परिवारवादी दलों को हो रहे नुकसान को देखते हुए अब्दुल्ला ने छोड़ा है पार्टी अध्यक्ष पद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की राजनीति में परिवारवाद को सबसे बड़ी बुराई बताते हुए जनता से इसके खिलाफ उठ खड़े होने की अपील की जिसके बाद देखने में आया कि देश के कई राज्यों से परिवारवादी दल सत्ता से बाहर हो गये। यही नहीं भारत की सबसे बड़ी परिवारवादी पार्टी मानी जानी वाली कांग्रेस की भी बुरी हालत हो गयी जिसके बाद हाल में हुए पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव से गांधी परिवार दूर ही रहा। इसके अलावा हाल ही में एक और परिवारवादी दल शिरोमणि अकाली दल बादल ने भी पार्टी संगठन में बड़े सुधारों की घोषणा करते हुए 'एक परिवार एक टिकट' नीति बनाने का ऐलान किया। अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष पद से हटने की घोषणा करते हुए कहा है कि नयी पीढ़ी को जिम्मेदारी सौंपने का समय आ गया है। अब्दुल्ला के इस कदम की घोषणा के बाद व्यापक स्तर पर अटकलें लगाई जा रही हैं कि 85 वर्षीय फारूक अब्दुल्ला पार्टी संरक्षक की भूमिका निभाएंगे और उनके बेटे और नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला अब पार्टी के नए प्रमुख बन सकते हैं।
श्रीनगर संसदीय सीट से लोकसभा के सदस्य फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि पांच दिसंबर को होने वाले जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष पद के चुनाव को पार्टी का कोई भी सदस्य लड़ सकता है। उन्होंने कहा है कि अध्यक्ष पद का चुनाव पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होगा। फारूक अब्दुल्ला पहली बार 1983 में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष बने थे और 2022 में उन्होंने पद छोड़ने का ऐलान किया है। अब देखना होगा कि उनके बेटे इस पद के लिए चुनाव लड़ते हैं या किसी और नेता को अध्यक्ष बनाया जाता है। यदि किसी और को पार्टी की कमान मिलती है तो यह राजनीति से परिवारवाद के खत्म होने की दिशा में एक और कदम भी होगा।
लेकिन सवाल यह भी उठेगा कि यदि फारूक अब्दुल्ला पार्टी के अध्यक्ष नहीं रहेंगे और उनके बेटे भी पार्टी के अध्यक्ष नहीं बनेंगे तो अब्दुल्ला पिता-पुत्र करेंगे क्या? पिछले दिनों फारूक अब्दुल्ला ने घोषणा की थी कि यदि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों से पहले केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा समाप्त कर पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं बहाल किया गया तो उनके बेटे विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। केंद्र सरकार यह साफ कर चुकी है कि पहले चुनाव कराये जायेंगे उसके बाद पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जायेगा। ऐसे में यदि फारूक अब्दुल्ला की घोषणा के हिसाब से उमर अब्दुल्ला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ते तो हो सकता है कि वह सिर्फ अपनी पार्टी के लिए प्रचार कार्य ही करें और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुटें।
यहां यह भी देखना होगा कि अब गुपकार गठबंधन का क्या होगा। जिसका गठन फारूक अब्दुल्ला की पहल पर किया गया था। इस गठबंधन में जम्मू-कश्मीर की कई पार्टियां शामिल हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए की वापसी कराना है लेकिन इस गुपकार गठबंधन में भी जिस तरह मतभेद समय-समय पर सामने आ रहे हैं उससे इसके भविष्य पर सवालिया निशान लग गये हैं। गुपकार गठबंधन से सज्जाद लोन जैसे नेता तो अलग हो ही चुके हैं साथ ही कई बार देखने में आया है कि विभिन्न मुद्दों को लेकर फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती में मतभेद रहे हैं।
दूसरी ओर, जहां तक फारूक अब्दुल्ला के पार्टी अध्यक्ष पद से हटने की बात है तो इसका कारण यह भी हो सकता है कि अब्दुल्ला पिता-पुत्र यह भी समझ चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर में वर्षों तक उन्होंने जिस अंदाज में राजनीति की अब वह चलने वाला नहीं है क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के लोगों ने जो बदलाव देखा है वह उन्हें अच्छा लग रहा है। केंद्रीय योजनाओं का लाभ, भ्रष्टाचार और आतंक का तेजी से सफाया होना लोगों को भा रहा है। इसलिए आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस की राजनीति का और नया अंदाज देखने को मिल सकता है।
अब्दुल्ला पिता-पुत्र यह भी समझ रहे हैं कि विधानसभा चुनावों में उनका मुकाबला अब बेहद मजबूत पार्टी भाजपा से होगा। भाजपा ने जम्मू के अलावा खुद को कश्मीर घाटी में भी जिस तरह मजबूत किया है उससे घाटी के सियासी दलों की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है। इसके अलावा इस बार पीडीपी से अलग हुई जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद की पार्टी आदि जैसे कुछ नये दल भी मैदान में हैं इसलिए अब्दुल्ला पिता-पुत्र अपनी पार्टी पर उठने वाले हर सवाल का जवाब पहले ही तैयार कर लेना चाहते हैं, अब्दुल्ला पिता-पुत्र अपनी पार्टी को नया रंग-रूप देने की कोशिश कर रहे हैं इसलिए चुनावों से पहले उनकी ओर से कुछ और चौंकाने वाले कदमों की घोषणा कर दी जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बहरहाल, जम्मू-कश्मीर की जनता समझदार है। आज पंचायत और डीडीसी प्रतिनिधियों के माध्यम से जिस प्रकार विकास की बयार गांवों, कस्बों और शहरों तक पहुँची है वह देखकर लोगों को अहसास हुआ है कि उन्हें अब तक कितना ठगा गया और लूटा गया। जम्मू-कश्मीर आज नये पथ पर चल रहा है और देश के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते जाने का संकल्प सिद्ध करने का प्रण ले चुका है। ऐसे में अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन नेता चुनावी दौड़ से हट रहा है या कौन उसमें शामिल हो रहा है। वैसे भी अब्दुल्लाओं और मुफ्ती के शासन से जनता त्रस्त थी, यदि फारूक पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के साथ ही राजनीति से संन्यास का भी ऐलान कर देते तो यह भी राज्य के हित में होता।
-गौतम मोरारका
Why farooq abdullah left jammu kashmir national conference president post