रामबारात पर्व में निहित है विशेष अर्थ और इसका महत्व
उत्तर भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में से एक रामबारात पर्व भी है। मूलरूप से यह रामलीला नाटक का ही एक हिस्सा है। इसमें भगवान राम की बारात को बहुत धूम-धाम से निकाला जाता है। इस पर्व को सबसे पहले आगरा में मनाया गया था। आज इस पर्व को मनाते हुए 125 वर्ष पूरे हो चुके हैं। तीन दिनों तक चलने वाला रामबारात का यह पर्व हिंदू धर्म के प्रमुख उत्सवों में से एक है। इस उत्सव का सबसे भव्य आयोजन आगरा में देखने को मिलता है। इस दौरान मेलों का भी आयोजन किया जाता है, जिसके कारण रामबारात का उत्सव देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
तिथि
इस वर्ष यह पर्व 17 सितंबर शनिवार से 19 सितंबर सोमवार तक चलेगा।
रामबारात मनाने की वजह
यह पर्व भगवान राम और माता सीता के विवाह समारोह के रूप में मनाया जाता है। इस दिन झांकी के रूप में भगवान राम की बारात निकलती है, जिसमें शहर के असंख्य लोग हिस्सा लेते हैं। रामलीला नाटक के हिस्से के रूप में इस पर्व को दर्शाया जाता है, जब राम सहित उनके सभी भाई, माता सीता के स्वयंवर में पहुंचे थे।
मनाने का तरीका
रामबारात के मौजूदा स्वरूप में काफी बदलाव हो चुके हैं, लेकिन इसका अंतर्निहित अर्थ अब भी वही है, लोगों के बीच सौहार्द और प्रेम को बढ़ाना। इस पर्व का पहली बार आयोजन आगरा में 1940 को शुरू हुआ था। इस पर्व की विशेष बात यह है कि इस पर्व में सभी धर्मों के लोगों द्वारा हिस्सा लिया जाता है। इस दिन को मनाने के लिए काफी बड़ा पंडाल लगाया जाता है, जिसे बिल्कुल विवाहोत्सव की तरह सजाया जाता है। इस दौरान श्रीराम और माता सीता की झांकी को सजाकर शहरभर में घुमाया जाता है। झांकी में दूल्हे के रूप में श्रीराम होते हैं, जिनके साथ उनके सभी भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न भी शामिल होते हैं। उन सभी की आरती की जाती है। इसके बाद उन्हें रथ पर बैठाया जाता है और पूरे शहर में झांकी ले जाई जाती है। जगह-जगह लोग उन पर फूलों की वर्षा करते हैं।
महत्व
जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि रामबारात रामलीला नाटक का ही एक प्रमुख हिस्सा है। इसमें माता सीता के स्यवंर में भगवान राम पहुंचते हैं। इस पर्व को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन रामाबारात की झांकी कई मुस्लिम क्षेत्रों से निकलती है और मुस्लिम भी पूरे श्रद्धाभाव से भगवान राम पर फूलों की वर्षा करते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह पर्व भारत तहजीब को प्रदर्शित करता है, जिससे पता चलता है कि हिंदू-मुस्लिम सब मिलजुलकर रहना जानते हैं। इसके यह मायने भी हैं कि हमारे लिए लोगों के धर्म अलग हो सकते हैं, लेकिन सबके मन में एक जैसी श्रद्धा है।
इतिहास
रामबारात की शुरुआत 125 वर्ष पूर्व लाला कोकामल द्वारा की गई थी। वह अपने क्षेत्र के जाने-माने व्यापारी थे। उनके द्वारा ही सबसे पहली बार रामबारात का इतने शाही रूप से आयोजन किया गया था। वर्ष 1966 में लाला कोकामल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राधारमण द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाने लगा था। आज के समय में इस उत्सव को मनाने का अंदाज और इसका महत्व दोनों काफी बढ़ चुके हैं।
- मिताली जैन
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