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आजादी के आराधक थे प्रफुल्ल चंद्र चाकी, सरफोशी की तमन्ना रखते थे

आजादी के आराधक थे प्रफुल्ल चंद्र चाकी, सरफोशी की तमन्ना रखते थे

आजादी के आराधक थे प्रफुल्ल चंद्र चाकी, सरफोशी की तमन्ना रखते थे

गुलामी की जंजीरें तोड़कर भारत को आजाद कराने के लिए संसार के सुख का कोई लालच नहीं बांध पाया। आत्मोत्सर्ग की भावना और सरफरोशी की तमन्ना के साथ आजादी का आराधक इंकलाब की राह पर चल पड़ा। जिंदगी वतन के नाम कर अमर हो गए। शहीद प्रफुल्ल चन्द्र चाकी का आज जन्मदिवस है। उनका जन्म उत्तरी बंगाल के बोगुरा जिले, जो कि अब बांग्लादेश में स्थित है, के बिहारी गांव में हुआ था जब प्रफुल्ल 2 वर्ष के थे तभी पिता श्री राज नारायण चाकी का निधन हो गया था मां स्वर्णमयी देवी ने बड़ी कठिनाई से पालन पोषण किया। वे उनकी की पांचवी संतान थे।

नाजुमा जनदा प्रसाद इंग्लिश स्कूल में प्राथमिक शिक्षा के बाद बड़े भाई प्रताप चंद्र चाकी के साथ रंगपुर चले गए जहां नेशनल स्कूल में जितेंद्र नारायण राय, अविनाश चक्रवर्ती, ईशान चंद्र चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से मिलने का अवसर मिला। विद्यार्थी जीवन में स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के साहित्य को पढ़ा। उनके हृदय में देश को आजाद कराने की भावना का बीजारोपण वहीं से हो गया। बंगाल विभाजन को लेकर देशव्यापी आंदोलन हुआ। उस समय वे रंगपुर के जिला स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। आंदोलन में भाग लेने के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिया गया। वे क्रांतिकारियों के संगठन युगांतर के संपर्क में आए। बंगाली साप्ताहिक के संस्थापक सदस्यों में से एक बारिन घोष ने प्रफुल्ल चाकी को जुगांतर समूह में शामिल होने के लिए कोलकाता जाने के लिए राजी कर लिया। उस समय कोलकाता का चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डग्लस किंग्सफोर्ड था जो क्रांतिकारियों को बुरी तरह से अपमानित करता था और उन्हें क्रूर दंड देने के लिए बदनाम था। उसने 15 वर्ष के एक स्कूली छात्र को वंदे मातरम का नारा बुलंद करने पर 15 वैंत मारने की सजा दी थी। वह क्रांतिकारियों के निशाने पर था। जनता का आक्रोश देखकर किंग्सफोर्ड की सुरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया गया। क्रांतिकारियों ने किंग्सफोर्ड को मारने की तैयारी कर ली। जिम्मा सौंपा गया खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को सौंपा।

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खुदीराम बोस को युगांतर की ओर से दो पिस्तौल और प्रफुल्ल चाकी को एक पिस्तौल और कारतूस देकर मुजफ्फरपुर भेज दिया गया। प्रफुल्ल को अपनी पहचान छुपाने के लिए दिनेश चंद्र रॉय नाम दिया गया मोती झील के पास धर्मशाला में रुके (लक्ष्मेन्द्र चौपड़ा)। किंग्सफोर्ड की पूरी तफ्तीश की। गुप्त गतिविधि की भनक लगने के कारण फैयाजुद्दीन और तहसीलदार "हो" को उनकी सुरक्षा में लगाया गया था। किंग्सफोर्ड के विक्टोरिया बंकी स्थित क्लब से लौटते समय मारने की तैयारी की। 30 अप्रैल 1908 को किंग्स कोर्ट के बंगले के पास बग्गी आते देख बम फेंका परंतु उसमें मुजफ्फरपुर बार के एक प्रमुख वकील मिस्टर प्रिंगल कनेडी की पत्नी और उनकी बेटी मारी गई। दोनों क्रांतिकारी रेलवे के किनारे 24 किलोमीटर अंधेरे में भागकर बेनी स्टेशन पहुंचे जहां से दोनों लोग अलग हो गए। 

खुदीराम बोस को पकड़े जाने पर मुजफ्फरपुर में 11 अगस्त 1908 को फांसी दी गई। प्रफुल्ल चंद समस्तीपुर आए, जहां एक रेल कर्मचारी त्रिगुणा चरण घोष ने शरण दी। कपड़े बदल कर 1 मई 1908 को मोकामा के लिए जाने वाली गाड़ी में इंटर क्लास टिकट से बैठा दिया। उसी डिब्बे में यात्रा कर रहे पुलिस स्पेक्टर नंदलाल बनर्जी ने शक के आधार पर मोकामा स्टेशन पर खबर कर दी, जहां होने चारों ओर से घेर लिया गया। फल स्वरुप उन्होंने स्वयं को दो गोलियां मारकर शहादत का दिव्य अनुष्ठान पूरा किया। नंदलाल बनर्जी ने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उनका सिर काटकर मुजफ्फरपुर कोर्ट में पेश किया शिनाख्त के लिए जैसे ही खुदीराम बोस के सामने लाया गया, उन्होंने प्रणाम किया वहीं शिनाख्त का काम पूरा हो गया। 9 नवंबर 1998 को शिरीष चंद्र पाल और कवेन्द्र नाथ गांगुली ने नंदलाल बनर्जी को गोली मारकर बदले का अनुष्ठान पूरा किया। भारत माता के इंकलाबी सपूत को कृतज्ञतापूर्ण नमन।

- शिवकुमार शर्मा

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