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Demonetization पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 2023 में इसका क्या मतलब है?

Demonetization पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 2023 में इसका क्या मतलब है?

Demonetization पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 2023 में इसका क्या मतलब है?

छह साल पहले का दौर याद है। जब हर कोई एटीएम की लाइन में लगा था। कइयों ने तो नोट में चिप तक डालने की बात कह कर उसका पोस्टमार्टम भी कर दिया था। 8 नवंबर 2016 दिन मंगलवार बहुत बड़ा अमंगल हुआ, नोटबंद हो गए। सात बजे न्यूज चैनल पर फ्लैश हुआ कि आठ बजे मोदी जी फ्लैश होंगे अर्थात संबोधन देंगे। मोदी जी आए और देश के नाम संदेश देते हुए कहा कि आज रात बारह बजे से पांच सौ और हजार रुपये के नोट बंद कर दिए जाएंगे। बस फिर क्या था  लोगों में अफरा-तफरी मच गई बैंकों में पैसे जमा करने कि लाइन लग गई। अमीर से अमीर और गरीब से गरीब आदमी बैंकों की लाइन में लगकर नोट बदलवाने की जुगत करता रहा। नोटबंदी के ऐलान के बाद समूची दुनिया की नजर भारत के इस फैसले को देखने लगी। 

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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की 58 याचिकाएं
आठ नवंबर का दिन यानी इसी दिन छह साल पहले 2016 में पांच सौ और एक हजार के नोट चलन से बाहर हो गए थे। सरकार अपने इस फैसले को हमेशा सही ठहराती है वहीं विपक्ष इसको लेकर निशाना भी साधती है। अदालत में नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली अलग-अलग कुल 58 याचिकाएं दाखिल की गई। सभी याचिकाओं की सुनवाई इसी साल 12 अक्टूबर को शुरू हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ जिसमें जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, जस्टिस बीवी नागरत्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यम की संवैधानिक बेंच ने 7 दिसंबर 2022 को ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 25 दिसंबर से कोर्ट बंद था। इसलिए नए साल के दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था। 
पीएम का फैसला गलत नहीं
मोदी सरकार के नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ने सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा और याचिकाओं को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी 2023 को नोटबंदी यानी डिमानटाइजेशन के केस में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया गलत नहीं थी और कोर्ट ने सरकार के फैसले को सही करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक मामलों से जुड़े फैसलों को पलटा नहीं जा सकता है। 
नोटबंदी कैसे सफल रही?
31 मार्च 2022 को खत्म हुए पिछले वित्त वर्ष (2021-22) में 7.14 करोड़ आयकर रिटर्न दाखिल किए गए थे। यह 2020-21 में दायर 6.97 करोड़ की तुलना में अधिक था। ये रिटर्न सामूहिक रूप से मनी लॉन्ड्रिंग और अस्पष्ट नकदी की जांच के लिए पर्याप्त जानकारी प्रदान करते हैं। यह प्रदर्शित करता है कि बड़ी संख्या में लोग अब कर प्रणाली में प्रवेश कर चुके हैं और वह धन जो पहले असूचित लेनदेन में उपयोग किया जाता था। अब वैध गतिविधियों में उपयोग किया जाता है। कुल मिलाकर प्रशासन ने चार साल पहले जो कार्रवाई की, उसके लिए वह प्रशंसा का पात्र है।

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क्‍या होता है विमुद्रीकरण
नोटबंदी या विमुद्रीकरण वह मौद्रिक फैसला होता है जिसके तहत मुद्रा की एक इकाई को कानून के तहत अमान्‍य घोषित कर दिया जाता है। यह साधारणतय उस समय होता है जब राष्‍ट्रीय मुद्रा में परिवर्तन किया जाता है और पुरानी मुद्रा को नई मुद्रा से बदला जाता है। इस तरह के कदम उस समय उठाए गए थे जब यूरोपियन मौद्रिक संघों वाले देशों ने यूरो को अपनी मुद्रा के तौर पर अपनाया था। उस समय पुरानी मुद्रा को हालांकि एक समय तक यूरो में बदलने की मंजूरी दी गई थी ताकि लेन-देन में सुविधा बनी रहे।
4 जजों से अलग रही जस्टिस नागरत्ना की राय
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सरकार के फैसले पर कई सवाल उठाए हैं। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रंखला वाले नोटों को बंद करने का फैसला गजट अधिसूचना के बजाए कानून के जरिए लिया जाना चाहिए था क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केंद्र के कहने पर नोटों की एक पूरी श्रृंखला को बंद करना एक गंभीर मुद्दा है जिसका अर्थव्यवस्था और देश के नागरिकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि पूरी कवायद 24 घंटे में कर डाली।

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ये रहा पूरा घटनाक्रम
8 नवंबर, 2016 : पीएम मोदी ने देश को संबोधित किया और 500 रुपये और 1000 रुपये के उच्च मूल्य वाले नोटों को चलन से बाहर किए जाने की घोषणा की। 
9 नवंबर, 2016: सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई। 
16 दिसंबर, 2016: तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार के फैसले की वैधता और अन्य सवालों को विचारार्थ पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ के पास भेजा। 
11 अगस्त, 2017: भारतीय रिजर्व बैंक के दस्तावेज के अनुसार नोटबंदी के दौरान 1.7 लाख करोड़ रुपये की असामान्य राशि जमा हुई।
23 जुलाई, 2017: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि पिछले तीन वर्षों में आयकर विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर की गई कार्रवाई से करीब 71,941 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला। 
25 अगस्त, 2017: रिजर्व बैंक(आरबीआई) ने 50 रुपये और 200 रुपये के नए नोट जारी किए। 
28 सितंबर, 2022: उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर की अध्यक्षता में संविधान पीठ का गठन किया। 
7 दिसंबर, 2022: उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा और केंद्र एवं आरबीआई को संबंधित दस्तावेज विचारार्थ रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया। 
2 जनवरी 2023 : उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने नोटबंदी के फैसले को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया। पीठ ने कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी। पीठ ने कहा कि आर्थिक मामले में संयम बरतने की जरूरत होती है और अदालत सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा करके उसके ज्ञान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती। 
2 जनवरी 2023 : न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने का फैसला गजट अधिसूचना के बजाए कानून के जरिए लिया जाना चाहिए था, क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता।

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