खजाने पर भारी लोक-लुभावन राजनीति! नई पेंशन योजना कई राज्यों में क्यों बनता जा रहा है बड़ा राजनीतिक मुद्दा?
आज बात कुछ पुरानी करेंगे जिसे सियासत ने फिर से नया कर दिया है। भारत की पुरानी पेंशन व्यवस्था 2004 में खत्म कर दी गई थी। लेकिन 2024 के लिए फिर से इसे जिंदा किया जा रहा है। वैसे तो ये मांग बहुत पुरानी है और विरोध बहुत पुराना है। लेकिन अब इसी मांग को विपक्ष अपनी जीत का आधार बना रहा है। योजना आयोग के पूर्व प्रमुख मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने 6 जनवरी को पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) में वापस आने के कुछ राज्यों के फैसले का जवाब देते हुए कहा, "मैं निश्चित रूप से इस विचार को साझा करता हूं कि यह कदम बेतुका और वित्तीय दिवालियापन की ओर बढ़ाया गया कदम है। अहलूवालिया भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे जब 2004 में कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार ने एक नई पेंशन योजना लाई थी। दिलचस्प बात यह है कि ओपीएस में वापस जाने वाले दो राज्यों छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं। साथ ही, ऐसा करने वाला तीसरा राज्य झारखंड है, जहां सबसे पुरानी पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश, जहां दिसंबर में कांग्रेस को एक दुर्लभ चुनावी जीत मिली, वह भी ओपीएस को बदलने के लिए आगे बढ़ रहा है। मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी बहाली के लिए कोरस बढ़ रहा है।
ओपीएस बनाम एनपीएस
ओपीएस कर्मचारी के अंतिम आहरित वेतन के 50 प्रतिशत की निर्धारित पेंशन का आश्वासन देता है। हालांकि, योजना कर के अधीन नहीं है। 1 अप्रैल, 2004 को OPS बंद कर दिया गया और इसे NPS से बदल दिया गया। 2004 से सरकारी कर्मचारी एनपीएस का पालन कर रहे हैं जो कराधान में योगदान देता है। नई योजना एक सेवानिवृत्ति पेंशन फंड प्रदान करती है जो रिडेम्प्शन पर 60 प्रतिशत कर-मुक्त है, शेष 40 प्रतिशत को 100 प्रतिशत कर योग्य वार्षिकियों में निवेश किया जाना है।
कर्नाटक
कर्नाटक में अयानुर मंजूनाथ और एस वी संकनूर और मरिथिबेगौड़ा सहित तीन विधायकों ने हाल ही में सदन में हुई ओपीएस चर्चा पर अनुकूल परिणाम नहीं मिलने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए विधान परिषद से बहिर्गमन किया। चर्चा एक सवाल के जवाब में हुई जो कई सरकारी कर्मचारियों द्वारा बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में चल रहे विरोध के मद्देनजर आया था, जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ओपीएस द्वारा कवर किया जाए। विधायकों ने राज्य शासित भाजपा सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि एनपीएस पुराने के बराबर हो। उनके अनुसार, वर्तमान पेंशन कई सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के लिए पर्याप्त नहीं थी। जानकारी के अनुसार, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने "राज्य की वित्तीय स्थिति" के आधार पर सरकारी कर्मचारियों की याचिका पर विचार किया है।
तमिलनाडु
कन्याकुमारी समाहरणालय के सामने आयोजित एक प्रदर्शन के दौरान शिक्षक संगठन-सरकारी कर्मचारी संगठन (जेएसीटीओ-जीईओ) की संयुक्त कार्रवाई समिति ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने ओपीएस के पुनरुद्धार की उनकी मांग को पूरा करने से इनकार कर दिया तो आगामी चुनाव में शिक्षक और सरकारी कर्मचारी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) को "त्याग" देंगे। । उनके अनुसार सत्ता में आने के बाद स्टालिन तमिलनाडु में ओपीएस को पुनर्जीवित करने का अपना वादा भूल गए। डीएमके सरकार के खिलाफ 1,000 से अधिक शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया।
केंद्र का स्टैंड
2004 में यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई योजना का विरोध करना कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के लिए दुर्लभ है। वहीं उसी योजना का एनडीए सरकार द्वारा समर्थन किया जाना भी अपने आप में अनूठा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र को उन कर्मचारियों द्वारा जमा किए गए पैसे वापस करने हैं जो एनपीएस के तहत थे। संसदीय स्थायी समिति का नेतृत्व करते हुए भाजपा विधायक जयंत सिन्हा ने हाल ही में ओपीएस से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। वित्तीय विशेषज्ञों के मुताबिक ओपीएस में वापस जाना आर्थिक रूप से खतरनाक है। मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने रेखांकित करते हुए कहा कि इस कदम को आगे बढ़ाने वालों के लिए सबसे बड़ी बात ये है कि दिवालियापन 10 साल बाद आएगा। सरकारी थिंक टैंक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रतिनिधि और व्यय सचिव जल्द ही केंद्र और राज्यों की पेंशन देनदारी के मुद्दे पर संसदीय पैनल के साथ गोलमेज चर्चा करेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक और पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण पैनल को भी संक्षिप्त जानकारी देंगे।
New pension scheme is making big political forms in several states