वक्त के साथ हमारे विचार बदलते हैं और जीवन के लिए जरूर बदलाव के अनुसार ढलते हैं। जातिवाद हो या पहनावा, प्रथा हो या रीतियां परिवर्तन संसार का नियम है। बेहतरी वाले परिवर्तन होने भी चाहिए। लेकिन परेशानी तब खड़ी हो जाती है जब बदलावों की लड़ाई समुदायों की जंग में तब्दील हो जाती है और फिर सड़कों के रास्ते अदालत की दहलीज पर आकर टिक जाती है। लेकिन क्या हो अगर कि किसी मसले पर अदालत के जजों की राय भी आपस में एक-दूसरे से मेल नहीं खाए। फिर कैसे निकलेगा मामले का निष्कर्स। दरअसल, कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब बैन का मामला और उलझ गया है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच ने फैसले को बड़ी बेंच भेजने के लिए कहा है। दोनों जजों की राय एक नहीं है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए हिजाब पर बैन को सही माना। वहीं जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक हाई कोर्ट के बैन जारी रखने के आदेश को रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि हिजाब पहनना पसंद की बात है। अब ऐसे में आज आपको बताते हैं कि हिजाब बैन पर खंडित आदेश आने के बाद आगे क्या होगा, कैसे आगे बढ़ेगी सुनवाई?
जजों की राय अलग-अलग
सबसे पहले शुरू करते हैं कि आज सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ। हिजाब मामले को लेकर 10 दिनों तक सुनवाई चली। जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने 26 सितंबर को सबी पक्षों यानी 23 याचिकाकर्ताओं के वकीलों और कर्नाटक सरकार की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। वहीं आज इस पर फैसले की घड़ी के दौरान दोनों जजों की राय बंटी नजर आई। कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि हमारी राय अलग है और मेरे इस मुद्दे पर 11 सलाल हैं। जस्टिस गुप्ता ने छात्रों की याचिकाओं को खारिज किया और कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि ये मामला हम चीफ जस्टिस के पास भेज रहे हैं ताकि इसकी सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन हो सके। वहीं बेंच के दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि हिजाब पहनना व्यक्तिगत पसंद का मुद्दा है। मेरे दिमाग में सबसे ज्यादा ये बात आ रही है कि क्या हम इस तरह के प्रतिबंध लगाकर एक छात्रा के जीवन को बेहतर बना रहे हैं?
मैरिटल रेप पर भी आया था विभाजित फैसला
उच्च न्यायालय ने 11 मई को एक विभाजित फैसला सुनाया था । एक न्यायाधीश ने कानून में मौजूद उस अपवाद को निष्प्रभावी कर दिया था जो अपनी पत्नी की असहमति से उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए पति को अभियोजित करने से संरक्षण प्रदान करता है,जबकि दूसरे न्यायाधीश ने इसे असंवैधानिक घोषित करने से इनकार कर दिया था।
सीजेआई के पास
हिजाब विवाद को लेकर सुप्रीम के जजों की बंटी हुई राय के बाद अब मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास चला गया है। अंतिम निर्णय पर एकमत न होने के कारण उन्होंने ये केस चीफ जस्टिस यूयू ललित के पास भेजा है जो अब इस पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन करेंगे। सीजेआई की तरफ से ऑड नंबर के जजों की बेंच का गठन किया जाएगा। ये 3 जजों की बेंच या फिर 5 जजों की बेंच हो सकती है। इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की तरफ से किया जाएगा। 3 या 5 जजों की बेंच को रेफर करने का मकसद मैजॉरिटी के माध्यम से निर्णय कायम करना है। जैसे वर्तमान समय में दोनों जजों के बीच की राय बंटी नजर आई थी। ऐसे में 3 या 5 जजों की बेंच के पास मामला जाने पर फैसला 2-1 या फिर 3-2 से आने की उम्मीद है।
वर्तमान में क्या स्थिति
अभी जो फैसला आया है उसके अनुसार कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला अभी लागू रहेगा। कर्नाटक हाई कोर्ट ने 15 मार्च को राज्य के उडुपी में गवर्नमेंट प्री यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक क्लास के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रता का हिस्सा नहीं है। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसका मतलब है कि एक बार फिर से इस मामले में बहस होगी।
कैसे शुरू हुआ पूरा मामला, हिजाब विवाद की पूरी टाइमलाइन
1 जनवरी, 2022: कर्नाटक के उडुपी में एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की कुछ मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी गयी। कक्षा में प्रवेश से प्रतिबंधित छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ धरना शुरू कर दिया। *
26 जनवरी: कर्नाटक सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया।
31 जनवरी: छात्राओं ने हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया और यह घोषणा करने की मांग की कि हिजाब पहनना भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है।
5 फरवरी: कर्नाटक सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में समानता एवं अखंडता के अधिकार और सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगा दिया।
8 फरवरी: उडुपी जिला कॉलेज में दो समुदायों के छात्रों के बीच झड़प। विरोध के हिंसक होने के बाद सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रतिबंधित करने के लिए शिवमोगा में धारा 144 लगाई गई। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कुछ दिनों के लिए सभी उच्च विद्यालयों और महाविद्यालयों को बंद करने का आदेश दिया।
10 फरवरी: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि राज्य में कॉलेज फिर से खुल सकते हैं, लेकिन विद्यार्थियों को मामला लंबित रहने तक ऐसी पोशाक पहनने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो धार्मिक हों।
11 फरवरी: अंतरिम आदेश में उच्च न्यायालय के निर्देशों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिकाएं दायर की गईं। 15 मार्च: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हिजाब को इस्लामी धार्मिक परम्परा का आवश्यक हिस्सा नहीं बनाया तथा शैक्षणिक संस्थानों में हिज़ाब पहनने पर राज्य सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय के फैसले को कुछ ही घंटों के भीतर शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई।
13 जुलाई: शीर्ष अदालत कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत हुई। 22 सितंबर: उच्चतम न्यायालय ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा।
13 अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने हिजाब प्रतिबंध पर खंडित फैसला सुनाया, कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील को वृहद पीठ के गठन के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
Supreme court judges divided on the decision regarding hijab
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