दुनिया में कैसे हुई पितृसत्ता की शुरुआत, ईरान से अफगान सभी इसमें फंसे, क्या इससे छुटकारा दिला पाएगा विकासवाद?
एक बहुत ही पुराना और घिसा-पिटा डॉयलॉग है हर कामयाब आदमी के पीछे औरत का हाथ होता है। लेकिन क्या आपने कभी महिलाओं की सफतला की बात होते देखी है। हमेशा से औरत- ममता, प्रेम और स्नेह का रूप हैं। यही तो हमने बचपन से पढ़ा है। अपनो के लिए हर बार कुर्बानी करनेवाली। खुद को पीछे रखनेवाली। वैसे जन्म तो दो शरीर ही लेते हैं। लेकिन जब दोनों के सपने देखने की बात होती है तो लड़के को किसी योद्धा की माफिक और लड़की को किसी नाजुक राजकुमारी की तरह ही बड़ा करने का प्लान होने लगता है। वैसे मीराबाई चानू, रेनू बाला, कर्नम मल्लेश्वरी, सिंपल कौर जैसे नामों से तो आप भलि-भांति परिचित होंगे। नहीं भी हैं तो जानकारी दुरुस्त करने के लिए बता दूं कि ये वो महिलाएं हैं जो एक झटके में सौ किलो से ज्यादा का भार अपने सिर के ऊपर ले जाकर मैडल जीत चुकी हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि जिम्मेदारी के बंटवारे के लिए भुजाओं के जोर का हवाला देना खालिस बेमानी है। वैसे तो बहुत से लोग मानते हैं कि पितृसत्ता हमेशा से रही है। लेकिन निश्चित रूप से क्या ऐसा था? इसकी शुरुआत कहां से हुई? पितृसत्ता, दुनिया के कुछ हिस्सों में कुछ हद तक कमजोर होने के बाद फिर से कैसे मजबूत हो गई। आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं। सभी कुछ इस रिपोर्ट में तफ्सील के माध्यम से बताएंगे।
सबसे पहले शुरू करते हैं कि आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं। ईरानी सरकार के तानाशाही के खिलाफ ईरान में बड़ी संख्या में महिलाओं ने बिना हिजाब के सड़कों पर प्रदर्शन किया और विरोध में हिजाब को आग के हवाले किया। इससे पहले अफगानिस्तान में महिलाएं अपने शिक्षा और काम करने के अधिकार की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आईं थीं। अमेरिका के कुछ हिस्से ये सुनिश्चित करने के लिए कानून बना रहे हैं कि महिलाओं का अब कानूनन गर्भपात नहीं हो सकता है। य़े मामले पितृसत्तात्मक विचारों के उभरने और उसके खिलाफ बुलंद होते आवाज की गवाही देते हैं। पितृसत्ता, दुनिया के कुछ हिस्सों में कुछ हद तक टने के बाद, वापस आ गई है। अफगानिस्तान में तालिबान शासन में एक बार फिर सड़कों पर महिलाओं के निकलने से लेकर सख्त ड्रेस कोड लागू करने की घोषणा कर दी। इससे हमें पुराने जमाने की तरफ लौटने का एक भयानक एहसास होता है। लेकिन हमारे समाज में पितृसत्ता कब से हावी है?
