Delhi LG VS CM Kejriwal: दिल्ली में हंगामा है क्यों बरपा, किसको कितनी पावर, समझें कानूनी और सियासी पहलू
दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारों को लेकर एलजी और सीएम के बीच तीखी बहस चल रही है। लगातार बढ़ रही तल्खी अब पत्राचार की भाषा में भी साफ झलकने लगी है। दोनों एक-दूसरे पर तंज कसने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। दिल्ली के एलजी विनय कुमार सक्सेना ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखा तो उसकी शुरुआत ही तंज के साथ की। उन्होंने लिखा कि पिछले कुछ दिनों में मुझे आपके कई पत्र प्राप्त हुए। मैं आपकी प्रशंसा करना चाहता हूं कि आपने शहर के प्रशासन को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। अक्टूबर तक हम नियमित रूप से मिल रहे थे। उसके बाद राज्यों के विधानसभा चुनाव और एमसीडी चुनाव में व्यस्तता के कारण आपने मिलने में असमर्थता व्यक्त की थी। अब बैठकें फिर से शुरू की जाएं। सीएम केजरीवाल ने जवाबी चिट्ठी में लिखा, आपने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि चुनाव अभियानों के बाद मैंने शहर में प्रशासन को 'गंभीरता' से लेना शुरू कर दिया है। आप का राष्ट्रीय संयोजक होने के नाते मुझे चुनाव प्रचार के लिए जाना पड़ता है। वैसे ही जैसे पीएम, गृह मंत्री और आदित्यनाथ प्रचार के लिए जाते हैं।
एलजी ने किया बैठक के लिए आमंत्रित
एलजी ने लिखा कि में प्रशासन को नियंत्रित करने वाले प्रावधानों की सुप्रीम कोर्ट भी कई बार व्याख्या कर चुका विधानसभा है। इसके अलावा संविधान सभा, राज्य पुनर्गठन आयोग और संसद में भी इस पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ है। उसके बाद ही ये प्रावधान बनाए गए हैं, जो अपने आप में बहुत स्पष्ट हैं। इसे और स्पष्ट करने के लिए एलजी ने सीएम को मीटिंग के लिए आमंत्रित करते हुए लिखा कि इस मीटिंग में हम इन मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।
केजरीवाल का खत
सीएम ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार से चर्चा किए बिना एलजी की ओर से एमसीडी में 10 मनोनीत पार्षदों को नियुक्त करने, मेयर चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी का चयन करने, सरकार से सलाह किए बिना हज कमिटी का गठन करने और अधिकारियों को सीधे आदेश देकर अधिसूचनाएं जारी कराने का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली जनता ने भी इसकी कड़ी आलोचना की है। सीएम ने एलजी से कहा कि आपने अपने इन कामों को यह कहते हुए सही ठहराया कि सभी अधिनियमों और प्रावधानों में लिखा है कि 'प्रशासक/ उप-राज्यपाल नियुक्तियां करेंगे।' एक्ट में सरकार को 'प्रशासक/ उपराज्यपाल' के रूप में ही परिभाषित किया है और आपको एक नॉमिनी के रूप में काम करने की पावर दी है। मैंने तभी आपको पत्र लिखकर इस पर अपना पक्ष सार्वजनिक करने का आग्रह किया था।
10 मनोनीत पार्षद का विवाद क्या है?
एमसीडी में 10 मनोनीत पार्षदों को नियुक्त करने का अधिकार किसका है? इसे लेकर दिल्ली के उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दोनों ही अपने- अपने पक्ष में दावे कर रहे हैं। एलजी ऑफिस की तरफ से जारी एक वयान में डीएमसी एक्ट के तहत दी गई शक्तियों का हवाला हुए कहा गया कि दिल्ली के 'एडमिनिस्ट्रेटर' को 10 लोगों को नगर निगम में पार्षद मनोनीत करने का अधिकार है। दिल्ली के संदर्भ में 'एडमिनिस्ट्रेटर' का मतलव उप-राज्यपाल से है। ऐसे में एलजी ने कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के तहत 10 पार्षदों को एमसीडी में हंगामे के दौरान पीठासीन अधिक मनोनीत करने का पूरा अधिकार है और उसी के तहत उन्होंने 10 लोगों की नियुक्ति का अधिकार दिया है।
क्या टाला जा सकता था विवाद
दिल्ली से जुड़े कानूनों और प्रक्रियाओं के जानकारों का कहना है कि नियमों की जानकारी लेकर, उनका सही तरीके से पालन करके और थोड़ी सी समझदारी दिखाकर इस विवाद को टाला जा सकता था। डीएमसी एक्ट के अनुसार, मनोनीत पार्षदों को मेयर, डिप्टी मेयर या स्टैंडिंग कमिटी के चुनाव में वोटिंग अधिकार नहीं है। केवल जोनल इलेक्शन में मतदान कर सकते हैं। अगर उन्हें ये अधिकार देना भी है, तो एक्ट में संशोधन करना पड़ेगा। केवल आदेश जारी करके ऐसा नहीं किया जा सकता। पीठासीन अधिकारी के पास कुछ अधिकार होते हैं। लेकिन वे भी एक्ट के दायरे से बाहर जाकर मनोनीत पार्षदों को वोटिंग का अधिकार नही दे सकते हैं। जहां तक पार्षदों को मनोनीत करने का सवाल है, तो जानकारों का कहना है कि नए डीएमसी एक्ट के तहत इसका अधिकार दिल्ली के एडमिनिस्ट्रेटर होने के नाते उपराज्यपाल को है।
दिल्ली सरकार अर्बन डेवलपमेंट के जरिए भेजती है नाम
पिछले कई दशकों से इन 10 सदस्यों को दिल्ली की चुनी हुई सरकार द्वारा ही मनोनीत किया जाता रहा है। पिछले उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने भी इसी परंपरा का पालन किया था, लेकिन इस वार एलजी ने अपनी मर्जी से 10 नाम तय करके अधिसूचना जारी करवा दी। इसके अलावा संविधान का अनुच्छेद 243 (आर) साफतौर से मनोनीत सदस्यों को सदन में मतदान करने से रोकता है। ऐसे में उन्हें सदन में वोट दिलाने की कोशिश करना भी पूरी तरह असंवैधानिक है । इसी तरह सबसे वरिष्ठ पार्षद को पीठासीन अधिकारी नामित करने का अधिकार भी दिल्ली की निर्वाचित सरकार का है, लेकिन इसे भी दरकिनार किया गया। 2007 से खिलाफ है। ज पहले एल्डरमैन का प्रावधान था, जिन्हें की नियुक्ति क आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए एक पूर्व सचिव चुना जाता था। 2007 से पार्षदों को मनोनीत करने का प्रावधान आया। इसके लिए दिल्ली सरकार अर्बन डेवलपमेंट के जरिए नाम भेजती है, जिसे एलजी ही अंतिम मंजूरी देती है। अभी तक यही प्रक्रिया चली आ रही थी। लेकिन इस बार एलजी ने खुद ही 10 लोगों को मनोनीत कर दिया इसलिए विवाद हो रहा है। एलजी के पास इसका अधिकार तो है, बर्शते उन्होंने खुद ही नाम तय किए हों। -अभिनय आकाश
Lg vs cm kejriwal why there is uproar in delhi legal and political aspects