Congress Yukt Bharat: पार्ट-1 के समापन पर विपक्षी एकता, फिर पश्चिम से पूरब की ओर निकलेगी भारत जोड़ो यात्रा पार्ट-2
साल का आखिर दिन और देश की राजनीति के लिहाज से एक जागरूक और अहम प्रदेश बिहार, जब राजधानी पटना में मीडिया ने मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ की 2024 में विपक्ष के प्रधान मंत्री पद के चेहरे के रूप में राहुल गांधी की वकालत पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने दो टूक कहा कि "ठीक है, उसमें क्या बुरा है"। हो सकता है कि नीतीश के पास इस मुद्दे पर निर्णायक वोट न हो, लेकिन उनका शब्द एक ऐसे समय में धारणाओं को बल जरूर देता है। वो भी ऐसे वक्त में जब राहुल की भारत जोड़ो को विपक्ष से केवल छिटपुट रूप से उत्साही प्रतिक्रियाएं मिलने के बाद अपने समापन की ओर जा रही है। बीजेपी एक तरफ जहां कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ अपने चुनावी अभियान में फिर से साल 2024 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए बेकरार नजर आ रही है। वहीं भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस अपनी खोई जमीन पाने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है। ऐसे में विपक्ष भी अगर अगर केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस युक्त गठबंधन बनाने को तैयार हो जाता है, तो आने वाली चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो सकती है।
21 दलों को निमंत्रण
कांग्रेस ने 30 जनवरी को श्रीनगर में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में शामिल होने के लिए 21 समान विचारधारा वाले (भाजपा विरोधी पढ़ें) दलों के नेताओं को आमंत्रित किया है। लेकिन इतनी बड़ी सूची में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) शामिल नहीं है। दरअसल, जब भारत जोड़ो यात्रा आप के गढ़ दिल्ली में थी, तब भी केजरीवाल इस लॉन्ग मार्च में शामिल नहीं हुए थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा शासित चुनावी रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के दो विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी और बसपा को भी इसमें आमंत्रित किया गया है। ये तब भी है जब इन तीनों दलों ने यात्रा में शामिल होने के कांग्रेस के निमंत्रण को विनम्रता से ठुकरा दिया। यह इस तथ्य के बावजूद है कि जदयू बिहार में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शासन कर रहा है और ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने अतीत में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बसपा के साथ गठबंधन किया है। तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति भी राहुल के प्रचार अभियान से दूर रही है।
केजरीवाल से किनारा करने की वजह?
इसके बाद भी आप को 30 जनवरी के कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि केजरीवाल कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक अछूत क्यों हैं? बता दें कि आप कोई राजनीतिक फ्रिंज नहीं है। ममता बनर्जी की टीएमसी, केसीआर की बीआरएस और नीतीश कुमार की जदयू मुख्य रूप से क्षेत्रीय पार्टियां साबित हो रही हैं, केवल राहुल और केजरीवाल ही 2024 में लगातार तीसरा कार्यकाल चाह रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संभावित चुनौती बनते दिख रहे हैं। वास्तविकता यह है कि आप एकमात्र भाजपा विरोधी पार्टी है जो विस्तार कर रही है। इसके दिल्ली और पंजाब में मुख्यमंत्री हैं और गुजरात के भाजपा के मजबूत दुर्ग में कुछ विधायक हैं। संक्षेप में, भाजपा और कांग्रेस के बाद, आप तीसरी "राष्ट्रीय" पार्टी है और किसी अन्य राजनीतिक संगठन के पास उस तरह की अपील फिलहाल तो नजर नहीं आ रही है।
एक फ्रेम में आने से बचते रहे हैं राहुल-केजरीवाल
