शासन, निर्वासन, भारत में शरण और अब नए दलाई लामा का चयन, तवांग झड़प सिर्फ शुरुआत, तिब्बत और बौद्ध क्षेत्रों पर है ड्रैगन की टेढ़ी नजर!
एक बच्चा जो अपने झोले में सामान समेट रहा है तो मां तपाक से पूछ पड़ती है- कहां जाने की तैयारी हो रही है? जवाब देता है एक ऐसी सर्वोच्च पीठ की तरफ जाने का जिसे सुनकर यकीन न हो। फिर कुछ लोग पहुंचते हैं और उसके सामने एक-एक कर सामान सजा देते हैं। वो कुछ चुनता है, कुछ फेंकता है। फिर उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। केवल उसकी ही नहीं बल्कि उसके पूरे मूल्क की भी जिंदगी बदल जाती है। एक महाशक्ति के खूंखार पंजे जो उसकी तरफ बढ़ चले थे। हमारी इस दुनिया में हजारों धर्म मौजूद हैं और इनमें से एक बुद्ध धर्म है। ये ईसाई, इस्लाम, और हिंदू धर्म के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। दरअसल, बौद्ध धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। जो आज से करीब 2500 साल पहले गौतम बुद्ध के द्वारा भारत में शुरू किया गया था। आज दुनिया की 7 प्रतिशत से ज्यादा आबादी यानी करीब 54 करोड़ लोग इस धर्म को मानते हैं। दुनिया में बौद्ध धर्म की शुरुआत आखिर किस तरह से हुई। तिब्बती बौद्ध धर्म आखिर क्यों चीन के निशाने पर है। नए ‘दलाई लामा’ की नियुक्ति से पहले क्या करना चाहता है चीन? तिब्बत और बौद्ध क्षेत्रों पर ड्रैगन की टेढ़ी नजर की पूरी कहानी क्या है।
भिक्षु बनकर चीनी महिला कर रही थी जासूसी
दलाई लामा पिछले सप्ताह बोधगया पहुंच कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद बौद्ध पर्यटन शहर के अपने वार्षिक दौरे को फिर से शुरू किया। दलाई लामा का 29 से 31 दिसंबर तक कालचक्र मैदान में प्रवचन देने का कार्यक्रम है। लेकिन ठीक उसी वक्त यहां एक चीनी महिला के गायब होने की खबर से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। खूफिया एजेंसियों को शक है कि चीनी महिला को दलाई लामा की जासूसी के मकसद से बिहार भेजा गया। सुरक्षा अलर्ट जारी किया है और एक चीनी महिला का स्केच भी जारी किया गया। 29 दिसंबर की शाम होते-होते खबर आई कि दलाई लामा की जासूसी करने के संदेह में एक चीनी महिला को बिहार पुलिस ने हिरासत में लिया। चीनी महिला के पिछले 2 साल से देश के अलग-अलग भागों में रहने की बात सामने आई है। फिलहाल केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी और बिहार पुलिस उसके बारे में और डिटेल खंगाल रही है।
क्या है चीन की साजिश
वैसे ये कोई पहला जासूसी का मामला नहीं है बल्कि दलाई लामा पर निगरानी के लिए चीन ने अपने कई जासूस छोड़ रखे हैं। इसके पीछे मकसद है कि नए होने वाले दलाई लामा को किसी तरह से चीन में घोषित कराया जा सके। ऐसे में नया दलाई लामा चीन समर्थक हुआ तो बीजिंग आसानी से तिब्बत समते बौद्ध इलाकों पर एकछत्र राज कर सकेगा। हाल ही में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 2 गोपनीय आंतरिक दस्तावेज लीक हुए थे, जिसमें ड्रैगन की रणनीति का खुलासा हुआ था। रिपोर्ट में कहा गया कि ये दस्तावेज चीन में प्रभावशाली और कुशल तिब्बती शोधकर्ताओं को भेजे गए हैं। इससे ये साफ प्रतीत होता है कि चीनी सरकार दलाई के बाद के दौर की तैयारी में लगी है।
तिब्बत और चीन
