MCD सदन में हुए हंगामे से उभरते सवाल मांग रहे जवाब
दिल्ली नगर निगम के मुख्यालय सिविक सेंटर में 6 जनवरी 2023 को आहूत शपथ ग्रहण समारोह के दौरान और उसके पश्चात होने वाले महापौर के चुनाव से पहले सत्ताधारी आप और विपक्षी भाजपा के पार्षदों ने जो अपना रौद्र रूप दिखाया है, उससे कई सवाल उपजना लाजिमी है।यदि समय रहते इन सवालों का जवाब मिल जाये तो वह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ रहेगा।
पहला, शपथ ग्रहण समारोह के बीच एमसीडी के प्रशासक उपराज्यपाल द्वारा नामित 10 पार्षदों को पहले शपथ दिलाए जाने के सवाल पर आप के नवनिर्वाचित पार्षदों ने जिस तरह से विरोध जताया और फिर बीजेपी पार्षदों ने भी नहले पर दहला वाली प्रतिक्रिया दी, उसके बाद तो दोनों खेमों के बीच एमसीडी सदन में लात-घूंसे और कुर्सियां सबकुछ चलीं। यह सिलसिला आखिर कबतक थमेगा। क्योंकि सदन में संख्या बल में आप और बीजेपी में मामूली सा अंतर है।
दूसरा, इस अप्रत्याशित हंगामे से देश की राजधानी दिल्ली में लोकतंत्र एक बार फिर शर्मसार हुआ है, क्योंकि दिल्ली के गौरवशाली राजनीतिक इतिहास में ऐसा मंजर पहले कभी नहीं देखा गया, जब नवनिर्वाचित पार्षद एक दूसरे पर कुर्सियां और माइक फेंक रहे थे। स्थिति की गम्भीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ना तो पार्षदों का शपथ ग्रहण हो सका और ना ही मेयर चुनाव। लिहाजा, जब शपथ ग्रहण समारोह और मेयर चुनाव की जब अगली तिथि मुकर्रर होगी तो इस बात की गारंटी कैसे मिलेगी कि इतिहास खुद को नहीं दोहराएगा।
तीसरा, जब संख्या बल स्पष्ट है तो फिर भ्रांति किसे और क्यों है? क्योंकि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में चुने हुए पार्षदों की कुल संख्या 250 है, जिनमें से 134 पार्षद आम आदमी पार्टी से चुनकर आये हैं, जबकि 104 पार्षद भारतीय जनता पार्टी से चुनकर आये हैं। वहीं, 9 पार्षद कांग्रेस के हैं, जबकि 3 पार्षद अन्य दलों से या निर्दलीय चुनकर आये हैं। वहीं, 10 पार्षद मनोनीत किये गए हैं। बीजेपी के 7 लोकसभा सांसद और आप के 3 राज्यसभा सांसद हैं। ये सभी वोटिंग के अधिकारी हैं। निगम एक्ट के मुताबिक, मनोनीत पार्षद को जोन में वोट करने का अधिकार है, लेकिन सदन में वोट करने का अधिकार नहीं है। एमसीडी के नए एक्ट में भी वोट का प्रावधान नहीं है। ऐसे में जब सब कुछ स्पष्ट है तो फिर आप या भाजपा को चिंता करने या दांवपेंच चलाने की कोई जरूरत नहीं है।
चौथा, आखिर कबतक थमेगा अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला। क्योंकि आप का आरोप है कि भाजपा नामित पार्षदों को वोट करने का अधिकार देना चाहती है। उनके सहारे भाजपा अपना मेयर बनाना चाहती है। एमसीडी की परंपरा के विपरीत चुनकर आने वाले पार्षदों के बजाय, जब नामित पार्षदों का शपथ पहले हुआ तो उसे लेकर विरोध हुआ। इस दौरान आप पार्षद प्रवीण कुमार पर हमला किया गया। भाजपा आप पार्षदों की हत्या करना चाहती है। वह सदन के अंदर जीत हासिल करने के लिए खूनी खेल पर उतर आई है।
वहीं भाजपा का आरोप है कि आप पार्षदों ने पूर्व नियोजित योजना के आधार पर हंगामा और मारपीट की। यह दिल्ली के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हंगामा कर पार्षदों को शपथ लेने से रोक दिया है। भाजपा ने सदन में हुई इस घटना की जांच कराने की मांग करते हुए आप कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई की जरूरत बताई है। पार्टी का कहना है कि बीते कुछ दिनों से जिस तरह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल स्वयं कानूनी प्रावधानों की अवहेलना कर बयानबाजी और पत्राचार कर रहे हैं, वह सीधे अपने पार्षदों को हिंसा करने के लिए उकसावे जैसा है और हुआ भी यही।
