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Gyan Ganga: भगवान श्रीकृष्ण आखिर क्यों राक्षसी पूतना से नजरें नहीं मिला रहे थे?

Gyan Ganga: भगवान श्रीकृष्ण आखिर क्यों राक्षसी पूतना से नजरें नहीं मिला रहे थे?

Gyan Ganga: भगवान श्रीकृष्ण आखिर क्यों राक्षसी पूतना से नजरें नहीं मिला रहे थे?

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 

प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। 

पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि— कंस के कहने पर पूतना बाल कृष्ण को मारने के लिए ही गोकुल में प्रवेश करा गई। उधर मथुरा में वसुदेव जी ने नन्द बाबा को समझाया और कहा– तुम्हारे गोकुल में उत्पात होने वाला है। अब तू इधर-उधर कहीं मत जाओ। सीधे जाकर अपना गोकुल संभाल। यह सुनते ही नन्दबाबा की धड़कन तेज हो गई, तुरंत लाठी टेकते-टेकते गोकुल की तरफ भागे। हे भगवान ! मेरे लाला की रक्षा करो ऐसी प्रार्थना करते हुए नन्दबाबा घर पहुँचे, लेकिन यह क्या? उनके पहुँचने के पहले ही घर पर पूतना मौसी पहुँच गई। 

आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं– 
गाँव नगर में भ्रमण करती हुई पूतना बालघातिनी गोकुलधाम में पहुँच गई। बड़ा दिव्य सौंदर्य है पूतना का। साक्षात श्रीदेवी लग रही है। ऐसा लगता है कि भगवती लक्ष्मी वैकुंठ से नारायण का दर्शन करने आई हो। पूतना के बनावटी सौंदर्य को लोग देखते ही रह जाते हैं। गोपियों का झुंड बधाई देने जा रहा था, उसी झुंड में मिलकर नंदभवन में प्रवेश कर गई। दूसरी गोपिया बधाई दे रही थीं उन्हीं के साथ मिलकर पूतना ने भी कहा- यशोदा बहन बधाई हो। जैसे ही मैंने सुना बुढ़ापे में तेरो लाला भयो है अपनी खुशी रोक नहीं सकी, चली आई बधाई देने। तू मुझे आँखें फाड़कर ऐसे क्यो देख रही है? मोको पहचाने नहीं का। यशोदा बड़ी चक्कर में पड़ गई। हे भगवान ये मेरी बहना कहाँ से आ गई। आज से पहले मैंने इसकी सूरत कभी नहीं देखी। पर इतने प्रेम से आई है तो होगी, कोई जान-पहचान की खास बहन नहीं, तो चचेरी ममेरी फुफेरी दूर के रिश्ते में। यदि मैं कहूँ, कि पहचानूँ नहीं तो बुरा मान जाएगी इसलिए सबको यश देने वाली यशोदा सबका स्वागत कर रही हैं। आओ! बहन तुम सबके आशीर्वाद से ही तो हमारे घर में चमत्कार हुआ है। तू मेरे लाला को आशीर्वाद देकर आ, फिर बात करेंगे। जाओ मेरा लाला पालने में सो रहा है जगाना मत, चुपचाप आशीर्वाद देकर आ जाना। ठीक है कहकर पूतना पालने की ओर चल पड़ी। प्रभु ने तिरछी नजर से देख ली, ओ हो ! मौसीजी आ रही हैं। पूतना को देखते ही भगवान ने आँखें बंद कर लीं।

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विबुध्यतामबालकमारिकाग्रहमचराचरात्माSSसनिमीलितेक्षण; 
अनंतमारोपयदंकमन्तकम्, यथोरगम् सुप्तमबुद्धिरज्जुधी; ॥ 