लेकिन आप को कश्मीर में न बुलाए जाने के मुद्दे को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। राहुल और केजरीवाल कुछ समय के लिए एक-दूसरे का साया नहीं टिक पाए हैं। कुछ उदाहरण से इसे समझते हैं। 2018 में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के बेंगलुरु में शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा विरोधी ताकतों के बीच एकता दिखाने के लिए नेताओं की मौजूदगी वाला एक कार्यक्रम हुआ था। राहुल और केजरीवाल मंच पर थे, लेकिन फिर भी इन दोनों नेताओ ने विपरीत कोनों में बैठने का विकल्प चुना। बाद में, उसी वर्ष, राहुल और केजरीवाल दोनों दिल्ली के जंतर मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए, लेकिन इस बार भी उन्होंने ये सुनिश्चित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी कि वे एक फोटो फ्रेम में नहीं आए। केजरीवाल मंच पर सभा को संबोधित कर रहे थे, जबकि राहुल को अपडेट किया जा रहा था कि आप नेता कब जा सकते हैं। केजरीवाल मंच से नीचे उतरे और राहुल का काफिला आ गया। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, राहुल और केजरीवाल दोनों ने भाजपा के खिलाफ गठबंधन बनाने के लिए आयोजित विफल वार्ता के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराते हुए ट्विटर पर लड़ाई लड़ी। अगले साल कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने आप को छोड़कर विपक्षी दलों की बैठक की। आप ने कहा कि उसे निमंत्रण नहीं मिला। कांग्रेस का स्पष्टीकरण था कि केजरीवाल की पार्टी को अतीत में ऐसी बैठकों के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन कोई नहीं आया और इसलिए दोबारा पूछने का कोई मतलब नहीं था। पिछले साल फरवरी में सुरक्षा-संवेदनशील और सीमावर्ती राज्य पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने कुमारविश्वास द्वराा खालिस्तानी लिंक वाले आरोपों पर पूछा था कि केजरीवाल जी, सीधा जवाब दो- कुमार विश्वास सच बोल रहे हैं? हाँ या ना? केजरीवाल पर यह एक परोक्ष लेकिन शायद सबसे तीखा हमला था।
पश्चिम से पूरब तक भारत जोड़ो यात्रा पार्ट-2
राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो पदयात्रा का पहला चरण इस महीने 30 जनवरी को समाप्त हो जाएगा। इसके बाद यात्रा के दूसरे संस्करण पर अभी से बात होने लगी है। माना जा रहा है कि 2024 आम चुनाव को जोड़ते हुए दूसरे चरण का एलान होगा। कांग्रेस के सीनियर नेताओं के अनुसार पदयात्रा के दूसरे चरण का होना तय है जो पश्चिम से पूरब की ओर निकलेगी। लेकिन उसके प्रारूप को लेकर अभी चर्चा हो रही है। एक वर्ग का मानना है कि यह यात्रा हाइब्रिड होनी चाहिए और तीन महीने में समाप्त कर देना चाहिए। इससे 2024 आम चुनाव की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिलेगा। वहीं दूसरे वर्ग का मानना है कि यह भी पहले चरण की तरह पूरी तरह पैदल ही होनी चाहिए। अब इस पर रायपुर में पार्टी के चिंतन शिविर में मंथन होने की संभावना बताई जा रही है। राहुल गांधी खुद यात्रा के पहले चरण की सफलता से खुश हैं और वह दूसरे चरण के लिए अभी से योजना पर काम कर रहे हैं। लेकिन पार्टी के तमाम नेता इस बात पर एक हैं कि दूसरा चरण अगर होता भी है तो चुनावी तैयारियों और प्रचार पर उसका कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। अगर ऐसा होगा तो इसके नेगेटिव परिणाम मिल सकते हैं।
राहुल की पीएम उम्मीदवारी पर नीतीश को नहीं ऐतराज
नीतीश के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि अक्टूबर में मल्लिकार्जुन खड़गे के सत्ता संभालने के बाद कांग्रेस कम से कम कुछ कदम उठाएगी। दो महीने तक धैर्य बनाए रखने के बाद, उन्होंने पिछले महीने कम से कम दो बार अपनी निराशा व्यक्त की। यह स्पष्ट था जब उन्होंने 11 दिसंबर को कहा कि “मेरा बतावा मानेंगे तो ई हार जाएंगे, मेरी बात लोग नहीं मानेंगे तो हम क्या करेंगे, हमको क्या है। मैं क्या कर सकता हूं... मेरा कोई दांव नहीं है।" फिर, 25 दिसंबर को, जब पत्रकारों ने उनसे राहुल की यात्रा के बारे में पूछा, तो उनकी प्रतिक्रिया संक्षिप्त थी "मुझे नहीं पता।" एक हफ्ते बाद, उनका राहुल समर्थन-किसी भी विपक्षी मुख्यमंत्री द्वारा सबसे निर्णायक और दूरगामी बयान लगा। 9 अगस्त, 2022 से जब नीतीश ने भाजपा को छोड़ दिया और बिहार में नई सरकार बनाने के लिए राजद, कांग्रेस और चार अन्य दलों के साथ जुड़ गए, तो वे एक व्यापक-आधारित विपक्षी एकता के लिए जोर दे रहे हैं, जिसमें ग्रैंड ओल्ड पार्टी अपना समर्थन दे रही है जो पुराना और आजमाया 'कांग्रेस-युक्त' मॉडल है। -अभिनय आकाश
Opposition unity end of bharat jodo yatra then part 2 move from west to east