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        जब सरकार बदलती है (व्यंग्य)
        
            By DivaNews
            
            
            21 December 2022
            
        
        जब सरकार बदलती है (व्यंग्य) चुनाव की घोषणा के कुछ दिन बाद ही माहौल में शगूफा छोड़ा गया कि जीत गए तो लूटेंगे हार गए तो कूटेंगे। ऐसी आधिकारिक घोषणा विपक्षी पार्टी के बंदे तो नहीं कर सकते थे। पांच साल से हर तरह से उनकी कुटाई ही हो रही थी। इस गैर राजनीतिक घोषणा ने प्रशासन के हाथ पांव और दिमाग भी फुला दिए। बड़े आकार के अफसरान को छोटे अफसरान ने बाअदब सूचित किया। उन्होंने सुरक्षा कारिंदों को हिदायत दी कि क़ानून व्यवस्था कतई नहीं बिगडनी नहीं चाहिए। चाहे कुछ भी करना पड़े। ख़ास लोगों को लुटने और पिटने से बचाकर रखना है और विशेष लोगों को लूटने और पीटने नहीं देना है। मतदान से पहले दिन पुलिस ने फ्लैग मार्च कर सबको दिखा दिया  कि सुरक्षा चुस्त दरुस्त है। मतदान के दिन धारा 244 लगा दी गई। वोटदाताओं ने मन ही मन प्रिय लोगों को गालीदान के सिवा कोई गलत काम नहीं किया।   जनता भी नेताओं की तरह सच्चे झूठे वायदे करती है। नकली मुस्कुराहटें लेती और बनावटी मुस्कुराहटें देती है। नेताजी वोट मांगने आते हैं तो कहती है आप तो विकास नायक हैं और हमारे दिल में रहते हैं।  सम्प्रेषण और विज्ञापन का बड़ा फायदा है, हर उम्र के लोग जान गए हैं कि आजकल रोजाना की ज़िंदगी में झूठ, फरेब, नक़ल और धोखे जैसे गुणों बिना गुज़ारा नहीं है। पांच साल तक, सुबह, दोपहर, शाम, रात और नींद में सिर्फ विकास किया, खाया, पिया और पहना। खूब मेहनत, सहयोग और जुगाड़ से पैसा इक्कठा किया था। शादी और चुनाव तो होता ही है पैसा दिखने के लिए। सारा क्षेत्र वगैरा वगैरा, बैनर, पोस्टरों से पाट दिया जिन्हें  मतदान के बाद भी नहीं उतारा। चुनाव विभाग के निर्देशों की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया वैसे सब जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को कैसे दिमाग में न बसाया जाए। उन्हें पता है कि कौन कौन से खर्चे कितने दिखाने हैं।इसे भी पढ़ें: सफाई से पटाने का ज़माना (व्यंग्य)इतना ठोस प्रबंधन, मिर्चीधार प्रचार और वर्कर्ज़ पर चढ़ा बुखार यही मान रहा था कि उन्हें हराने वाला पैदा नहीं हुआ। शासक दल के चिन्ह पर चुनाव लड़ने वाले को आशा, विशवास और अंध विशवास रहा कि वही जीतेंगे। जीतेंगे तो लूटेंगे भी। होनी को टालने वाला भी पैदा नहीं हुआ सो इस बार भी होनी हुई और पिछली बार हज़ारों वोटों से हारे बंदे ने उन्हें हज़ारों वोटों से हरा दिया। प्राचीन काल में खिंचवाई या यूं ही खिंची, ऐसी वैसी, घिसी पिटी पुरानी फ़ोटोज़ निकल आई। जिनमें से एक बंदा राजनीतिक विजेता हो गया था। विजेता स्वत ही कितने ही लोगों का दोस्त, चाचा, ताऊ या मामा हो जाता है।  
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