आरवीएम क्या है? इससे प्रवासी मतदाताओं को क्या सहूलियत मिलेगी? इससे मतदान करवाने में विपक्षी दल को आपत्ति क्यों है?
आपको पता है कि कई बार प्रवासी मतदाता विभिन्न कारणों से अपने कार्यस्थल के आसपास खुद का मतदाता पंजीकरण नहीं करवा पाते हैं, जिसमें बार-बार मकान बदलने के कारण उनका पता बदलना भी एक बड़ी वजह समझी जाती है। इसके अलावा, गृह नगर में मतदाता सूची से अपना नाम न हटवाने की इच्छा और जिस क्षेत्र में अस्थाई रूप से वो रह रहे होते हैं, वहां के मुद्दों से उनका सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव महसूस न होना, आदि भी कुछ अन्य वजहें होती हैं, जिसके चलते चाहकर भी वो अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
समझा जाता है कि ऐसे लोग मताधिकार के प्रयोग से वंचित नहीं रहें, इसलिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) जैसी प्रणाली विकसित होने के बाद एक सकारात्मक पहल की है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। बताया जाता है कि निर्वाचन आयोग ने प्रवासियों के लिए रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) नामक नई मतदान व्यवस्था का जो मॉडल तैयार किया है, उसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जो जहां है, वहीं से वोट दे सकेगा। इससे मतदान बढ़ाने में भी सहूलियत होगी।
देखा जाए तो भारत निर्वाचन आयोग की यह पहल प्रवासियों के चुनावी हित के लिए एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन ला सकती है। क्योंकि आरवीएम वोटिंग प्रणाली के लागू होने के बाद प्रवासियों को मताधिकार का प्रयोग करने के लिए अपने गृह जिले की यात्रा करने की भी जरूरत नहीं होगी। वहीं, यह व्यवस्था लागू होने पर उन्हें अपनी जड़ों से जुड़ने में भी मददगार साबित होगी। अनुमानित है कि लगभग 45 करोड़ मतदाता दूसरे शहर या राज्य में रहते हैं।
बता दें कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में ऑनलाइन वोटिंग का प्रावधान है, लेकिन सभी देशों के नियम अलग-अलग हैं। भारत में भी पहली बार वर्ष 2010 में ई-वोटिंग की प्रक्रिया का ट्रायल गुजरात निकाय चुनाव में किया गया था। हालांकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, निर्वाचनों का संचालन अधिनियम, निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम में बदलाव की दुरूह प्रक्रियाओं के चलते आयोग इस पर अभी भी विचार ही कर रहा है। वहीं, प्रवासी मतदाता और रिमोट वोटिंग की परिभाषा एवं दायरे को अंतिम रूप देना अभी बाकी है।
इसके अलावा, मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर आधारित आरवीएम को मजबूत, त्रुटिरहित और दक्ष तंत्र के रूप में विकसित किये जाने का यक्ष प्रश्न भी समुपस्थित है, जिसके जवाब स्वरूप इसे इंटरनेट से नहीं जोड़ा जाएगा। बता दें कि इस मशीन को सार्वजनिक क्षेत्र के एक उपक्रम ने विकसित किया है। इसकी एक विशेषता है कि आरवीएम 72 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक साथ मतदान करवा सकती है। इस लिहाज से विशेष केंद्र बनाकर वहां निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या के मुताबिक एक से अधिक मशीन लगानी पड़ सकती हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि किसी भी लोकतंत्र की सफलता वहां पर होने वाले शांतिप्रिय, निष्पक्ष एवं पारदर्शी मतदान पर ही निर्भर करता है। जो कि एक हद तक निर्वाचन आयोग और उसकी पूरी चुनावी प्रक्रियाओं से ही तय होता आया है। इसलिए कभी- कभी पक्ष या विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग और उसके तंत्र की मंशा पर भी सवाल उठते आए हैं। यह बात दीगर है कि ऐसे आरोप अब प्रतिपक्ष की राजनीति का एक फैशन बन चुके हैं। रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) पर सवाल उठाकर कांग्रेस ने एक बार फिर से यही साबित करने की कोशिश की है।
