Mri

दुनिया में प्रभु राम के लाखों मंदिर हैं, लेकिन सेतु केवल एक, क्या है रामसेतु का रहस्य? पौराणिक महत्व से कानूनी विवादों तक, हर सवालों के दिलचस्‍प जवाब

दुनिया में प्रभु राम के लाखों मंदिर हैं, लेकिन सेतु केवल एक, क्या है रामसेतु का रहस्य? पौराणिक महत्व से कानूनी विवादों तक, हर सवालों के दिलचस्‍प जवाब

दुनिया में प्रभु राम के लाखों मंदिर हैं, लेकिन सेतु केवल एक, क्या है रामसेतु का रहस्य? पौराणिक महत्व से कानूनी विवादों तक, हर सवालों के दिलचस्‍प जवाब

करे ही विनय राम सहि संग लक्ष्मण करत विलंब, सिन्धु प्रण प्रति क्षण, बीते समय न होत प्रतीक्षा, देंगे राम अब सिन्धु को शिक्षा।

प्रभु राम जिन्हें विनम्रता और सदाचारी कहा जाता है उन्हें भी एक बार क्रोध आ गया था। रामचरित मानस के अनुसार लंका पर चढ़ाई के लिए सेतु निर्माण आवश्‍यक था। इसके लिए भगवान श्री राम अपने भ्राता लक्ष्‍मण के साथ तीन दिन तक समुद्र से रास्‍ता देने की प्रार्थना करते रहे। लेकिन समुद्र नहीं माना। इस संबंध में तुलसीदास जी ने लिखा है-

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥

तब भगवान श्री राम ने क्रोध में कहा था कि आप लोककल्याण के मार्ग को भूलकर, अत्याचार के मार्ग पर जा चुके हैं। इसलिए आपका विनाश आवश्यक है। उनके ऐसा निश्चय करते ही समुद्र देवता थर-थर कांपने लगते हैं तथा प्रभु श्री राम से शांत होने की प्रार्थना करते हैं। सागर ने ही रामजी से नल नील की खूबी बताई। समुद्र देव ने बताया, श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन संभाल लूंगा। आपकी सेना में नल एवं नील नामक दो वानर हैं, जो इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं।

इसे भी पढ़ें: लिज ट्रस ने इस्तीफा देकर जॉर्ज कैनिंग को छोड़ा पीछे, जिसके बेटे ने कुचला था 1857 का विद्रोह, 10 कारण जिसकी वजह से ब्रिटेन में आया ये संकट

श्रीराम का सेतुधाम यानी एक ऐसी कहानी जिसे लोग विज्ञान का हवाला देकर फसाना मानते रहे। लेकिन कुछ साल पहले ही अमेरिकी साइंस चैनल ने दावा किया कि राम सेतु वाकई मौजूद था। उनका कहना है कि रामेश्वरम और श्रीलंका के  बीच बहुत सारे ऐसे पत्थर मिलते हैं जो सात हजार साल पुराने हैं। यहां तक की विज्ञान के जानकार भी राम सेतु के अस्तित्व को मान रहे हैं। जिसका जिक्र रामायण में है, अथाह समुंद्र के बीच का रामसेतु कहां है? अगर है तो किस रूप में है? भारत और श्रीलंका के बीच के वो आठ टापू जो सबूत बनकर आज भी मौजूद हैं। जो आज भी राम कथाों की गवाही देते हैं। रामसेतु का संबंध रामायण से है। श्रीराम और उनकी वानर सेना ने माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए एक पुल बनाया था, जिसे रामसेतु नाम दिया गया। ये पुल मनुष्य द्वारा बनाया गया है या प्राकृतिक है इस बात पर पिछले कई सालों से बहस चल रही है। 

