Column

Veer Baal Diwas: बलिदान को नमन व प्रेरणा लेने का दिन

Veer Baal Diwas: बलिदान को नमन व प्रेरणा लेने का दिन

Veer Baal Diwas: बलिदान को नमन व प्रेरणा लेने का दिन

सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद  सिंह के पुत्रों का स्मरण आते ही हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, और मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। गुरु गोविंद सिंह भारत की आत्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले उन महानायकों में से हैं जिन्होंने हमारे लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। सिख इतिहास शहीदियों की लाजवाब मिसाल है। 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों "साहिबजादों" के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिये "वीर बाल दिवस" के रूप में चिह्नित किया गया है। यह दिन वास्तव में उनकी शहादत को नमन करने व उनके जीवन से प्रेरणा लेने का दिन है।
   
सरसा नदी पर बिछड़ गया परिवार:
20 दिसम्बर 1704  की वो रात गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया था। उस रात भयंकर सर्दी थी और बारिश हो रही थी। सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुगलों ने रात के अंधेरे में धोखे से आक्रमण कर दिया। बारिश के कारण नदी में उफान था कई सिख बलिदान हो गए, कुछ नदी में बह गये। इस अफरा तफरी में परिवार बिछड़ गया। माता गुजरी और दो छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गये। दोनों बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे।

इसे भी पढ़ें: सुशासन दिवस की औपचारिकताएं तो पूरी हो गईं, लेकिन इसके उद्देश्य आखिर कब तक पूरे होंगे?

बड़े साहिबजादों, अजीत सिंह और जुझार सिंह जी का बलिदान:
उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया अब उनके साथ दोनों बड़े साहिबजादे और कुछ सिख यौद्धा थे। अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास मे Battle of Chamkaur Sahib के नाम से जाना जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी 40 सिख फौजों के साथ चमकौर की गढ़ी एक कच्चे किले में 10 लाख मुगल सैनिकों से मुकाबला करते हैं एक-एक सिख दस लाख मुगलिया फौज पर भारी पड़ता है गुरु गोविंद सिंह जी के बड़े बेटे जिनकी उम्र मात्र 17 वर्ष की है साहेबजादा अजित सिंह ने मुगल फौजों में भारी तबाही की, सैकड़ों मुगलों को मौत के घाट उतारा लेकिन दस लाख मुगलिया फौजों के सामने साहेबजादा अजित सिंह बलिदान हो गए। छोटे साहिबजादे जिनकी उम्र मात्र 14 वर्ष की है, बड़े भाई के बलिदान को देखते हुए पिता गुरु गोविंद सिंह जी से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगी एक पिता ने अपने हाथों से पुत्र को सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा लाखों मुगलों पर भारी साहेबजादा जुझार सिंह ने युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए।
 
दीवार में जिंदा चुने गए, पर धर्म नहीं बदला:
साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह सिख धर्म के सबसे सम्मानित शहीदों में से हैं। मुगल सैनिकों ने औरंगजेब (1704) के आदेश पर आनंदपुर साहिब को घेर लिया। गुरु गोविंद सिंह के दो पुत्रों को पकड़ लिया गया। मुसलमान बनने पर उन्हें न मारने की पेशकश की गई थी। वजीर खां ने फिर पूछा, बोलो इस्लाम कबूल करते हो? छ: साल के छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा अगर मुसलमान हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न? वजीर खां अवाक रह गया उसके मुँह से जवाब न फूटा तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमान हो के भी मरना ही है, तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें। दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ। दीवार चिनी जाने लगी। जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगौ फ़तेह ने पूछा, जोरावर भाई रोते क्यों है.  जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि दुनियां में आया मैं पहले था पर कौम के लिए शहीद तू पहले हो रहा है। इन दोनों बालकों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी। इस प्रकार गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था। उसी रात माता गुजरी ने भी ठंडे बुर्ज में प्राण त्याग दिए। दिसंबर मास के इस अंतिम सप्ताह को  भारत के इतिहास में 'शहीदी सप्ताह' के रूप में मनाया जाता है।
 
प्रेरणा व संदेश का दिन:
दिसंबर के इस अंतिम सप्ताह में श्रद्धावानों द्वारा ज़मीन पर सोने की परंपरा है। क्योंकि माता गुजरी ने 25 दिसम्बर की वो रात दोनों छोटे साहिबजादों के साथ वजीर ख़ाँ की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी और 26 दिसम्बर को दोनो बच्चे शहीद हो गये थे। 27 तारीख को माता गुजरी ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार श्रद्धालु 20 से 27 दिसंबर तक शहीदी सप्ताह भी मनाते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारों व घरों में कीर्तन और पाठ करते हैं। साथ ही बच्चों को गुरु साहिब के परिवार की शहादत के बारे में भी जानकारी दी जाती है। गुरु पुत्रों के बलिदान की यह कहानी आज की पीढ़ी को अपने देश से, धर्म से, संस्कृति से व अपने वतन से प्रेम करने का सन्देश देती है।
 
आज का दिन साहिबजादों के साहस और न्याय के प्रति उनके संकल्प के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि है। माता गुजरी, गुरु गोबिंद सिंह जी एवं चारों साहिबजादों की वीरता तथा आदर्श लोगों को साहस व शक्ति प्रदान करते हैं। वे अन्याय के आगे कभी नहीं झुके। उन्होंने एक ऐसे विश्व की कल्पना की, जो समावेशी और सामंजस्यपूर्ण हो। यह समय की मांग है कि अधिक से अधिक लोग उनके बारे में जाने। आइये, वीर बाल दिवस पर गुरु पुत्रों के प्रेरक जीवन चरित्र को जन- जन तक पहुंचाएं। 

- डॉ. पवन सिंह
(लेखक जे. सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद के मीडिया विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर है)

Veer baal diwas 2022

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero