिक, ये आयोजन भी अगले एक साल चलेंगे। वैसे तो ये इतिहास की एक अकेली घटना है, लेकिन अलग-अलग राजनीतिक दृष्टिकोण से इस अवसर को चिह्नित करने के लिए समानांतर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 17 सितंबर को केंद्र सरकार द्वारा 'हैदराबाद मुक्ति दिवस' के रूप में मनाया जाएगा और तेलंगाना सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। इन अलग-अलग आयोजनों में  तेलंगाना में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव भी एक अहम फैक्टर है। 17 सितंबर 1948 ही वो दिन है जब आसफ जाही वंश के सातवें वंशज और हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने भारतीय सेना द्वारा हैदराबाद पर ऑपरेशन पोलो को अंजाम देने के बाद आत्मसमर्पण किया था। आमतौर पर यह माना जाता है कि वह दिन हैदराबाद भारतीय संघ का हिस्सा बना था। हकीकत में ऐसा बिल्कुल नहीं है। परिग्रहण 26 जनवरी, 1950 को हुआ था, जब निज़ाम को हैदराबाद राज्य का 'राजप्रमुख' बनाया गया।

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क्या था ऑपरेशन पोलो
13 सितंबर 1948। ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो को अंजाम दिया। ऑपरेशन पोलो उस सैनिक अभियान को कहा जाता है जिसके बाद हैदराबाद और बराड़ की रियासत भारतीय संघ में शामिल हुई। इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हैदराबाद के निज़ाम उस्मान अली ख़ान आसिफ़ जाह सातवें ने देश के बंटवारे के बाद स्वतंत्र रहने का फ़ैसला किया। सरदार पटेल ने गुप्त तरीके से योजना को अंजाम देते हुए भारतीय सेना को हैदराबाद भेज दिया। जब नेहरू और राजगोपालाचारी को भारतीय सेना के हैदराबाद में प्रवेश कर जाने की सूचना दी गई तो वो चिंतित हो गए। पटेल ने घोषणा की कि भारतीय सेना हैदराबाद में घुस चुकी है। इसे रोकने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता। दरअसल नेहरू की चिंता ये थी कि कहीं पाकिस्तान कोई जवाबी कार्रवाई न कर बैठे। भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे। भारतीय सेना की कार्रवाई हैदराबाद में पांच दिनों तक चली, इसमें 1373 रज़ाकार मारे गए। हैदराबाद स्टेट के 807 जवान भी मारे गए। भारतीय सेना ने 66 जवान खोए जबकि 96 जवान घायल हुए। सरदार पटेल ने दुनिया को बताया कि ये ‘पुलिस एक्शन’ था। 
ऑपरेशन पोलो के हताहतों के आंकड़े क्या थे?
भारतीय सेना की ओर से मरने वालों की संख्या 42 थी, 97 घायल हुए और 24 लापता थे। हैदराबाद सेना में 490 मारे गए और 122 घायल हुए। इसके अलावा, 2,727 रजाकार मारे गए, जबकि 102 घायल हुए और 3,364 को पकड़ लिया गया। अप्रतिरोध्य अग्रिम, धर्म या पंथ की परवाह किए बिना नागरिक आबादी के प्रति भारतीय बलों के अनुकरणीय व्यवहार से जुड़कर, गुरिल्ला प्रतिरोध को शुरुआत में ही समाप्त कर दिया और ग्रामीण इलाकों में लंबे समय तक प्रतिरोध को रोका।
ऑपरेशन पोलो का अंत कैसे हुआ?
एक महीने बाद 18 अक्टूबर 1948 को मेजर जनरल जे.एन. चौधरी को हैदराबाद राज्य का सैन्य गवर्नर नियुक्त किया गया था। यद्यपि वह सशस्त्र बलों और पुलिस के प्रभारी थे। एक बात गौर करने वाली है कि हैदराबाद राज्य में मार्शल लॉ कभी लागू नहीं किया गया था।
भारतीय संघ में पूर्ण रूप से शामिल करने के उपायों पर निर्णय
उस वर्ष 29-30 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल, वीपी मेनन, राज्यों के मंत्रालय, भारत सरकार में राजनीतिक सलाहकार और मेजर जनरल चौधरी ने मुंबई में मुलाकात की और हैदराबाद में लोकतांत्रिक और लोकप्रिय संस्थानों को जल्दी से स्थापित करने और राज्य को भारतीय संघ में पूर्ण रूप से शामिल करने के उपायों पर निर्णय लिया। हालांकि निजाम ने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, लेकिन उनके द्वारा भारतीय संविधान की स्वीकृति को विलय के समान माना जाता था, और इस तरह हैदराबाद भारतीय संघ के साथ एकीकृत हो गया।

