तमाम परेशानियां झेलते हुए राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे थे केआर नारायण
कोचेरिल रमन नारायणन (केआर नारायणन) का नाम देश के इतिहास में देश के पहले दलित राष्ट्रपति के तौर पर दर्ज है। केआर नारायणन का जन्म केरल के उझावूर गांव में 27 अक्तूबर को 1920 को हुआ था। केआर नारायणन बेहद गरीब परिवार से आते थे, जहां रोजमर्रा का खर्च चलना भी मुश्किल था। उनके परिवार में कुल सात भाई बहनों में वो चौथे नंबर पर थे। उनके परिवार का मुख्य काम नाव बनाना, मछली पालन और समुद्री व्यापार करना था।
आर्थिक परेशानियां झेलने के कारण उनके पास पढ़ाई लिखाई के साधन नहीं थे। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में अपनी शिक्षा पूरी की। स्कूल जाने के लिए खेतों के रास्ते से होते हुए वो 15 किलोमीटर का सफर तय करते थे। स्कूल में पढ़ाई करने के लिए वो अन्य छात्रों से किताबों को उधार लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करते थे। शिक्षा हासिल करने में तमाम परेशानियां झेलने के बाद भी उन्होंने आगे चलकर भारतीय विदेश सेवा में काम किया। इसके बाद वो भारत के उपराष्ट्रपति और देश के पहले दलित राष्ट्रपति भी बने।
इंग्लिश लिट्रेचर में किया टॉप
पढ़ाई में उनकी रुचि को देखते हुए त्रावणकोर शाही परिवार ने उन्हें स्कॉलरशिप प्रदान की थी। इसके बाद त्रावणकोर यूनिवर्सिटी से उन्होंने बीए आनर्स की परीक्षा पास की। इसके बाद इंग्लिश लिट्रेचर में एमए कोर्स किया। इंग्लिश लिट्रेचर करते हुए उन्होंने यूनिवर्सिटी में भी टॉप किया। इतना ही नहीं केआर नारायणन पहले दलित छात्र बने जिन्होंने यूनिवर्सिटी से फर्स्ट क्लास मार्क्स के साथ मास्टर्स डिग्री हासिल की थी।
ऐसा रहा उनका करियर
केआर नारायणन ने 1944-45 के दौरान पत्रकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने द हिंदू और द टाइम्स ऑफ इंडिया में काम किया। उन्होंने वर्ष 1945 में महात्मा गांधी का इंटरव्यू भी लिया। उनकी इच्छा थी कि जीवन में एक बार विदेश में जाकर भी पढ़ाई करें, मगर इसके लिए उनकी आर्थिक स्थिति इजाजत नहीं देती थी। ऐसे में उन्होंने जेआरडी टाटा से चिट्ठी लिखकर मदद मांगी और फिर वो राजनीति विज्ञान की पढ़ाई करने विदेश गए। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एडमिशन लिया था। विदेश में पढ़ने के बाद वो वर्ष 1948 में स्वदेश लौटे और वापसी के बाद उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू से हुई। नेहरू की मदद से केआर नारायणन को आईएफएस की नौकरी मिली। इसके बाद उनका तबादला बर्मा किया गया। वो वर्ष 1978 तक आईएफएस के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद उन्हें वर्ष 1979-80 तक के लिए दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का उपकुलपति नियुक्त किया गया। उन्हें इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान वर्ष 1980-84 तक अमेरिका में भारतीय राजदूत नियुक्त किया गया।
प्रशासनिक सेवा के बाद शुरू की राजनीतिक पारी
वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर केआर नारायणन ने राजनीतिक पारी की शुरुआत की। केरल के ओट्टापलल से उन्होंने तीन बार लोकसभा चुनाव जीता। वर्ष 1985 में राजीव गांधी सरकार के मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी गई। इसके बाद वर्ष 1992 में केआर नारायण को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के कार्यकाल के दौरान सरकार ने उपराष्ट्रपति नियुक्त किया। इसके बाद वर्ष 1997 में 17 जुलाई को वो राष्ट्रपति बनाए गए। वर्ष 2002 तक वो देश के पहले दलित राष्ट्रपति बने रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने दलित, अल्पसंख्यकों, गरीबों के लिए काम किया।
वर्ष 2005 में हुआ निधन
केआर नारायणन का निधन नौ नवंबर को 2005 में हुआ था। नई दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में निमोनिया की बीमारी के कारण उनकी मौत हुई थी।
जवाहरलाल नेहरू ने की खास मदद
जानकारों के मुताबिक केआर नारायणन की शादी को लेकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खास मदद की थी। दरअसल जब म्यांमार के रंगून में आईएफएस के पद पर तैनाती के दौरान नारायणन की मुलाकात मा टिन टिन से हुई थी। मगर उनकी शादी के बीच एक नियम आड़े आ रहा था जिसके मुताबिक भारतीय राजदूत विदेशी महिला से शादी नहीं कर सकता था। ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से खास परमिशन ली और बर्मा की नागरिक से शादी की। शादी के बाद टिन टिन का नाम उषा नारायणन हो गया था।
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