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शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं भगवान विश्वकर्मा

शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं भगवान विश्वकर्मा

शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं भगवान विश्वकर्मा

विश्वकर्मा पूजा एक ऐसा त्योहार है जहां शिल्पकार, कारीगर, श्रमिक भगवान विश्वकर्मा का त्योहार मनाते हैं। कहा जाता है कि हिंदू भगवान ब्रह्मा के पुत्र विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया था। विश्वकर्मा को देवताओं के महलों का वास्तुकार भी कहा जाता है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। विश्वकर्मा दो शब्दों से विश्व (संसार या ब्रह्मांड) और कर्म (निर्माता) से मिलकर बना है। इसलिए विश्वकर्मा शब्द का अर्थ है। दुनिया का निर्माता यानि की दुनिया का निर्माण करने वाला। 

विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं। जिन्होने विश्व के प्राचीनतम तकनीकी ग्रंथों की रचना की थी। इन ग्रंथों में न केवल भवन वास्तु विद्या, रथ आदि वाहनों के निर्माण बल्कि विभिन्न रत्नों के प्रभाव व उपयोग आदि का भी विवरण है। माना जाता है कि उन्होनें ही देवताओं के विमानों की रचना की थी। भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति ऋग्वेद में हुई है। जिसमें उन्हें ब्रह्मांड (पृथ्वी और स्वर्ग) के निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान विष्णु और शिव लिंगम की नाभि से उत्पन्न भगवान ब्रह्मा की अवधारणाएं विश्वकर्मण सूक्त पर आधारित हैं। 

धर्मग्रंथों में विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वंशज माना गया है। ब्रह्माजी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे। जिन्हें शिल्प शास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए विश्वकर्मा भी वास्तुकला के महान आचार्य बने। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ इनके पुत्र हैं। इन पांचों पुत्रों को वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में विशेषज्ञ माना जाता है। 

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विश्वकर्मा प्रकाश को वास्तु तंत्र का अपूर्व ग्रंथ माना जाता है। इसमें अनुपम वास्तु विद्या को गणितीय सूत्रों के आधार पर प्रमाणित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाए भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वाकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं। वज्र का निर्माण भी उन्होने ही किया था। 

पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक स्वर्गलोक की इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, असुरराज रावण की स्वर्ण नगरी लंका, भगवान श्रीकृष्ण की समुद्र नगरी द्वारिका और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही जाता है। पौराणिक कथाओं में इन उत्कृष्ट नगरियों के निर्माण के रोचक विवरण मिलते हैं। उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर तो विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हे शिल्पावतार के रूप में सम्मानित किया था।
 
माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। इसके पीछे कहानी है कि शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को कहा तो विश्वकर्मा ने सोने का महल  बना दिया। इस महल के पूजन के दौरान भगवान शिव ने राजा रावण को आंमत्रित किया। रावण महल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और जब भगवान शिव ने उससे दक्षिणा में कुछ देने को कहा तथा उसने महल ही मांग लिया। भगवान शिव ने उसे महल दे दिया और वापस पर्वतों पर चले गए। 

भगवान विश्वकर्मा ने भव्य और सुरक्षित महलों के साथ देवताओं के उड़ने वाले रथों का निर्माण भी किया था। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने वज्र का निर्माण किया था। जो भगवान इंद्र का हथियार है। वज्र को ऋषि दधीचि और अज्ञेयस्त्र की हड्डियों से बनाया गया है। भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र उनकी शक्तिशाली रचनाओं में से एक था।

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विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में सर्वमान्य हैं। इनको गृहस्थ आश्रम के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक भी कहा गया है। अपने विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान के कारण देव शिल्पी विश्वकर्मा मानव समुदाय ही नहीं वरन देवगणों द्वारा भी पूजित हैं। देवता, नर, असुर, यक्ष और गंधर्व सभी में उनके प्रति सम्मान का भाव है। इनकी गणना सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवों में होती है। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा के पूजन- अर्चन किये बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं माना जाता। इसी कारण विभिन्न कार्यो में प्रयुक्त होने वाले औजारों, कल-कारखानों और विभिन्न उद्योगों में लगी मशीनों का पूजन विश्वकर्मा जयंती पर किया जाता है। 

इसी प्रकार विश्व कर्मा की एक कहानी और है कि महाभारत में पांडव जहां रहते थे उस स्थान को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। इसका निर्माण भी विश्ववकर्मा ने किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वणकर्मा ने ही किया था। सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलयुग के हस्तिनापुर आदि के रचयिता विश्वकर्मा जी की पूजा अत्यन्त शुभकारी है। सृष्टि के प्रथम सूत्रधार, शिल्पकार और विश्व के पहले तकनीकी ग्रन्थ के रचयिता भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं की रक्षा के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था। 
 
विष्णु को चक्र, शिव को त्रिशूल, इंद्र को वज्र, हनुमान को गदा और कुबेर को पुष्पक विमान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किये थे। सीता स्वयंवर में जिस धनुष को श्रीराम ने तोड़ा था वह भी विश्वकर्मा के हाथों बना था। जिस रथ पर निर्भर रह कर श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन संसार को भस्म करने की शक्ति रखते थे उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। पार्वती के विवाह के लिए जो मण्डप और वेदी बनाई गई थी वह भी विश्वकर्मा ने ही तैयार की थी। 

विश्वकर्मा के यथाविधि पूजन और उनके बताये वास्तुशास्त्र के नियमों का अनुपालन कर बनवाये गये मकान और दुकान शुभ फल देने वाले माने जाते हैं। इनमें कोई वास्तु दोष नहीं माना जाता। मान्यता है कि ऐसे भवनों में रहने वाला सुखी और सम्पन्न रहता है और ऐसी दुकानों में कारोबार फलता-फूलता है। विश्वकर्मा पूजन भगवान विश्वकर्मा को समर्पित एक दिन है। हर वर्ष 17 सितम्बर को विश्वकर्मा जयंती मनायी जाती है। यह कन्या संक्रांति पर पड़ता है। यह वह दिन है जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन का औद्योगिक जगत और भारतीय कलाकारों, मजदूरो, इंजीनियर्स आदि के लिए खास महत्व है। विश्वकर्मा जयन्ती भारत के जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरयाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में मनायी जाती है। नेपाल में भी विश्वकर्मा पूजा को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

औद्योगिक श्रमिकों द्धारा इस दिन बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए प्रार्थना की जाती हैं। विश्वकर्मा जयन्ती के दिन देश के कई हिस्सों में काम बंद रखा जाता है और खूब पंतगबाजी की जाती है। विभिन्न प्रदेशों की सरकार विश्वकर्मा जयन्ती पर अपने कर्मचारियों को सावेतनिक अवकाश प्रदान करती है। 

यह त्योहार मुख्य रूप से दुकानों, कारखानों और उद्योगों द्वारा मनाया जाता है। इस अवसर पर, कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिक अपने औजारों की पूजा करते हैं और भगवान विश्वकर्मा से उनकी आजीविका सुरक्षित रखने के लिए प्रार्थना करते हैं। वे मशीनों के सुचारू संचालन के लिए प्रार्थना करते हैं और विश्वकर्मा पूजा के दिन अपने उपकरणों का उपयोग करने से परहेज करते हैं।

रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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