उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से राहुल की यात्रा का गुजरना संयोग है या प्रयोग
कांग्रेस के सांसद और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश से निकल चुकी है। यहां यह यात्रा करीब तीन दिनों तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रही। आश्चर्य की बात यह है कि 80 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में राहुल की यात्रा महज ढाई दिन ही रही। वह 130 किमी चले और तीन लोकसभा एवं 11 विधानसभा सीटों को कवर किया। ये वो सीटें हैं, जहां कांग्रेस का पिछले दो विधानसभा चुनावों (2017 और 2022) में खाता तक नहीं खुला है। इसके अलावा इन सीटों की खासियत यह भी है कि यह मुस्लिम-जाट, किसान और दलित बाहुल्य हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन सीटों पर अपनी जमानत तक नहीं बच पाई थी। ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल विपक्ष का चेहरा कैसे बन पाएंगे? कांग्रेस सबसे बड़े सूबे में अपनी जड़ मजबूत किए बिना भाजपा को चुनौती कैसे दे पाएगी?
राहुल की ये यात्रा उस इलाके से गुजरी, जहां कांग्रेस को लगता है कि वह अपनी पुरानी खोई हुई जमीन हासिल कर सकती है, क्योंकि ये बेल्ट खेती और किसानों की है यहां मुस्लिम एवं दलित आबादी का प्रतिशत भी काफी ज्यादा है। पूर्व में यह क्षेत्र दंगा प्रभावित भी रह चुका है। यहां से सपा सरकार के समय गुण्डागर्दी के चलते कई हिन्दू परिवार पलायन को मजबूर हो गए थे। 2013 में मुजफ्फरनगर में भीषण दंगा हुआ था, जिसमें जाट समुदाय को जान माल का काफी नुकसान उठाना पड़ा था, तब की अखिलेश सरकार पर आरोप लगे थे कि उसने मुस्लिम दंगाइयों को पूरा संरक्षण दिया था। भारत जोड़ो यात्रा में पूरे प्रदेश से कांग्रेस कार्यकर्ता आये, जिस तरह से यूपी में यात्रा का रोड मैप तैयार किया गया, उससे यही लगता है कि यूपी जैसे बड़े राज्य के लिए कांग्रेस पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित गठजोड़ तैयार करना चाहती है।
कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा' देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में पहुंची तो यूपी में राहुल गांधी कांग्रेस के पुराने और कोर वोटबैंक को साधते जरूर नजर आए। पदयात्रा दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्र के रास्ते उत्तर प्रदेश के लोनी होते हुए बागपत पहुंची। यात्रा के दौरान कांग्रेस जिंदाबाद के नारे और रंग दे बसंती जैसे देशभक्ति गीत गूंज रहे थे। यात्रा के स्वागत के लिए मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों के हाथों में तिरंगा नजर आ रहा था तो हिजाब पहनी मुस्लिम महिलाओं ने भी यात्रा में शिरकत की। राहुल मुस्लिम क्षेत्रों से निकले तो उनके साथ कांग्रेस के कई मुस्लिम राष्ट्रीय नेता साथ दिखे। मंच पर राहुल-प्रियंका के अलावा सलमान खुर्शीद, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, पूर्व सांसद राशिद अल्वी, जफर अली नकवी, मीम अफजल सहित आधे दर्जन से ज्यादा मुस्लिम नेता नजर आए। इसके अलावा चंद्रभान प्रसाद, प्रोफेसर रतन लाल, राजेंद्र वर्मा, डॉ. सूरज मंडल, एनके चंदन और धर्मेंद्र कुमार जैसे दलित एक्टिविस्ट भी भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत करते नजर आए।
कांग्रेस की इसी सियासी रणनीति के चलते समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने यात्रा से दूरी बना ली है, क्योंकि यह दल जानते हैं कि कांग्रेस उनके वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी कर रही है, इसलिए कांग्रेस से दूरी बनाए रखना जरूरी है। राहुल यूपी के जिन तीन जिलों से गुजरे, वो मुस्लिम और जाट बहुल इलाका तो है ही इसके अलावा दोनों बिरादरी के लोग पश्चिमी यूपी की 120 विधानसभा और 15 लोकसभा सीटें पर जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन इलाकों में ही कांग्रेस ने 2022 यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा ताकत भी लगाई थी। यह इलाका किसान बहुल भी है।
पश्चिमी यूपी पर कांग्रेस का फोकस इसलिए भी है क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान भाजपा को सबसे ज्यादा विरोध का सामना यहीं पर करना पड़ा था। वेस्ट यूपी में सपा का समीकरण मुस्लिम, यादव और जाट हैं। रालोद का समीकरण मुस्लिम जाट, बसपा का मुस्लिम, जाट और दलित हैं। माना जा रहा है कि यूपी में भले ही राहुल की यात्रा छोटी है, लेकिन उसका सियासी असर पूर्वी यूपी तक होगा। वहां भी मुसलमान कांग्रेस के साथ जुड़ने का प्रयास करेंगे।
उधर, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिस प्रदेश में सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं और कांग्रेस जहां सबसे कमजोर है, वहां राहुल सिर्फ 130 किमी चल रहे हैं। यदि उन्हें 2024 में विकल्प बनना है तो उत्तर प्रदेश पर सबसे ज्यादा फोकस करना होगा, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से ही निकलता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी की अगुआई में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, लेकिन इतिहास का सबसे कमजोर प्रदर्शन किया। कांग्रेस 403 में से सिर्फ 2 सीटें जीत पाई। वोट शेयर भी 2.33 फीसदी रहा। यहां तक कि कांग्रेस का यूपी की 100 सदस्यीय उच्च सदन विधान परिषद में भी एक सदस्य नहीं बचा है। ऐसा पहली बार हुआ है। हालांकि राहुल गांधी ने अपना सियासी जनाधार बढ़ाने की कवायद जरूर की। उन्होंने अपने पुराने सहयोगियों को भी यात्रा में आने का निमंत्रण दिया। इनमें अखिलेश यादव, जयंत चौधरी जैसे नेता शामिल हैं। इन नेताओं ने शुभकामनाएं तो दीं, लेकिन यात्रा से जुड़ने से इंकार कर दिया। इसी तरह से भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी भारत जोड़ो यात्रा को समर्थन देने के बाद भी यात्रा में नहीं आए।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश के तीन जिलों गाजियाबाद, शामली और बागपत से होकर गुजरी। तीनों जिले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वे इलाके हैं, जहां राकेश टिकैत का अच्छा-खासा प्रभाव है। किसान आंदोलन के समय में भी यही इलाका काफी ऐक्टिव था। ऐसे में राकेश टिकैत का कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना एक महत्वपूर्ण घटना होती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हाँ समाजवादी गठबंधन के प्रमुख सहयोगी रष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने यात्रा का स्वागत किया तो उनके कई नेता भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा भी बने।
-अजय कुमार
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