8 तो केवल झांकी, 42 अभी बाकी: कभी संख्या थी 1000, फिर भारत से कैसे विलुप्त हुए चीते, वापसी के लिए कूनो नेशनल पार्क को क्यों चुना गया?
चीते की चाल, बाज की नजर, बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते, रौबदार आवाज में जब अपनी मूंछों को ताव देते हुए रणवीर सिंह ने पर्दे पर इस डॉयलॉग को बोला तो सिनेमाघरों में सीटियां ही सीटियां नजर आई। सूट और सफ़ेद जूते पहने डॉयलॉग डिलीवरी को एक सॉफ़्ट टच देते हुए जब अजीत के मुंह से 'सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है' निकला तो हिंदी सिनेमा के इतिहास में ये डॉयलाग अमर हो गया। इन डॉयलॉग्स के बोलने भर ने न केवल इनके किरदारों में जान आई बल्कि हमेश-हमेशा के लिए लोगों के दिलो-दिमाग पर भी जगह बनाई। फिल्मों में शेर से लेकर चीतों तक से फाइट करते फिल्मी किरदारों से हम कई बार रूबरू हुए। लेकिन वास्वकिता में हमारे देश से चीता विलुप्त होता गया। 1947 का साल कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव को शिकायत मिली की कोई जंगली जानवर मवेशियों को मार रहा है। कुछ ग्रामीणों को भी मार चुका है। इसके बाद महाराजा शिकार पर निकले। उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि तीन चीतों को ढेर कर दिया। एक वक्त था जब भारत में घने जंगल और उनमें खूब सारे चीते हुआ करते थे। महाराजा और रसूकदार उन्हें जंगलों से पकड़ लाते और अपने महलों में बड़े जतन से पाला करते। 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया। अब 70 साल बाद भारत की जमीन पर चीतों की रफ्तार फिर से दिखाई देने लगी। नामीबिया से 8 चीतें मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क लाए गए। अब इन चीतों पर भारत में विलुप्त हो चुकी प्रजाति की संख्या को फिर से बढ़ाने की जिम्मेदारी होगी। यूं तो ये चीते नवंबर 2021 में ही भारत आने वाले थे। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसमें रुकावट आई और चीतों के पहुंचने की प्रक्रिया धीमी हो गई। शुरुआत में 8 चीते कूनो पहुंचे हैं। अगले पांच सालों में चीतों की संख्या को 50 करने की तैयारी है।
भारत में चीते कैसे विलुप्त हो गए?
चीता का देश में एक प्राचीन इतिहास रहा है। मध्य प्रदेश के मंदसूर में चतुर्बुंज नाला में एक 'पतली चित्तीदार बिल्ली के शिकार का शिकार' की नवपाषाण गुफा पेंटिंग मिली है। माना जाता है कि 'चीता' नाम की उत्पत्ति संस्कृत शब्द चित्रक से हुई है, जिसका अर्थ है 'चित्तीदार'। भारत में चीतों की आबादी काफी व्यापक हुआ करती थी। यह जानवर उत्तर में जयपुर और लखनऊ से लेकर दक्षिण में मैसूर तक और पश्चिम में काठियावाड़ से पूर्व में देवगढ़ तक पाए जाते थे। माना जाता है कि चीता 1947 में भारतीय परिदृश्य से गायब हो गए जब कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने शिकार करते हुए भारत में अंतिम तीन दर्ज एशियाई चीतों को गोली मार दी। 1952 में भारत सरकार द्वारा चीता को आधिकारिक तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया गया था। कुल मिलाकर कहा जाए तो चीता के विलुप्त होने के लिए अति-शिकार एक प्रमुख वजह था। फिर जलवायु परिवर्तन और जंगलों के कम होने से इन्हें पर्याप्त शिकार नहीं मिल पाते थे। इसलिए इनकी कमी होने लगी। 1940 के दशक से चीता जॉर्डन, इराक, इज़राइल, मोरक्को, सीरिया, ओमान, ट्यूनीशिया, सऊदी अरब, जिबूती, घाना, नाइजीरिया, कजाकिस्तान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे 14 देशों में विलुप्त हो गया है।
चीते को वापस क्यों लाया जा रहा है?
चीतों को वापस लाने के पीछे का उद्देश्य न केवल भारत के 'ऐतिहासिक विकासवादी संतुलन' को बहाल करना है, बल्कि आबादी के एक समूह को विकसित करना भी है जो पशु के वैश्विक संरक्षण में मदद करेगा। चूंकि यह एक प्रमुख प्रजाति है, इसलिए चीता के संरक्षण से घास के मैदान-जंगल और इसके बायोम और आवास को पुनर्जीवित किया जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे प्रोजेक्ट टाइगर जंगलों और इनमें पाई जाने वाली सभी प्रजातियों के लिए किया है। प्रोजेक्ट टाइगर के परिणामस्वरूप भारत के 52 टाइगर रिजर्व में पाए जाने वाले 250 जल निकायों का संरक्षण भी हुआ है। चीता परियोजना का भी ऐसा ही प्रभाव होने की संभावना है।
चीते को वापस लाने के प्रयास पहले भी हुए हैं?
1970 के दशक में भारत सरकार ने विदेश से चीतों को लाने पर विचार करना शुरु किया। इसके बाद ईरान से शेरों के बदले चीते लाने को लेकर बातचीत भी शुरू की गई। डॉ रंजीतसिंह को इंदिरा गांधी सरकार की ओर से ईरान के साथ बातचीत करने का काम सौंपा गया था। इस बारे में डॉ रंजीत सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इंदिरा गांधी चीते को वापस लाने के लिए बहुत उत्सुक थीं। वार्ता अच्छी तरह से चली और ईरान ने हमें चीता का वादा किया था। लेकिन हमारी संभावित रिलीज साइटों को शिकार आधार में वृद्धि और अधिक सुरक्षा के साथ अपग्रेड करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, इस प्रक्रिया के दौरान, देश में आपातकाल की घोषणा की गई और इसके तुरंत बाद, ईरान के शाह का शासन गिर गया। चीतों को भारत लाने की कोशिश साल 2009 में तेज हुई। 2020 में ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के प्रयासों के लिए हरी झंडी दे दी। इसके बाद एक लंबी प्रक्रिया के बाद नामाबिया से भारत को चीतें प्राप्त हुए। भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट बोर्ड के सदस्य और भारत सरकार के पूर्व निदेशक डॉ एम के रंजीतसिंह की अध्यक्षता में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने भारतीय वन्यजीव संस्थान के सदस्यों के साथ उन साइटों का आकलन पूरा कर लिया है जहां चीता को स्थानांतरित किया जा सकता है।
कुनो नेशनल पार्क को चुनने की वजह?
चीतों को कहाँ रखा जाएगा इसके लिए वर्ष 20210 और 2012 के बीच मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात और यूपी में सर्वे क्या गया था। इनमें सबसे उपयुक्त जगह कूनो नेशनल पार्क को पाया गया। इस पार्क के जलवायु, वनस्पति, शिकार घनत्व और प्रतिस्पर्धा शिकारियों का आंकलन किया गया। ये इन चीतों के लिए सुरक्षित और बेहतर पाया गया। चीते अधिकतर छोटे जानवरों का शिकार करना पसंद करते हैं। सबसे अधिक शिकार ये चीतल और हिरण की प्रजाति का करते हैं और यहां इनकी तादाद काफी है। इसके अलावा चीते सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, शाही, भालू, सियार, बिल्लियां जैसे जानवर भी हैं जिनका वो शिकार कर सकते हैं। कुनो राष्ट्रीय उद्यान में शेर पुनर्वास परियोजना की वजह मध्य प्रदेश वन विभाग ने पहेल ही 25 गावों में से 24 गावों को स्थानांतरित कर दिया था। फिर इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया। ऐसे में अब यहाँ कोई इंसानी बस्ती नहीं है। केवल एक गांव बागचा, जिसकी आबादी 148 है, जंगल के किनारे पर बसा है। हालांकि, चीते मनुष्यों को कम ही नुकसान पहुंचाते हैं। - अभिनय आकाश
Why was the kuno national park chosen to cheetah return