कई देशों में हो रहे विरोध प्रदर्शन दर्शा रहे हैं कि तानाशाही से जनता को दबाया नहीं जा सकता
दार्शनिक और वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रवर्तक नोबेल पुरुस्कार विजेता नील्स बोर का कथन के मुताबिक "तानाशाही का सबसे जोरदार हथियार है गोपनीयता, लेकिन लोकतंत्र का सबसे असरदार हथियार है खुलापन।" ईरान, चीन, म्यांमार, थाइलैंड और सूडान में हुए विरोध प्रदर्शन इस बात का प्रमाण हैं कि सूचनाओं के जरिए ई विलेज बनती दुनिया में कठोर कानून या तानाशाही से आम अवाम की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। ये सभी देश नागरिक अधिकारों के उत्पीड़न के लिए बदनाम हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक फांसी देने के मामले में चीन और ईरान दुनियां के शीर्ष देश हैं। चीन ने करीब एक हजार और ईरान ने करीब 314 लोगों को फांसी दी गई।
इन देशों में लोगों के खिलाफ किए जा रहे उत्पीड़न से यह भी साबित होता है कि बदले हुए हालात में बंदूकों की नोंक पर लंबी अवधि तक मानवाधिकारों को राष्ट्रीय एकता-अखंडता, संस्कृति या धर्म के नाम पर दबाया नहीं जा सकता। यही वजह रही आखिरकार ईरान और चीन जैसे कट्टर देशों की सरकार ने भारी खून-खराबे के बाद आंदोलनकारियों के आक्रोश के सामने झुकते हुए उनकी मांगे मंजूर कर ली। इन देशों में सरकार के खिलाफ बोलने, संस्कृति और धर्म के नाम पर फांसी की सजा दिया जाना आम बात है। किन्तु इस बार हुए अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने वाले लोगों को जेल या फांसी का डर भी नहीं डरा सका। ईरान ने भारी दबाव में आकर मोरैलिटी पुलिस को भंग कर दिया। इसी तरह चीन भी 70 सालों में पहली बार आंदोलनकारियों के सामने झुकते हुए कोविड में प्रतिबंधों में छूट देने के लिए सहमत हो गया।
गौरतलब है कि ईरान में इस्लाम से जुड़े नियमों जैसे कि हिजाब, बुर्का आदि का पालन कराने के लिए मोरैलिटी पुलिस बनाई गई। इसका गठन पूर्व मेहमूदक अहमदीनेजाद के समय में किया गया था जो ईरान के एक कट्टरपंथी नेता और राष्ट्रपति के तौर पर जाने जाते हैं। उस दौर में इसका काम हिजाब की संस्कृति को बढ़ाने का था। सफेद और हरे रंग की वैन से चलने वाली इस पुलिस के कर्मचारी कहीं पर भी महिलाओं को टोकते दिख जाते। कई बार इस रोक-टोक ने हिंसक का रूप ले लिया। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब महिलाओं को उनके हिजाब को लेकर सरेआम बुरी तरह मारा-पीटा गया। जेलों में बंद करके लोगों को यंत्रणाएं दी गई। ऐसा ही मामला बुर्के से चेहरा नहीं ढकने वाली महसा अमीनी का था। अमीनी की मौत से भड़की आक्रोश की चिंगारी ने दावानल का रूप धारण कर लिया। विरोध का यह मुद्दा न सिर्फ ईरान में बल्कि पूरे विश्व में फैल गया। कई देशों की महिलाओं और हस्तियों ने सार्वजनिक तौर पर बाल कटवा कर ईरान का विरोध किया। ईरान ने इस आंदोलन को दबाने के लिए हर तरह के हथकंडों का इस्तेमाल किया। हजारों लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए गए। प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाई गई। ईरान में सुरक्षा बलों के हाथों करीब 380 प्रदर्शनकारी मारे गए। मृतकों में 47 बच्चे भी शामिल हैं।
इन देशों के नागरिक अपनी तकलीफों और मानवाधिकारों को लेकर लंबे अर्से से कसमसा रहे हैं। कठोर कानून और निर्दयी शासन तंत्र के खौफ के बावजूद नागरिकों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने का दुस्साहस दिखाया। हालांकि ईरान और चीन की कोशिश यही रही है कि अपने देश के नागरिकों पर चलाए गए दमन चक्र की सूचनाएं किसी भी तरह से देश से बाहर नहीं जाए, ताकि विश्वव्यापी बदनामी से बच सकें। इन देशों से आ रही सूचनाओं से जाहिर है कि मौजूदा शासन तंत्र से आजिज आ चुके लोगों ने मौत और सजा के भय के बावजूद सड़कों पर प्रदर्शन कर सरकारों का जम कर विरोध किया।