भगवान तो चराचर जगत की आत्मा हैं। कौन किस भाव से आ रहा है सब जानते हैं। परंतु पूतना को देखते ही नेत्र क्यो बंद कर लिये। इस पर संतों ने सुंदर सुंदर भाव प्रकट किए हैं। एक संत कहते हैं- प्रभु ने इसलिए आँख बंद कर ली कि सोचे कि अभी माखन मेवा ठीक से खा नहीं पाया कि यह जहर पिलाने चली आई। जहर पीना मेरा काम नहीं यह तो भोलेबाबा का है। इसलिए प्रभु आँख बंद करके शिवजी की स्तुति करने लगे। एक संत का कहना है कि भगवान की दो आँखें हैं सूर्य और चंद्र। मानो दोनों कहते हैं कि पूतना को सूर्यलोक और चंद्रलोक मत भेजो। बाकी जहाँ भेजना है भेजो इसलिए नेत्र बंद हो गए। एक संत का विचार है- प्रभु ने सोचा, मैं हूँ मायापति और यह है मायावती। मायापति के सामने किसी की माया नहीं टिकती। मायावती की माया मायापति के सामने नहीं चलेगी। अगर मेरी नजर इस पर पड़ी कि इसकी माया मिटी। माया मिटी तो यह असली राक्षसी रूप में आ जाएगी जिसे देखते ही घर में भगदड़ मच जाएगी, उत्सव का आनंद किरकिरा हो जाएगा। जैसी सुंदरी बन के आई है, वैसी ही रहने दो। मैं ही अपनी आंखें बंद कर लेता हूँ। 

मैंने अब तक दिव्य माताओं का ही दूध पिया है, अदिति मैया, कौशल्या, देवकी और यशोदा मैया का। यह पहला अवसर है कि पूतना जैसी बच्चों की हत्यारिन राक्षसी का दूध पीना पड़ेगा। जैसे बच्चों को कड़वी दवा पीनी होती है तो माँ कहती है बेटा आँख मूँदकर पी जा। प्रभु को लगता है कि इस हत्यारिन का स्तन पान करना ही पड़ेगा तो चलो नेत्र बंद कर ले। आंखों से आंखें जब मिलती हैं तो प्रेम जागृत होता है मेरे नेत्र तो ऐसे ही चंचल हैं। मेरी चंचल आंखों से पूतना की आंखें चार न हो जाएं। इसको मेरे प्रति प्रेम हो गया तो मुझको मारना छोड़ देगी और यहाँ से जाकर हमारे साथियों को जहर पिला देगी। इसलिए मेरे नेत्रों से पूतना के नेत्र न मिल जाएँ अत; नेत्र बंद कर लिए। मानो प्रभु कहना चाहते हो, कि दृष्टि उस पर डालो जो सुपात्र हो कुपात्र पर दृष्टि डालोगे तो दृष्टि दूषित हो जाएगी। इसीलिए तो वेद में वेदभगवान ने कहा—

भद्र्म कर्णेभि; शृणुयाम देवा भद्र्म पश्येमाक्षभीर्यत्रा ------
                   
अक्षिभि; भद्र्म पश्येम। आंखों से दिव्य कल्याणकारी दृश्यों के दर्शन करो जीव का कल्याण होगा। देखिए एक सुंदरी रामावतार में भी आई थी श्रीमति सूर्पणखा देवी शादी-सुदा थी। विद्युतदेह राक्षस की धर्म पत्नी। कहने लगी त्रैलोक में मेरे जैसे सुंदरी नहीं है योग्य पति नहीं मिला क्वारी बैठी हूँ। आज आपको देखकर मन मे संतोष हुआ कोई मेरे लायक मिला। पूरे पूरे तो आप भी नहीं हो थोड़ी कमी आप में भी है, साँवले काले हो पर कोई बात नहीं चलेगा। तुमको देखकर मेरा मन माना। भगवान को नजर उठाकर सूर्पणखा की तरफ देखना चाहिए कि आखिर यह विश्वसुंदरी कौन है? पर नहीं देखा, किसको देखा सीताजी की तरफ देखा। भगवान मुस्कुरा रहे हैं देख रहे हैं जानकीजी को और बात कर रहे हैं सूर्पणखा से। जो नजरें मिलाने लायक हो उससे मिलाओ। सीता दृष्टि की पात्र है न कि सूर्पणखा। गोस्वामीजी इस बात के गवाह हैं। सीता चितई कहि प्रभु बाता अहहि कुमार मोर लघु भ्राता ॥  
                           
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने वहाँ दृष्टि डाली जो दृष्टि का पात्र था। इस प्रकार बड़े ही  सुंदर-सुंदर भाव संतों ने दिए हैं। …………
शेष अगले प्रसंग में ---------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

-आरएन तिवारी

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