पांचवां, ऐसे में सीधा सवाल यह है कि जब देश में कानून बनाने वाली सर्वशक्तिमान संस्थाओं के माननीय सदस्यों का आचरण ही ऐसा है, तो आम लोग उनसे क्या सीखेंगे, समझा जा सकता है। वैसे भी दिल्ली को लघु भारत समझा जाता है, इसलिए यहां पर घटित होने वाली हर घटना का असर पूरे राष्ट्र की मानसिकता पर पड़ता है। सवाल यह भी है कि जब उनका आचरण ही ऐसे अनियंत्रित है, तो फिर वो अपने पक्ष में कैसे-कैसे कानून बनाते होंगे, यह समझना मुश्किल नहीं है। शायद देश व देशवासियों की दुर्दशा की वजह भी यही है कि हमारे जनप्रतिनिधि स्थापित मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित नहीं हैं और सत्ता पाने या उसमें बने रहने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।
छठा, सवाल है कि हमारे संसद के दोनों सदनों, विधान मंडलों और त्रिस्तरीय स्थानीय निकायों से जुड़े सदनों में पक्ष-विपक्ष के बीच हाथापाई से लेकर मारपीट तक, जो कुछ भी होता आया है, उसके आगे भी थमने के आसार नहीं हैं। क्योंकि सदन के भीतर कुछ भी करने और अपेक्षित न्यायोचित कार्रवाई से बचने का विशेषाधिकार इन्होंने खुद से ही हासिल कर रखा है। जनता इन्हें हरा सकती है, लेकिन इनके किसी कुकृत्य के लिए कानूनन सजा नहीं दिला सकती, जब तक कि ये सदन में हों। वैसे तो इनके ऊपर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार सदन अध्यक्ष यानी आसन के पास होता है, लेकिन उनके स्तर से भी निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई यदि की गई होती, तो यह सिलसिला कब का थम चुका होता।
सातवां, हमारे माननीय सांसदगण, विधायकगण और पार्षदगण को यह सोचना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र में वो राजा के समतुल्य हैं और सभी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं। वहीं, उनकी देखा देखी यानी यथा राजा तथा प्रजा के तर्ज पर अब समाज में भी कुछ लोग ऐसे ही बेतुके आचरण प्रदर्शित करने लगे हैं। भले ही ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई के प्रावधान हैं, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि यानी सत्ताधारी वर्ग से जुड़े होने के चलते वो भी सख्त कानूनी कार्रवाई से प्रायः बचते आये हैं। वो भी तभी तक, जब तक कि मामला कोर्ट नहीं पहुंच जाए।
आठवां, उम्मीद है कि एमसीडी का यह अप्रत्याशित हंगामा भी देर-सबेर कोर्ट तक जरूर पहुंचेगा और बीजेपी इसी दिशा में सक्रिय हैं। उसे पता है कि आप हर तरह से बीजेपी को बदनाम करके उसका राजनीतिक लाभ उठाती आई है, इसलिए अब असंवैधानिक आचरण प्रदर्शित करने वाले आप नेताओं को वह कोर्ट तक घसीटेगी, ताकि उनके आचरण में बदलाव आए। यदि ऐसा हुआ तो पलटवार स्वरूप आप भी कुछ करेगी। ऐसे में कोर्ट का भावी रुख भी यह तय करेगा कि ऐसी घटनाएं कबतक थमेंगी और यदि नहीं तो फिर क्या होगा अंजाम, सोचकर हर किसी का दिल सहम जाता है। क्योंकि राजनीतिक कड़वाहट दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
Questions emerging from the uproar in the mcd house seeking answers