ईरान की तरह चीन ने भी पहले कोविड प्रतिबंधों के खिलाफ सड़कों पर उतरे चीनी नागरिकों पर कानून की आड़ में पुलिस और सैन्य बलों का इस्तेमाल किया, किन्तु लंबे समय तक चीन भी अपने नागरिकों की आवाज को दबाने में सफल नहीं हो सका। चीन में कोरोना के मामले बीते दिनों तेजी से बढ़े और सरकार ने अपनी जीरो कोविड पॉलिसी को पूरे देश में सख्ती से लागू किया। सख्त प्रतिबंधों के कारण लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही थी और यही कारण है कि पूरे चीन में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शन की यह आग शंघाई से लेकर बीजिंग और वुहान से शिनजियांग तक फैल गई। इतना ही नहीं प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी विरोध किया। लोगों ने नारे लगाते हुए चीन की सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) से सत्ता छोड़ने की मांग की।
इसी तरह सूडान की सेना ने प्रधानमंत्री अब्दल्लाह हमदोक समेत कई नेताओं को गिरफ़्तार कर इमरजेंसी घोषित कर दी। इसके बाद से सड़कों पर लोगों का विरोध प्रदर्शन पर उतर आए। लोगों पर सैनिकों ने गोलियां भी दागीं जिसमें 10 लोगों के मारे जाने और कई अन्य के घायल हो गए। म्यांमार की सेना ने अपने ही लोगों पर एयर स्ट्राइक कर आतंक फैला दिया। हवाई हमलों में 80 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। घटना स्थल पर सैन्य विमान की ओर से 4 बम गिराए गए थे। म्यांमार की सेना पिछले साल आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार का तख्तापलट करने के बाद से हजारों लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। इसके अलावा उस पर 2,300 से अधिक आम नागरिकों की हत्या का आरोप भी लगा है। थाइलैंड में भी हालात कुछ दूसरे देशों की तरह ही हैं। धरना और विरोध पर यहां भी सख्त पाबंदी है। सेना द्वारा 2014 के तख्तापलट में चयनित सरकार को अपदस्थ किए जाने के बाद से थाइलैंड में पहली बार 2019 में चुनाव हुए पर आम नागरिकों को अभी अपने अधिकारों की मांग करने की छूट नहीं है।
बैंकाक में सरकार ने पांच से अधिक लोगों के एक साथ खड़े होने पर रोक लगाई हुई है। ऐसे प्रतिबंधों को असली मकसद अवाम की आवाज को दबाना ही रहा है। दलील यह दी गई कि प्रतिबंध राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे की वजह से लगाए गए हैं। एक छात्र नेता के आह्वान पर बैंकॉक की जनता सड़कों पर ही उतर आई। प्रदर्शनकारियों ने देश के राजा महा वजीरालोंगकोर्न के साथ ही प्रधानमंत्री प्रयुत चन ओचा के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और प्रधानमंत्री से गद्दी छोड़ने की मांग की। ईरान और चीन की निरंकुश सरकारों का आंदोलनकारियों के सामने झुकना यह दर्शाता है कि वह दिन दूर नहीं है, जब लोकतंत्र की बयार को रोकना इन देशों में नामुमिकन हो जाएगा। आहिस्ता से ही सही लोकतंत्र का बसंत इन देशों में पूरी रंगत से आएगा जरूर। इसकी पदचाप नागरिक अधिकारों विरोधी इन देशों में सुनाई पड़ रही है। लोकतंत्र की यह कवायद भारी जनांदोलनों के जरिए इन देशों की कट्टरपंथियों और तानाशाहों को संपूर्ण आजादी बहाल करने को मजबूर कर देंगे, किन्तु यह भी निश्चित है कि यह रास्ता कांटों भरा है और बगैर कुर्बानी के तय नहीं होगा।
-योगेन्द्र योगी
Protests in many countries are showing people cannot be suppressed by dictatorship