Birthday Special: रफ़ी साहब की आवाज का जादू आज भी कायम है अपनी सुरीली आवाज के कारण सुरों के बादशाह कहे जानें वाले सदाबहार गायक मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को पंजाब के अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था। 1940 से 1980 तक रफ़ी साहब ने लगभग 26000 गीत गाये। मोहम्मद रफ़ी को शहंशाह-ए-तरन्नुम कहा जाता था। आज भी हर महफ़िल मोहम्मद रफ़ी के गीतों के बगैर पूरी नहीं होती। रफ़ी साहब की आवाज का जादू आज भी कायम है। पार्श्व गायक के रूप में मोहम्मद रफ़ी की शुरुआत 'गुल बलोच' नाम की पंजाबी फिल्म से हुई। उन्होंने पंडित जीवन लाल मट्टू, अब्दुल वाहिद और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत सीखा था। रफ़ी गली में घूम कर गाने वाले एक फकीर के गीतों को सुनकर गुनगुनाया करते थे, एक दिन फकीर ने रफ़ी से कहा तुम बहुत बड़े गायक बनोगे। घरवालों की मर्जी के बिना रफ़ी ने संगीत की शिक्षा ली और मुंबई पहुंच गए। उस समय के प्रख्यात गायक कुंदन लाल सहगल मोहम्मद रफ़ी के प्रेरणास्रोत थे, रफ़ी साहब की शुरूआती गायकी में के एल सहगल की झलक देखी जा सकती है। मोहम्मद रफ़ी ने हिंदी के अलावा उड़िया, पंजाबी, भोजपुरी, बंगाली, असमिया और कोंकणी भाषा के गीत गाये, उन्होंने डच और स्पेनिश, इंग्लिश और पारसी भाषा के गीतों को भी अपनी आवाज दी।इसे भी पढ़ें: Dilip Kumar birth anniversary: रुपहले पर्दे का ऐसा अभिनेता जो अपने हर किरदार को अमर कर गयापहली स्टेज परफॉर्मेंस एक बार रफ़ी साहब और उनके बड़े भाई सहगल को सुनने आकाशवाणी गए थे जहां किसी कारणवश के एल सहगल ने गाने से मना कर दिया, मोहम्मद रफी के कहने पर आकाशवाणी वालों ने मोहम्मद रफ़ी को गाने का मौका दिया और रफ़ी ने पहली बार सार्वजनिक रूप से पहली बार गीत गाया।
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