बता दें कि देश की प्रमुख प्रतिपक्षी पार्टी कांग्रेस ने केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा घरेलू प्रवासी मतदाताओं के लिए तैयार किये गए रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि आयोग की इस पहल से चुनाव प्रणाली में जनविश्वास कम होगा। इसलिए आयोग को सभी दलों को साथ लेकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनाव प्रणाली में पूरी पारदर्शिता के साथ विश्वास बहाल हो। जबकि आयोग ने रिमोट वोटिंग पर एक अवधारणा पत्र जारी करते हुए राजनीतिक दलों से सुझाव मांगे हैं, ताकि इसे लागू करने में पेश होने वाली कानूनी, प्रशासनिक प्रक्रियात्मक, तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी सम्बन्धी चुनौतियों पर हासिल उनकी अलग-अलग राय के मुताबिक सामंजस्य बिठाया जा सके और सर्वानुमति बन सके।
आयोग ने मशीन का मॉडल प्रस्तुतीकरण यानी दिखाने के लिए 8 राष्ट्रीय और 57 राज्यीय दलों को 16 जनवरी 2023 को आमंत्रित किया है, जिस दौरान तकनीकी विशेषज्ञों की समिति के सदस्य भी मौजूद रहेंगे। जबकि, उन्हीं से इस बारे में 31 जनवरी 2023 तक अंतिम सुझाव मांगे गए हैं। हम यहां पर यह स्पष्ट कर दें कि रिमोट वोटिंग मशीन का मतलब घर से मतदान करना बिलकुल नहीं है। रिमोट ईवीएम का इस्तेमाल करने के लिए मतदान के दिन लोगों को चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित विशेष केंद्र पर पहुंचकर ही अपने अधिकार का इस्तेमाल करना होगा।
यह बात अलग है कि मतों की गिनती का काम और दूसरे राज्यों में निर्वाचन अधिकारी तक पूरा डाटा भेजना, मतदान के लिए घरेलू प्रवासियों की परिभाषा तय करना, मतदान वाली जगह पर आदर्श आचार संहिता लागू करना, मतदान की गोपनीयता को बनाए रखना और मतदाता की पहचान के लिए पोलिंग एजेंट की सुविधा आदि कुछ नीतिगत चुनौतियां अब भी बाकी हैं, जो इसके अनुपालन की अवधि को साल दर साल बढ़वाती जा रही हैं।
मसलन, परम्परागत रूप में हाथ उठवाने से लेकर आधुनिक तौर पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की बटन दबवाने तक मतदान की विभिन्न प्रणालियों ने एक लंबा सफर तय किया है। इसमें मत पत्र (बैलेट पेपर) द्वारा मतदान पेटी (बैलेट बॉक्स) में मतदान करवाने की प्रक्रिया भी काफी चर्चित और विवादास्पद रही है। कहने का तातपर्य यह कि मतदान द्वारा संख्याबल जानने और बहुमत के आधार पर जीत या हार तय करने की जो प्रक्रिया है, उसके बारे में तरह-तरह के सवाल उठते रहे हैं। कुछ विवाद तो न्यायालय की दहलीज तक जा पहुंचते हैं, जिसमें आया फैसला कभी-कभी पक्ष या विपक्ष दोनों को चौंकाने वाला होता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि हाथ उठवाकर मतदान करवाना और संख्याबल निर्धारित करना जहां प्रत्यक्ष मतदान समझा जाता था। वहीं, मतपत्र द्वारा मतदान पेटी में मतदान करवाना और उसकी गणना करके संख्या बल निर्धारित करना अप्रत्यक्ष मतदान समझा जाता है, क्योंकि इसमें कौन किसको वोट दे रहा है, कोई देख नहीं पाता, सिर्फ मतगणना में शामिल कर्मियों के अलावा। वहीं, ईवीएम द्वारा मतदान करवाने से जहां मतगणना सरल हो जाती है, वहीं कौन किसको वोट दे रहा है, इसकी गोपनीयता भी एक हद तक बनी रहती है। इसलिए उम्मीद है कि आरवीएम के उपयोग से निर्वाचन प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव आएगा एवं जनभागीदारी और अधिक बढ़ेगी।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार
What is rvm how will this help the migrant voters