तिब्बत को लेकर चीन हमेशा से ही काफी चौकस रहता है। इसकी असली वजह यह है कि तिब्बत उसका धोखे से कब्जाया हुआ क्षेत्र है। आकार के लिहाज से तिब्बत और चीन में काफी अंतर नहीं है। चीन की सेना ने यहां पर लोगों का शोषण किया और आखिर में वहां के प्रशासक दलाई लामा को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। राजनीतिक दृष्टि से तिब्बत कभी चीन का अंग नहीं रहा। ईसा से एक शताब्दी पूर्व मगध के एक राजा ने तिब्बत के विभिन्न समुदायों को संगठित किया था। यह सम्बंध अनेक वर्षों तक बना रहा। 7वीं शताब्दी तक मध्य एशिया के एक भू-भाग पर तिब्बत का आधिपत्य रहा। उन दिनों सोंगत्सेन गैम्पो तिब्बत के शासक हुआ करते थे। यह साम्रज्य उत्तर में तुर्कीस्तान और पश्चिम में मध्य एशिया तक फैला था। 763 में तिब्बतियों ने चीन की तत्कालीन राजधानी चांग यानी आज के शियान को अपने कब्जे में ले लिया था। तब से लेकर ढाई सौ सालों तक चीन की राजधानी तिब्बत के अधीन रही थी। चंगेज खान और मंगोल साम्रज्य का नाम इतिहास में आपने खूब पढ़ा होगा। 12वीं सदी के दौर में मंगोल साम्राज्य विस्तार के दौर में मंगोल ने चीन पर हमला कर दिया और 1280 के करीब चीन ने मंगोल के सामने घुटने टेक दिए।
भारत की कैसे हुई तिब्बत-चीन विवाद में एंट्री
चीन ने 7 अक्टूबर 1950 को तिब्बत पर अपने आक्रमण के साथ भारत का सामना किया और न केवल तिब्बत और भारत की बल्कि पूरे एशिया की स्थिरता को खतरे में डाल दिया। दलाई लामा के नेतृत्व में चीन के खिलाफ आजादी के लिए विद्रोह हुआ। बाद में 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो को तिब्बत छोड़ना पड़ा। उन्होंने एक ऐसी जगह बस्ती बसाता है, जहां का पानी दूध से भी ज्यादा मीठा बताया गया है। 1959 में दलाई लामा अपने कई समर्थकों के साथ भारत आए। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 23 साल की थी। दलाई लामा को भारत में शरण मिलना चीन को अच्छा नहीं लगा। तब चीन में माओत्से त्युंग का शासन था। चीन और दलाई लामा के बीच तनाव बढ़ता गया और उसे डर सताता रहा कि वो भारत के साथ मिलकर कोई साजिश न रचें।
निशाने पर बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के जानकारों के मुताबिक, चीन जानता है कि बिना तिब्बती बौद्ध धर्म को खत्म किए वो कभी भी तिब्बत देश पर पूरी तरह कब्जा नहीं कर सकता। अरुणाचल प्रदेश के तवांग की मॉनेस्ट्री इसलिए उसके लिए सबसे अहम है। तवांग मठ का निर्माण 1680 में मेराक लाला लोद्रे ग्यास्तो ने कराया था। वर्तमान में यहां 500 से अधिक बौद्ध भिक्षु रहते है। इस मठ को गालडेन नमग्याल लहात्से के नाम से भी जाना जाता है। यहां का मुख्य आकर्षण है, भगवान बुद्ध की 28 फीट ऊंची की प्रतिमा और तीन मंजिल बने सदन हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तवांग मठ का निर्माण कराने वाले मेराक लामा को मठ के लिए जगह चुनने में दिक्कत हो रही थी। एक काल्पनिक घोड़े ने उनकी सहायता की। ता शब्क का अर्थ घोड़ा होता है औऱ वांग का मतलब आशीर्वाद दिया हुआ। उस दिव्य घोड़े के आशीर्वाद से इस जगह का नाम तवांग पड़ा।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन से पहले क्या चाहता है चीन
दुनियाभर के बौद्ध के अनुयायिय़ों के लिए तवांग की मॉनेस्ट्री आस्था का बड़ा केंद्र है। चीन का मकसद तवांग में भौगोलिक के साथ ही अध्यात्मिक रूप से कब्जे का है। माना जा रहा है कि तवांग में ही 15वें दलाई लामा अवतार लेने वाले हैं। तिब्बती दलाई लामा को खारिज किए बिना चीन यहां कब्जा नहीं कर सकता। ऐसे में वो किसी भी तरह से नए दलाई लामा को चुने जाने से रोकने की कोशिश में है।
Tawang clash is only the beginning the dragon is eyeing tibet and buddhist areas