क्या है महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद? 66 साल से अटका है मसला, आमने-सामने हैं बीजेपी नेता
"मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये।
‘दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका।"
कृष्ण का संदेश, दुर्योधन का हठ और भीषण रक्तपात से रंजित महाभारत। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इन दिनों गांवों को लेकर दो प्रदेशों के बीच महाभारत छिड़ी है। वैसे तो भारत में कुल 10 राज्य ऐसे हैं जिनके बीच सीमा विवाद चल रहा है। लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच का सीमा विवाद इन दिनों सुर्खियों में है। इस समय दोनों राज्यों में बीजेपी सरकार है, लेकिन दोनों जगह के मुख्यमंत्री आमने सामने हैं। कई क्षेत्रों को अपने राज्य की जगह बताने की वजह से इस विवाद की शुरुआ हुई। ऐसे में आइए जानके हैं कि क्या है महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा विवाद और कैसे हुई इसकी शुरुआत?
क्या है इतिहास
साल 1956 में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन शुरू हुआ। 1 नवंबर 1956 को केंद्र सरकार ने बॉम्बे स्टेट (बॉम्बे प्रेसिडेंसी) के बेलगाम और 10 तालुकाओं को कन्नड़भाषी मैसूर स्टेट में मिला दिया। 1973 में मैसूर का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया। मराठी भाषी महाराष्ट्र का गठन 1960 में हुआ लेकिन शुरू से ही महाराष्ट्र का दावा कर्नाटक को दिए गए चार जिलों विजयपुरा, बेलगावी (बेलगाम), धारवाड़, उत्तर कन्नड़ा के 814 गांवों पर रहा है। यहां मराठी भाषा बोलने वाले बहुसंख्यक हैं। महाराष्ट्र इन चार जिलों के 814 गांवों पर अपना दावा करता रहा है। वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक भी महाराष्ट्र की सीमा से लगते कन्नड़ भाषी 260 गांवों पर अपना दावा करता है।
महाजन कमीशन की रिपोर्ट क्या कहती है?
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने अक्टूबर 1966 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश मेहरचंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन कमीशन बनाया। महाजन कमीशन ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमीशन ने 264 गांवों को महाराष्ट्र में मिलाने और बेलगाम के साथ 247 गावों को कर्नाटक में ही रहने देने की सिफारिश की। महाजन कमीशन की रिपोर्ट को महाराष्ट्र की तरफ से नकार दिया गया। महाराष्ट्र ने सिफारिशों को पक्षपाती करार दिया और कहा कि इनमें कोई तर्क नहीं है। जबकि इसके ठीक उलट कर्नाटक ने सिफारिशों से सहमति जताते हुए इसे लागू करने की मांग की। हालांकि केंद्र सरकार ने महाजन कमीशन की सिफारिश को नहीं लागू किया और विवाद यूं ही चलता रहा। मामला 2004 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अब भी लंबित है।
फिर कैसे तेज हुआ विवाद?
इस हफ्ते की शुरुआत में, महाराष्ट्र में शिंदे सरकार ने विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे केस के लिए अपनी कानूनी टीम के साथ तालमेल बैठाने के लिए दो मंत्रियों को नियुक्त किया है। जल्द ही, कर्नाटक में बोम्मई सरकार ने भी अपना केस लड़ने के लिए मुकुल रोहतगी और श्याम दीवान समेट टॉप के वकीलों की एक टुकड़ी तैनात कर दी।
क्या राजनीति छिड़ी है
कर्नाटक के सीएम बोम्मई ने पहले दावा किया था कि जन गंभीर सूखे की स्थिति श्री तन महाराष्ट्र सांगली जिले में जठ तालुका में पंचायतों ने कर्नाटक में विलय के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। कर्नाटक सरकार ने उनकी मदद करने के लिए पानी उपलब्ध कराने की योजनाएं तैयार की। इसका जवाब देते हुए फडणवीस ने कहा, "इन गांवों ने 2012 में पानी की कमी के मुद्दे पर एक प्रस्ताव पेश किया था। वर्तमान में किसी भी गांव ने कोई प्रस्ताव पेश नहीं किया है। उधर, शिवसेना नेता संजय राउत ने दावा किया कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के छत्रपति शिवाजी महाराज के 'अपमान' मामले से ध्यान भटकाने के लिए सीमा विवाद का महा उठाया गया है।
What is maharashtra karnataka border dispute