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क्या ऑपरेशन पोलो टाला जा सकता था?
पुरालेखपाल और इतिहासकार मोहम्मद सफीउल्लाह का कहना है कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हो गई। इसके अलावा मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता बहादुर यार जंग का भी कत्ल हो गया था। अगर ये दोनों जीवित होते तो  हैदराबाद राज्य का भारतीय संघ का हिस्सा बनने की राह आसान होती। जबकि अन्य विश्लेषकों का मानना है कि जंग की मौत के बाद मजलिस के भीतर तेजी से स्थिति बदलने लगी। गुटीय प्रतिद्वंद्विता ने अंततः जून 1946 में  कासिम रज़वी को मामलों के शीर्ष पर ला दिया। उन्होंने केंद्र सरकार पर दबाव बनाने और घरेलू हिंदू अशांति को दबाने के लिए रजाकारों को मजलिस के अर्धसैनिक विंग में पुनर्गठित करने का फैसला किया। वी.पी. मेनन ने इसे 'शॉक ब्रिगेड' के रूप में वर्णित किया और रज़वी को एक और रासपुतिन के रूप में जाना जाने लगा।
बीजेपी 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस के रूप में क्यों मना रही है?
पार्टी का कहना है कि यह दिन तत्कालीन हैदराबाद राज्य के भारतीय संघ में विलय का प्रतीक है। उस दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सिकंदराबाद के आर्मी परेड ग्राउंड में एक विशेष कार्यक्रम को संबोधित करने वाले हैं. कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों (जिनके राज्यों में हैदराबाद राज्य से प्राप्त हिस्से शामिल हैं) को निमंत्रण भेजा गया है। भाजपा का कहना है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक 17 सितंबर को क्रमशः मराठवाड़ा मुक्ति दिवस और हैदराबाद-कर्नाटक मुक्ति दिवस के रूप में मना रहे हैं। केंद्र सरकार ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) को भी कार्यक्रम में आमंत्रित किया है। सके अलावा, भाजपा का दावा है कि तेलंगाना ने राज्य के गठन के बाद से आधिकारिक तौर पर इस अवसर का पालन नहीं किया है क्योंकि केसीआर असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से डरते थे। बीजेपी का कहना है कि इसकी वजह एआईएमआईएम के संस्थापक निजाम के दिनों के रजाकार से कथित तौर पर जुड़े थे।

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तेलंगाना सरकार इसे राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में क्यों मना रही है?
टीआरएस उस दिन को हैदराबाद लिबरेशन डे कहे जाने से इत्तेफाक रखते हैं और इसे इसे भगवा शब्दावली का हिस्सा बताते हैं। इसके अलावा, हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने भी केसीआर को 'ब्रिटिश उपनिवेशवाद और निजाम के सामंती शासन के खिलाफ लोगों के संघर्ष' को चिह्नित करने के लिए इस दिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा था। टीआरएस सरकार जहां सार्वजनिक उद्यानों में एक जनसभा आयोजित कर रही है, जहां मुख्यमंत्री 17 सितंबर को राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे, वहीं एआईएमआईएम 16 सितंबर को मोटरसाइकिलों की तिरंगा रैली निकालेगी और उसके बाद एक जनसभा होगी। 18 सितंबर को सभी जिला मुख्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। भाजपा का कहना है कि 17 सितंबर को राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित करना एआईएमआईएम का तुष्टिकरण है।
अन्य पार्टियां क्या योजना बना रही हैं?
एक और नाम की पेशकश करते हुए कांग्रेस तेलंगाना विलीना दिनम (विलय दिवस) वज्रोस्तवुलु के साल भर चलने वाले समारोह की योजना बना रही है। तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ए रेवंत रेड्डी ने पिछले आठ वर्षों में आधिकारिक तौर पर जश्न नहीं मनाने और खामोश रहने के लिए केसीआर को दोषी ठहराया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने पटना उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी के साथ मानद अध्यक्ष के रूप में एक समिति का गठन किया है।- अभिनय आकाश

Hyderabad liberation day or national unity day on september 17

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