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कठोर निर्णय लेकर पीवी नरसिम्हा राव ने बदली थी भारत की आर्थिक दिशा

कठोर निर्णय लेकर पीवी नरसिम्हा राव ने बदली थी भारत की आर्थिक दिशा

कठोर निर्णय लेकर पीवी नरसिम्हा राव ने बदली थी भारत की आर्थिक दिशा

पीवी नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। पीवी नरसिम्हा राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं। पीवी नरसिम्हा राव दक्षिण से बनने वाले पहले प्रधानमंत्री थे। नरसिम्हा राव असंख्य प्रतिभा के धनी थे। नरसिम्हा राव 1991-1996 के बीच भारत के प्रधानमंत्री रहे। नरसिम्हा राव को संगीत, साहित्य और कला में विशेष रूच थी। नरसिम्हा राव को विभिन्न भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त था इन्हें भारतीय भाषाओँ के साथ स्पेनिश और फ़्रांसिसी भाषाओँ का भी ज्ञान था।

देश में आर्थिक सुधारों के लिए सबसे ज्यादा अगर किसी प्रधानमंत्री को क्रेडिट दिया जाता है तो वो हैं पीवी नरसिम्हा राव... क्योंकि वो ऐसे दौर में देश के प्रधानमंत्री बने थे, जब देश का सोना विदेशों में गिरवी रखा गया था। हालांकि पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कई आर्थिक सुधार किए, जिसमें लाइसेंस राज को समाप्त करना और मनमोहन सिंह का ऐतिहासिक 19000 शब्दों वाला भाषण सबसे ज्यादा अहम रहा।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीतिक हलकों में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके पीवी नरसिम्हा राव का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चलने लगा। लेकिन सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के पूर्व प्रधान सचिव रहे परमेश्वर नारायण हक्सर को 10 जनपथ बुलाया था और उनसे कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति के बारे में राय-मशवरा किया था। उस वक्त परमेश्वर नारायण हक्सर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए तत्कालीन उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा का नाम सुझाया था। लेकिन शंकर दयाल शर्मा ने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद हुए विचार विमर्श में पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय लिया गया।

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20 जून, 1991 को पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। इस पद पर पहुंचने से पहले पीवी नरसिम्हा राव ने कई केंद्रीय मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके थे लेकिन वो बिजनेस के मामले में विशेषज्ञ नहीं थे। ऐसे में उनके जीवन की सबसे बड़ी खोज के तौर पर मनमोहन सिंह को देखा जाता है। क्योंकि पीवी नरसिम्हा सरकार को तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का साथ मिला और देश को मजबूती।
 
उस वक्त भारत के द्वारा बढ़ाए गए कदमों की वजह से देश कंगाल होने से तो बचा ही था साथ-ही-साथ देश की साख भी मजबूत हुई थी। नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए उदारीकरण का रास्ता अपनाया था। उस वक्त उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा था कि धरती की कोई भी ताकत उस विचार को रोक नहीं सकती है, जिसका समय आ गया है।

मनमोहन सिंह के बजट भाषण के 19,000 शब्दों में मानो पीवी नरसिम्हा राव के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का पूरा खाका था। हालांकि बजट पेश करने से पहले मनमोहन सिंह जब भाषण का मसौदा लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे थे, उस वक्त पीवी नरसिम्हा राव ने कहा था अगर यही चाहिए था तो फिर मैंने आपको क्यों चुना ? लेकिन इस बजट का सबसे ज्यादा विरोध पार्टी के भीतर ही हुआ था।
 
पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की जोड़ी ने बजट के जरिए विदेशी कंपनियों के लिए देश के दरवाजे खोल दिए थे। इससे न केवल औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिला, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़े। 

कांग्रेस पर अक्सर पीवी नरसिम्हा राव को महत्व नहीं देने के आरोप लगते रहे हैं। पीवी नरसिम्हा राव का दौर समाप्त होने के बाद कांग्रेस ने उनसे किनारा कर लिया था, यहां तक की उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस पार्टी मुख्यालय के भीतर तक नहीं रखा गया था। मानो 10 जनपथ के दरवाजे उनके लिए बंद हो गए हों। 23 दिसम्बर 2004 को नरसिम्हा राव का निधन हो गया था।

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