कैसे हुई विवाद की शुरुआत

राम सेतु, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर पंबन द्वीप और मन्नार द्वीप के बीच बनी एक श्रृंखला है। रामसेतु को आदम का पुल भी कहा जाता है। रामायण महाकाव्य के अनुसार सीता को बचाने के लिए श्रीलंका पहुंचने के लिए भगवान राम व उनकी वानर सेना के द्वारा इस पुल का निर्माण किया गया था। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजों ने बड़े जहाजों को भारतीय तट पर नेविगेट करने या पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच यात्रा करने में सक्षम बनाने के लिए इस चैनल को ड्रेज करने की योजना बनाई थी। जबकि ब्रिटिश योजनाएँ कभी सफल नहीं हुईं, इस परियोजना को स्वतंत्र भारत में सेतुसमुद्रम परियोजना के रूप में पुनर्जीवित किया गया था। हालाँकि, इस प्रस्ताव का उन समूहों द्वारा लगातार विरोध किया गया है जो संरचना और रामायण के बीच संबंध में विश्वास करते हैं। नतीजतन, स्वतंत्र भारत के राजनीतिक परिदृश्य में इस बात पर बहस छिड़ गई कि क्या राम सेतु वास्तव में भगवान राम द्वारा बनाया गया था या नहीं।

इसे भी पढ़ें: राष्ट्रपति वही कैबिनेट नई, नए चेहरों को मिलेगी जगह, इन फैसलों के जरिए जिनपिंग बनेंगे चीन के इतिहास के सबसे ताकतवर व्यक्ति

राम सेतु के प्रति औपनिवेशिक रवैया

ये ध्यान देने योग्य है कि भारतीय धार्मिक मान्यताओं को बदनाम करने की औपनिवेशिक प्रथा के विपरीत, जब राम सेतु की बात आई तो यूरोपीय दृष्टिकोण ने संरचना के आसपास की पौराणिक कथाओं को सूक्ष्म रूप से मजबूत किया। दो पुस्तकों - एडम्स ब्रिज (रूटलेज 2023) और राम सेतु (रूपा 2023) के लेखक प्रोफेसर अरूप के. चटर्जी बताते हैं, "उनके पास ज्ञान-मीमांसा विनम्रता की बहुत सतर्क नीति थी।" "औपनिवेशिक भूवैज्ञानिकों ने राम सेतु के आसपास के मिथक की सत्यता पर कोई रुख नहीं अपनाया। उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें यह समझाने की ज़रूरत नहीं है कि राम एक वास्तविक व्यक्ति थे या नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं को बहुत सम्मान के साथ देखा जाता है। 

आजादी के बाद राम सेतु विवाद

स्वतंत्र भारत की पहली सरकार द्वारा सेतुसमुद्रम परियोजना समिति का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष ए रामास्वामी मुदलियार थे। समिति ने सिफारिश की कि नहर परियोजना को तूतीकोरिन हार्बर परियोजना से जोड़ा जाए। सेतुसमुद्रम परियोजना के समर्थकों ने तर्क दिया कि इससे तमिलनाडु के पिछड़े जिलों जैसे तिरुनेवेली और रामनाथपुरम को विकसित करने में मदद मिलेगी। 1963 में भारत सरकार ने गहरे समुद्री बंदरगाह को एक प्रमुख समुद्री केंद्र में बदलने के लिए तूतीकोरिन हार्बर परियोजना को मंजूरी दी। हालांकि, सेतुसमुद्रम परियोजना को आगे नहीं बढ़ाया गया। चटर्जी के अनुसार एडम्स ब्रिज को ड्रेजिंग की पारिस्थितिक समस्याओं और आर्थिक लागतों को ध्यान में रखते हुए मुदलियार समिति ने इस क्षेत्र को नहर बनाने के खिलाफ सलाह दी थी और इसके बजाय एक ओवरलैंड ब्रिज बनाने का सुझाव दिया था। समिति के सुझाव को वास्तव में स्वीकार कर लिया गया था लेकिन परियोजना को अंततः छोड़ दिया गया था। हालाँकि, परियोजना में रुचि एक बार फिर 1983 में और फिर 1994 में पुनर्जीवित हुई, जब तमिलनाडु सरकार ने परियोजना को अद्यतन और विस्तृत किया। तब तक सेतुसमुद्रम परियोजना एक आदर्श में बदल चुकी थी, जिसका चुनावी अभियानों में तेजी से उपयोग किया जा रहा था। 1999 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने स्थानीय सहयोगी, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के दबाव में इस परियोजना को हाथ में लिया। 2008 में प्रकाशित एक शोध पत्र में राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट ने दावा किया कि "2000-2001 के बजट में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सेतुसमुद्रन परियोजना की व्यवहार्यता के लिए 4.8 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। परियोजना तब 2004 में एनडीए शासन के तहत शुरू हुई, जब वाजपेयी सरकार ने शिपिंग चैनल बनाने के लिए 3500 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी। उसी समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्यों ने सेतु के विनाश की आशंका के खिलाफ आक्रोश में परियोजना के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए। इन विरोध प्रदर्शनों का मंचन किया गया था और केंद्र सरकार के बजाय डीएमके को निशाना बनाया गया था।

