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60 साल पहले हुआ था आविष्कार, क्या होती है कार्बन डेटिंग, जिससे खुलेगा ज्ञानवापी में मिले ‘शिवलिंग’ का रहस्य?

60 साल पहले हुआ था आविष्कार, क्या होती है कार्बन डेटिंग, जिससे खुलेगा ज्ञानवापी में मिले ‘शिवलिंग’ का रहस्य?

60 साल पहले हुआ था आविष्कार, क्या होती है कार्बन डेटिंग, जिससे खुलेगा ज्ञानवापी में मिले ‘शिवलिंग’ का रहस्य?

विज्ञान के अनुसार धरती का इतिहास बेहद पुराना है। विज्ञान के मुताबिक हमारी धरती की उम्र करीब साढे चार अरब साल है। जिस पर जीवन की शुरुआत लगभग चार अरब साल पहले हो चुकी थी। पहला मल्टी सेल्युलर ऑर्गनिज्म लगभग 60 करोड़ साल पहले विकसित हुआ। तकरीबन 36 करोड़ साल पहले पहला जानवर पानी से जमीन पर पहुंचा। लगभग दो लाख साल पहले वर्तमान इंसानी नस्ल का विकास हुआ। इन सब घटनाओं के बारे में हम जब सुनते या पढ़ते हैं तो एक सवाल अक्सर मन में आता है। कि आखिर ये कैसे पता चलता है कि कोई चीज कितनी पुरानी है। जब भी कोई आर्कलॉजिकल डिस्कवरी होती है तो चीजों की उम्र पता करने के लिए एक नाम हमें अक्सर सुनने को मिलता है। वो नाम है रेडियो कार्बन डेटिंग। ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की हिन्‍दू पक्ष की मांग का संज्ञान लेते हुए 29 सितंबर को अगली सुनवाई तक मुस्लिम पक्ष से इस पर आपत्ति मांगी है। जिला शासकीय अधिवक्ता राणा संजीव सिंह ने बताया कि मामले की वादी चार महिलाओं की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने ज्ञानवापी परिसर में प्राप्त कथित शिवलिंग/फव्‍वारे की कार्बन डेटिंग कराने की मांग की अर्जी जिला अदालत के समक्ष रखी। जिला न्यायाधीश ने इस अर्जी पर संज्ञान लते हुए 29 सितंबर तक इस पर मुस्लिम पक्ष से आपत्ति मांगी हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के 'शिवलिंग' की असली उम्र पता करने की मांग की गई है। यह मांग हिंदू पक्ष की तरफ से हुई है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है कार्बन डेटिंग, कैसे काम करती है और कितनी सटीक होती है इस बारे में आज के विश्लेषण में आपको बताएंगे। 

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कब हुई शुरुआत
रेडियो कार्बन डेटिंग एक बहुत ही कारगर मेथर्ड है जिसका इस्तेमाल मानव निर्मित कलाकृतियों और जैविक अवशेषों की उम्र पता करने के लिए की जाती है। रेडियो कार्बन डेटिंग ने पिछले 50,000 वर्षों की हमारी समझ को बदल दिया है। इस मेथर्ड को 1949 में अमेरिकन वैज्ञानिक प्रोफेसर विलार्ड लिब्बी ने खोजा था। जिसके लिए बाद में उनको नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया था। प्रोफेसर विलार्ड लिब्बी ने अपनी तकनीक की सहायता से एक प्राचीन लकड़ी की उम्र का पता लगाया था। इसे एब्सोल्यूट डेटिंग भी कहा जाता है। 
रेडियोएक्टिवीटी के बारे में थोड़ा जान लें
सबसे पहले रेडियोएक्टिवीटी के बारे में थोड़ा सा जान लेते हैं। जैसा की हम सभी जानते हैं कि हमारे आसपास मौजूद जितना भी तत्व हैं वो सभी कण से मिलकर बने होते हैं। कण उन सारे पदार्थ का छोटा सा हिस्सा है जिसमें उसकी सभी गुण मौजूद होते हैं। उसे और आगे तोड़ा नहीं जा सकता। मतलब कि अगर उसे तोड़ा गया तो कण अपने गुण को खो देगा। सभी तत्व मिश्रण बने होते हैं। आधारभूत तत्व को हम एटॉमिक नंबर के अनुसार क्रम में टेबल में व्यवस्थित कर सकते हैं। जिसे प्रियोडिक टेबल कहते हैं। अभी तक 1018 तत्वों को खोजा जा चुका है जिसमें से 94 ऐसे हैं जो प्राकृति में पाए जाते हैं। बाकी वो हैं जिन्हें लैब में खोजा गया है। 

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अब समझते हैं कि कार्बन डेटिंग क्या होती है?
जैसा की कार्बन डेटिंग नाम से ही पता चलता है कि इसमें किसी भी वस्तु पर मौजूद कार्बन की मदद से उस वस्तु के समय काल का पता लगाया जाता है। यहां पर एक बात और पता चलती है कि इस विधि से केवल उसी वस्तु की उम्र का पता लग सकता है जिसमें कार्बन के तत्व मौजूद हो। हमारे वायुमंडल में कार्बन के तीन आइसोटोप्स हैं, जो धरती के विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं का हिस्सा होते हैं। ये आइसोटोप्स कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14 होते हैं। कार्बन 14 की जरूरत हमें कार्बन डेटिंग के लिए होती है। इसके पीछे की वजह बाकी दोनों कार्बन 12 और 13 का वायुमंडल में आसानी से मिल जाना है। वहीं कार्बन 14 मुश्किल से ही मिलती है। उसके लिए जांच करनी पड़ती है। कार्बन 14 की मात्रा भी ईंधन जलने से बढ़ती ह। लेकिन बेहद ही सीमित। कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है। कार्बन 14 एक तरह से कार्बन का ही रेडियोधर्मी आइसोटोप है, इसका अर्धाआयुकाल 5730 साल का है। यानी हर वो चीज जिसके कार्बनिंग अवशेष हैं जैसे , हड्डी, चमड़े, बाल और खून के अवशेष की उम्र, बर्तन से लेकर दीवार की चित्रकारी इन सभी की उम्र का पता लगाया जा सकता है। 
प्राणियों की मृत्यु के बाद भी कार्बन का अवशोषण 
कार्बन डेटिंग को रेडियोएक्टिव पदार्थो कीआयुसीमा निर्धारण करने में प्रयोग किया जाता है। कार्बनकाल विधि के माध्यम से तिथि निर्धारण होने पर इतिहास एवं वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है। यह विधि कई कारणों से विवादों में रही है वैज्ञानिकों के मुताबिक रेडियोकॉर्बन का जितनी तेजी से क्षय होता है, उससे 27 से 28 प्रतिशत ज्यादा इसका निर्माण होता है। जिससे संतुलन की अवस्था प्राप्त होना मुश्किल है। ऐसा माना जाता है कि प्राणियों की मृत्यु के बाद भी वे कार्बन का अवशोषण करते हैं और अस्थिर रेडियोएक्टिवतत्व का धीरे-धीरे क्षय होता है। पुरातात्विक सैंपल में मौजूद कॉर्बन-14 के आधार पर उसकी डेट की गणना करते हैं। -अभिनय आकाश

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