बहुत नाइंसाफी है! 79% जनरल कैटेगरी वाले जज, जेलों में बंद 66 प्रतिशत कैदियों में SC/ST और ओबीसी, जानें भारत में क्यों है जेल सुधार की दरकार
एयर इंडिया की फ्लाइट के बिजनेस क्लास सेक्शन में एक बुजुर्ग महिला यात्री पर पेशाब करने के घृणित कृत्य के बाद "द यूरिनेटर" के रूप में फेमस हुए बेंगलुरु के शंकर मिश्रा अब दिल्ली की जेल में बंद है। जेल अधिकारियों के लिए ये उन कुछ अवसरों में से एक है जब एक उच्च जाति का व्यक्ति एक कैदी के रूप में जेल में आया हो। आंकड़ों के आधार पर जाएं तो फौरी तौर पर आपको लग सकता है कि आपराधिक न्याय प्रणाली स्वाभाविक रूप से वंचित वर्गों के प्रति पक्षपाती है। सलाखों के पीछे मौजूद लोगों का डेटा आपको सोचने पर मजबूर कर सकता है। देशभर की जेलों में बंद कैदियों में एससी 20.9 फीसदी, एसटी 11.24 फीसदी, ओबीसी 35.06 फीसदी, मुस्लिम करीब 20 फीसदी, ईसाई करीब 2.47 फीसदी, सिख करीब 3.24 फीसदी हैं। भारतीय जेलके कैदियों से संबंधित ये उपलब्ध आंकड़ों में ऊंची जातियों से संबंधित आपराधिक मामले बेहद ही कम हैं। ये व्यावहारिक आंकड़ें किसी भी समझदार समाज को अपने आप में सोचने के लिए मजबूर कर दे। लेकिन इससे इतर भारत में कारण खोजने के बजाय, हम एक समाधान लेकर आए हैं- जेलों की संख्या बढ़ायों, इन आंकड़ों को और बड़ा बनाओ।
और जेल बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर विनय कुमार सक्सेना ने हाल ही में दिल्ली विकास प्राधिकरण से राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके में एक नया जेल परिसर बनाने के लिए 1.6 लाख वर्ग मीटर भूमि आवंटित करने के लिए कहा था। लेकिन उन्होंने कभी शायद राज निवास से कुछ किलोमीटर दूरी पर ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवंबर 2022 में आयोजित संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बोलते नहीं सुना होगा। जब उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा यहां संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि 'मैं इन दिनों सुनता हूं कि हमें नई जेलें बनानी होंगी क्योंकि जेलें क्षमता से अधिक हैं। अगर एक समाज के तौर पर हम तरक्की की ओर बढ़ रहे हैं तो हमें नई जेलों की क्या जरूरत है? हमें उनकी संख्या कम करने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने सटीकता के साथ इस तथ्य को रेखांकित किया कि इस देश में गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए न्याय का पहिया मुश्किल से ही चलता है।
गरीब कैदियों के बारे में बताते हुए भावुक हुईं राष्ट्रपति
राष्ट्रपति ने भावुक अंदाज में सवाल भी उठाए कि क्यों भारत की जेलें वंचित वर्गों के लोगों से भरी हैं। उन्होंने कहा कि एक बड़ा हिस्सा मामूली अपराधों के लिए कैद है, लेकिन वे जेलों में सड़ रहे हैं क्योंकि उनके परिवार जमानत बांड या मुकदमेबाजी का खर्च वहन नहीं कर सकते। उनके लिए सोचिए। उनको न तो अपने अधिकार पता हैं, न ही संविधान की प्रस्तावना, न ही मौलिक अधिकार या मौलिक कर्तव्य। उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा है। उनके घर वालों में उन्हें छुड़ाने की हिम्मत नहीं रहती, क्योंकि मुकदमा लड़ने में ही उनके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं।
5 सालों में नियुक्त हुए 79% जज उच्च जातियों
आपने भारतीय जेलों में बंद कैदियों के प्रतिशत के बारे में तो जान लिया। अब आपको एक औऱ दिलचस्प आंकड़े से रबरू करवाते हैं। कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति को केंद्र सरकार द्वारा दी गई जानकारी न्यायपालिका में सामाजिक विविधता का संकेत देती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2018-2022 की अवधि के दौरान उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्त में से 79% उच्च जाति (सामान्य श्रेणी) से हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से निम्नलिखित आंकड़े सामने आए हैं। 2018 से 19 दिसंबर 2022 तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में 537 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई। जिनमें 79 प्रतिशत सामान्य श्रेणी से, 11 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग से, 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक से, 2.8 प्रतिशत अनुसूचित जाति से और 1.3 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति से आते हैं।
जमानत कानून लाने पर विचार करे केंद्र
सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2022 में कहा थाकि किसी कैदी को निरंतर हिरासत में रखने के बाद आखिरकार बरी करना ‘गंभीर अन्याय’ है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि उसे जमानत के मामलों को सरल बनाने के लिए अलग जमानत कानून बनाने पर विचार करना चाहिए। सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई (2022), सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "ज्यादातर (अंडरट्रायल कैदियों) को एक संज्ञेय अपराध के पंजीकरण के बावजूद गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है, जिन पर सात साल या उससे कम की सजा का आरोप है। वे न केवल गरीब और अशिक्षित हैं बल्कि उनमें महिलाएं भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 88, 170, 204 और 209 के तहत आवेदन पर विचार करते समय एक अलग जमानत आवेदन पर जोर देने की जरूरत नहीं है।
77% कैदी विचाराधीन
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स ऑफ़ इंडिया 2021 रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि 77 प्रतिशत से अधिक जेल के कैदी विचाराधीन हैं और हर साल यह संख्या बढ़ जाती है। भारतीय जेलों में विचाराधीन कैदियों ने 2020 में 3.72 लाख से 2021 में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जो 2021 में 4.27 लाख हो गई। कैदी की आबादी का 25 प्रतिशत निरक्षर है। कैदियों की आर्थिक स्थिति पर डेटा के अभाव में पिछड़ेपन और भेद्यता की डिग्री को मापने के लिए शिक्षा स्तर और सामाजिक पृष्ठभूमि का उपयोग किया जा सकता है।
हिरासत के तीन सिद्धांत
सुप्रीम कोर्ट ने कारावास और हिरासत के संबंध में तीन व्यापक सिद्धांतों को रेखांकित किया है। पहला, जेल में बंद व्यक्ति गैर-व्यक्ति नहीं बन जाता। दूसरा, जेल में बंद व्यक्ति कारावास की सीमाओं के भीतर सभी मानवाधिकारों का हकदार है। तीसरा, क़ैद की प्रक्रिया में पहले से निहित पीड़ा को बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। सीआरपीसी की धारा 436ए में कहा गया है कि एक व्यक्ति को कथित अपराध के लिए कैद की अधिकतम अवधि के आधे से अधिक समय के लिए हिरासत में रखा गया है, सिवाय इसके कि जहां मौत की सजा को सजा में से एक के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया है, वह रिहा होने का हकदार है। ज़मानत पर या ज़मानत के बिना। हुसैन और अन्य में। वी/एस यूनियन ऑफ इंडिया (2017), शीर्ष अदालत ने जमानत के सिद्धांत के साथ जमानत आवेदनों के शीघ्र निपटान का आदेश दिया था और जेल अपवाद था। - अभिनय आकाश
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