इसे भी पढ़ें: तेजी से बढ़ रहा एक साथ 2 कंपनियों में नौकरी का ट्रेंड, क्या भारत में है लीगल? मूनलाइटिंग और इस पर छिड़ी बहस के बारे में जानें

राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल 

परियोजना को पुनर्जीवित करने में पहला ठोस कदम हालांकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन द्वारा उठाया गया था जो 2004 में सत्ता में आया था। तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने 2 जून 2004 को इस परियोजना का उद्घाटन किया और जुलाई 2006 में ड्रेजिंग शुरू हुई। हिंदू राष्ट्रवादियों ने तुरंत इस तरह के कदम पर आपत्ति जताई, जिसे वे एक पवित्र स्थल मानते थे। उनमें से प्रमुख सुब्रमण्यम स्वामी थे जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके लिए सरकार ने राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए एक जवाबी हलफनामा दायर किया, जो उनके अनुसार विशुद्ध रूप से पौराणिक कथाओं का एक उत्पाद बताया। 

परियोजना की वर्तमान स्थिति

सेतुसमुद्रम परियोजना का पर्यावरणीय आधार पर भी विरोध किया गया है, कुछ का दावा है कि यह समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाएगा, और शोल की रेखा के ड्रेजिंग से भारत का तट सुनामी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगा। मार्च 2018 में, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना के निष्पादन में राम सेतु प्रभावित नहीं होगा। 

 सुब्रमण्यम की याचिका

रामसेतु को तोड़ने की योजना यूपीए सरकार के दौरान अमल में लाई जाने थी। जिसके बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध किया। उन्होंने यूपीए सरकार की योजना पर रोक की मांग की थी। जिसके बाद भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हैं।  

राम सेतु का वर्णन किन-किन शास्त्रों में है
वाल्मिकी रामायण में लिखा है कि इस पुल को बनाने के लिए हाई टेक्नलॉजी का इस्तेमाल किया गया। बंदर लोग मशीनों पर लाद कर पत्थर यहां तक लाए थे। 100 योजन लंबा पुल था। एक योजन को 13 से 15 किलोमीटक का माना जाता है। वाल्मिकी रामायण में ही लिखा है कि इतनी लंबाई तक कुछ बंदर रस्सी पकड़ कर खड़े थे। ताकी पुल का निर्माण एक दम सीधा हो। वाल्मिकी रामायण में इस पुल का नाम नल सेतु था। इसके अलावा कालीदास के रघुवंश, विष्णु पुराण, स्कंदपुराण, अग्निपुराण , ब्रह्म पुराणों में भी सेतु का जिक्र है। -अभिनय आकाश

What is the secret of ram setu interesting answers to every question

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero