Column

सभी तरह की असमानताएं दूर करना चाहता है संघ, होसबाले ने जो कहा एकदम सही कहा

सभी तरह की असमानताएं दूर करना चाहता है संघ, होसबाले ने जो कहा एकदम सही कहा

सभी तरह की असमानताएं दूर करना चाहता है संघ, होसबाले ने जो कहा एकदम सही कहा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश की समस्याओं पर निरन्तर नजर रखता रहा है। गरीबी, महंगाई, अभाव, शिक्षा, चिकित्सा, सेवा और बेरोजगारी आदि क्षेत्रों में उसकी दखल से देश में व्यापक सकारात्मक बदलाव होते हुए देखे गये हैं। संघ की दृष्टि में आजादी के 75 साल बाद भी गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी अगर देश के प्रमुख मुद्दे बन कर छाए रहें, तो यह चिंता की बात होनी ही चाहिए। इस चिन्ता को महसूस करते हुए स्वदेशी जागरण मंच के एक कार्यक्रम में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ का आर्थिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए भारतीय जनता पार्टी के सरकार के दौरान इन समस्याओं के बरकरार रहने पर चिन्ता जताई। दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि 23 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे हैं। देश के बड़े हिस्से को आज भी साफ पानी और दो समय के भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। निश्चित ही होसबाले का उद्बोधन देश की समस्याओं पर एक तटस्थ एवं निष्पक्ष सोच देने का माध्यम बना है। इससे देश को समस्यामुक्त बनाने की दिशा में एक नया मोड़ मिलेगा। संघ का राष्ट्रीय समस्याओं पर दृष्टिकोण स्पष्ट है, यह एक दिशासूचक बना है, गिरजे पर लगा दिशा-सूचक नहीं, यह तो जिधर की हवा होती है उधर ही घूम जाता है। यह कुतुबनुमा है, जो हर स्थिति में सही दिशा एवं दृष्टि को उजागर करता रहा है और रहेगा।

विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, वर्ग के लोगों का एक साथ रहना और उनका समस्यामुक्त जीवन जीना ही भारतीय लोकतंत्र का सौन्दर्य है, राजनीतिक स्वार्थों एवं संकीर्णताओं के चलते इस सौन्दर्य को नुकसान पहुंचाना राष्ट्रीय विकास को खंडित करता है। विपक्षी दल देश की बुनियादी समस्याओं एवं ज्वलंत मुद्दों को अक्सर सरकार के खिलाफ राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं। जबकि विपक्षी दलों को इन समस्याओं के समाधान के लिये सरकार का सहयोग करते हुए सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। सत्ता को हथियाने की स्पर्धा होना अस्वाभाविक नहीं है पर स्पर्धा के वातावरण में जैसे-तैसे बहुमत और सत्ता पाने की दौड़ में राष्ट्रीय विकास के मुद्दों को नजरअंदाज करना कैसे औचित्यपूर्ण हो सकता है? निश्चित रूप से ''सिस्टम'' की रोग मुक्ति एवं विकास की राजनीति ही स्वस्थ समाज का आधार होगा। राष्ट्रीय चरित्र एवं सामाजिक चरित्र निर्माण के लिए व्यक्ति को आचार संहिता से बांधना ही होगा। दो राहगीर एक बार एक दिशा की ओर जा रहे थे। एक ने पगडंडी को अपना माध्यम बनाया, दूसरे ने बीहड़, उबड़-खाबड़ रास्ता चुना। जब दोनों लक्ष्य तक पहुंचे तो पहला मुस्कुरा रहा था और दूसरा दर्द से कराह रहा था, लहूलुहान था।

इसे भी पढ़ें: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राजनीतिक चश्मे से देखना सबसे बड़ी भूल है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश का मुस्कुराता हुआ विकास चाहता है। तभी होसबाले ने आर्थिक असमानता पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि एक फीसदी लोगों के पास देश की 20 फीसदी आय का हिस्सा है, जबकि 50 फीसदी आबादी के पास आय का 13 फीसदी हिस्सा ही आता है। सवाल यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि यह बात होसबाले ने कही। अहम यह है कि तमाम दावों के बावजूद देश में ऐसे हालात हैं। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन, क्या संसाधन सभी लोगों तक समान रूप से पहुंच पा रहे हैं? अगर नहीं तो क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए? एक ओर चंद उद्योगपतियों की पूंजी साल भर में दोगुनी हो जाए या चंद उद्योगपति रातोंरात सर्वोच्च आर्थिक शिखर पर पहुंचा जाये इसमें कहीं-ना-कहीं सरकार की भूमिका है। दूसरी ओर देश की बड़ी आबादी भोजन, पानी और दूसरी सामान्य सुविधाओं के लिए संघर्ष करती रहे, यह सरकार की नाकामी है। हकीकत तो यह है कि वित्त, उद्योग और श्रम मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्टों के आधार पर देश की प्रगति का सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

गरीबी भारत की आर्थिक प्रगति पर एक बदनुमा दाग है। दत्तात्रेय होसबाले ने गरीबी दूर करने के लिये संकल्पबद्ध होने की आवश्यकता व्यक्त करते हुए कहा भी कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के सार्थक प्रयास से सुरक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, खाद्यान्न सहित कई क्षेत्रों में प्रगति की है। भारत विश्व में आर्थिक रूप से संपन्न 5 देशों में शामिल हो चुका है। कई क्षेत्रों में प्रगति करने के बाद भी देश में गरीबी एक राक्षस के रूप में खड़ी है। जिस तरह हम विजयादशमी के दिन राक्षस रूपी पुतला का वध कर बुराई पर अच्छाई को स्थापित करने का संकल्प लेते हैं उसी तरह हमें इस गरीबी पर विजय पाने का प्रण लेना होगा। संघ और होसबाले देश के आर्थिक हालात और यहां के आम आदमी की परेशानी समझ रहे हैं। शायद इसीलिए उन्होंने गरीबी और बेरोजगारी की तुलना राक्षस से करते हुए इनका वध करने की अपील की। दशहरा पर्व पर बुराइयों का वध करने की परंपरा है। गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारें कुछ नए कदम उठाएं, तो देश की जनता को राहत मिल सकती है, तभी भारत सशक्त हो सकता है, विश्वगुरु का दर्जा हासिल कर सकता है। संघ किसी का प्रतिस्पर्धी नहीं है, बल्कि धर्म व राष्ट्र के उत्थान हेतु कार्यरत विभिन्न संगठनों, संस्थाओं व व्यक्तियों का सहयोगी एवं समवाय है। संघ को पूर्वाग्रह एवं संकीर्ण नजरिये से देखने वाले लोगों से सावधान रहना होगा।

इसे भी पढ़ें: संघ को प्रशंसा या आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता, वह तो बस राष्ट्रसेवा में लीन रहने वाला संगठन है

स्वावलंबन का शंखनाद कार्यक्रम में दत्तात्रेय ने कहा कि पूर्व की सरकारों की गलत आर्थिक नीति के कारण गांवों से शहरों की ओर पलायन होने लगा। गांव खाली होते गए। शहरों की स्थिति खराब होती गई परंतु वर्तमान सरकार ने स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर भारत की बात कही है। प्रश्न है कि इस तरह चलाई जा रही सार्थक सरकारी योजनाओं से लोगों को गुमराह करना क्या उचित है? सरकार को चाहिए कि वह लघु उद्योग, हस्तशिल्प, कृषि, खाद्यान्न, आयुर्वेद की दवा आदि क्षेत्रों में गांवों में रोजगार को बढ़ावा देने के लिये नवाचार का प्रयोग करें, नये-नये उपक्रम करें। स्थानीय कौशल को पुनर्जीवित करते हुए स्थानीय स्तर पर योजनाएं बनानी चाहिए। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियान कोरी घोषणा नहीं, बल्कि यथार्थ धरातल पर उतरती हुई दिखनी चाहिए। ताकि युवाओं की चेतना निस्तेज न हो, भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिल सके। किसानों को उपज के उचित दाम मिलने का मुद्दा हो या उनकी उपज के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाने की बात हो, सरकारी वादों के मुताबिक जितना काम हुआ है वह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसे ही है। किसानों को अपनी उपज मंडी तक पहुंचाने और उचित दाम पाने के लिए आज भी पहले जैसी ही जद्दोजहद करनी पड़ रही है। कहीं ज्यादा तो कहीं कम। इसलिये सरकार को अपनी घोषित योजनाओं को जमीन पर उतारनी ही चाहिए।

अभी हमने चाहे रावण जलाया हो, अब चाहे दीप जलाएंगें, पर मेरा ध्यान देश में उफान ले रही बेरोजगारी, गरीबी एवं महंगाई की ज्वाला से एक मिनट भी नहीं हटता। रावण उस समय दस सिर वाला था। आज हजार सिर हो गए हैं, सिर नहीं मुंह, सिर में तो दिमाग भी होता है। जितने दिमाग उतने तर्क, समाधान एक भी नहीं। बेरोजगारी एवं युवाओं में जीवन-निर्वाह को लेकर पनप रहा संकट एक बड़ी समस्या है। यह तो निश्चित है कि देश में सभी को नौकरी सरकार या निजी संस्थाएं दे नहीं सकती हैं। इसलिए हमें स्वरोजगार एवं स्व उद्यमिता पर जोर देना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से स्वदेशी जागरण मंच के संयोजकत्व में स्वावलंबन का शंखनाद अभियान एक नई सोच से आगे बढ़ रहा है। देश से बेरोजगारी दूर करने के लिए इसकी शुरुआत की गई है। इसके तहत वर्ष 2030 तक देश से गरीबी समाप्त करने के लक्ष्य को लेकर काम शुरू किया गया है। आने वाले 25 वर्षों यानी स्वतंत्रता के 100 वर्ष होने पर विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्रों में भारत को स्थापित करना है तो हमें इन पर विजय पाना ही होगा। यह तभी संभव है जब लोगों की मानसिकता बदलते हुए स्वरोजगार के प्रति उन्हें प्रेरित करें। अब समय आ गया है कि विपक्षी दल आंखों से पट्टी हटाए और बुनियादी समस्याओं के निवारण के लिये सार्थक पहल करें। संघ सिर्फ राष्ट्रवाद के लिए काम करता है। राजनीति स्वयंसेवकों का काम नहीं है। संघ जोड़ने एवं भारत को सुदृढ़ करने का काम करता है, जबकि राजनीति तोड़ने का हथियार बन जाती है। राजनीति की वजह से ही आज भी देश में गरीबी, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता, महंगाई जैसी समस्याएं हैं। विडम्बनापूर्ण है कि अपने देश में इस तरह की सीधी-सच्ची एवं विकास की बात पर भी सस्ती राजनीति की जा रही है। 

-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

Sangh wants to remove all kinds of inequalities what hosabale said is right

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero