भगवान कुबेर का इस तरह करें पूजन, धन-यश और आरोग्य स्थायी रूप से साथ रहेगा
धन, सुख और वैभव की कामना हर किसी को होती है। सभी भगवान गणेश, माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु का पूजन कर उन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं ताकि सुख-संपत्ति की कोई कमी नहीं हो। यदि आप इस सुख-संपत्ति को स्थायी रखना चाहते हैं और धन के साथ-साथ आरोग्य भी चाहते हैं तो भगवान कुबेर का पूजन अवश्य करें। महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियाएं श्रीविद्यार्णव, मन्त्रमहार्णव, मन्त्रमहोदधि, श्रीतत्वनिधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में बतायी गयी हैं। इसके अनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्षरात्मक छोटे−बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। मंत्रों के अलग−अलग ध्यान भी निर्दिष्ट हैं। इनके एक मुख्य ध्यान−श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। इनका वर्ण गारुडमणि या गरुणरत्न के समान दीप्तिमान पीतवर्णयुक्त बताया गया है और समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान होकर इनके पार्श्वभाग में निर्दिष्ट हैं। ये किरीट−मुकुटादि आभूषणों से विभूषित हैं। इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान शिव के परम सुहृद भगवान कुबेर का ध्यान करना चाहिए−
कुबेर का ध्यान यह मंत्र पढ़कर लगाएं−
मनुजवाहम्विमानवरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम्।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम्।।
मंत्र महार्णव तथा मंत्र महोदधि आदि में निर्दिष्ट महाराज कुबेर के कुछ मंत्र इस प्रकार हैं−
1. अष्टाक्षरमंत्र− ओम वैश्रवणाय स्वाहा।
2. षोडशाक्षरमंत्र− ओम श्री ओम ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।
3. पंचत्रिंशदक्षरमंत्र− ओम यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
इसी प्रकार वहां बालरक्षाकर मंत्र−यंत्र भी निर्दिष्ट हैं, जिसमें 'अया ते अग्ने समिधा' आदि का प्रयोग होता है। यह मंत्र बालकों के दीर्घायुष्य, आरोग्य, नैरुज्यादि के लिए बहुत उपयोगी है। इस प्रकार बालकों के आरोग्य लाभ के लिए भी भगवान कुबेर की उपासना विशेष फलवती होती है। प्रायः सभी यज्ञ−यागादि, पूजा−उत्सवों तथा दस दिक्पालों के पूजन में उत्तर दिशा के अधिपति के रूप में कुबेर की विधिपूर्वक पूजा होती है। यज्ञ−यागादि तथा विशेष पूजा आदि के अंत में षोडशोपचार पूजन के अनन्तर आर्तिक्य और पुष्पांजलि का विधान होता है। पुष्पांजलि में तथा राजा के अभिषेक के अंत में 'ओम राजाधिराजाय प्रसह्म साहिने' इस मंत्र का विशेष पाठ होता है, जो महाराज कुबेर की ही प्रार्थना का मंत्र है। महाराज कुबेर राजाओं के भी अधिपति हैं, धनों के स्वामी हैं, अतः सभी कामना फल की वृष्टि करने में वैश्रवण कुबेर ही समर्थ हैं।
व्रतकल्पद्रुम आदि व्रत ग्रंथों में कुबेर के उपासक के लिए फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी से वर्ष भर प्रतिमास शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर व्रत करने के अनेक विधान निर्दिष्ट हैं। इससे उपासक धनाढ्य तथा सुख−समृद्धि से संपन्न हो जाता है और परिवार में आरोग्य प्राप्त होता है। सारांश में कहा जा सकता है कि कुबेर की उपासना ध्यान से मनुष्य का दुरूख दारिद्रय दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिव के अभिन्न मित्र होने से कुबेर के भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा होती है और उनकी कृपा से साधक में आध्यात्मिक ज्ञान−वैराग्य आदि के साथ उदारता, सौम्यता, शांति तथा तृप्ति आदि सात्विक गुण भी स्वाभाविक रूप से संनिविष्ट हो जाते हैं।
-शुभा दुबे
Worship lord kuber in this way wealth and health will be together permanently