पुरुष संपत्ति
प्रजनन विकास का आधार है। लेकिन इससे केवल हमारे शरीर और दिमाग ही नहीं विकसित होते हैं - ये हमारे व्यवहार और हमारी संस्कृतियां के विकास से भी जुड़ा है। उदाहरण के लिए, अपनी प्रजनन सफलता को अधिकतम करने के लिए, पुरुषों ने अक्सर महिलाओं और उनकी कामुकता को नियंत्रित करने की कोशिश की है। खानाबदोश समाजों में जहां बहुत कम या कोई भौतिक धन नहीं है, जैसा कि अधिकांश शिकारी संग्रहकर्ताओं के मामले में था, एक महिला को आसानी से साझेदारी में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता था। महिला और उसका साथी अपने रिश्तेदारों, या अन्य लोगों के साथ रह सकते थे। अगर नहीं रहना चाहते तो वह दूर जा सकते थे। यह एक कीमत पर हो सकता था अगर उसके बच्चे हैं, तो अलग रहना मुश्किल होता। क्योंकि पैतृक देखभाल बच्चों के विकास और यहां तक कि जीवित रहने में मदद करती थी। लेकिन महिला कहीं और जा सकती थी और रिश्तेदारों के साथ रह सकती थी या एक नया साथी ढूंढ सकती थी। कुछ क्षेत्रों में 12,000 साल पहले कृषि की उत्पत्ति ने खेल को बदल दिया। यहां तक कि अपेक्षाकृत सरल बागवानी के लिए भी फसलों की रक्षा करना आवश्यक हो गया और इस प्रकार एक जगह टिकना भी जरूरी हो गया। उदाहरण के लिए वेनेज़ुएला में यानोमामो बागवानी विशेषज्ञ किलानुमा समूह के घरों में रहते थे। पड़ोसी समूहों पर हिंसक हमले और यहां तक की उनकी महिलाओँ को उठाकर ले जाना भी उनकी जीवन का हिस्सा था।
जहां मवेशी-पालन विकसित हुआ, स्थानीय आबादी को पशुओं के झुंडों को दूसरे समूहों से बचाना पड़ा, जिससे उच्च स्तर का युद्ध हुआ। चूंकि महिलाएं युद्ध में पुरुषों की तरह सफल नहीं थीं, शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण, यह भूमिका पुरुषों ने संभाली, जिससे उन्हें सत्ता हासिल करने में मदद मिली और उन्हें उन संसाधनों का प्रभारी बना दिया गया जिनका वे बचाव कर रहे थे। जैसे-जैसे जनसंख्या का आकार बढ़ता गया और बसता गया, समन्वय की समस्याएं उत्पन्न हुईं। सामाजिक असमानता कभी-कभी उभरने लगी। संसाधनों पर आधिपत्य़ जमाए लोग (आमतौर पर पुरुष) ने आबादी को कुछ लाभ प्रदान कर अपनी तरफ मिला लिया। सामान्य आबादी, पुरुष और महिला इसलिए इन कुलीनों को बर्दाश्त करने लगे ताकि उनके पास जो कुछ भी था वो उनके चीन न ले। जैसे-जैसे खेती और पशुपालन अधिक गहन होता गया, भौतिक संपदा, जो अब मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा नियंत्रित होती थी और अधिक महत्वपूर्ण हो गई। धन को लेकर परिवारों के बीच संघर्ष को रोकने के लिए नातेदारी और वंश व्यवस्था के नियम अधिक औपचारिक हो गए, और विवाह अधिक संविदात्मक (कॉन्ट्रैक्ट) हो गए। पीढ़ियों से भूमि या पशुधन के संचरण ने कुछ परिवारों को धनवान बना दिया।
मोनोगैमी बनाम बहुविवाह
खेती और पशुपालन से उत्पन्न धन बहुपत्नी प्रथा (एकाधिक पत्नियों वाले पुरुष) को जन्म दिया। इसके विपरीत, कई पति (बहुपतित्व) वाली महिलाएं दुर्लभ थीं। अधिकांश प्रणालियों में लड़कियों को पैदा करना उनके अधिक महत्व रखता था। जिसके पीछे की वजह उनके पास बच्चा पैदा करने की क्षमता का होना ता।ष आमतौर पर वो माता-पिता की देखभाल भी अधिक अच्छी तरह करती थी। पुरुषों ने अपने धन का उपयोग लड़कियों को संसाधनों का लालच देकर आकर्षित करने के लिए किया। पुरुषों ने दुल्हन के परिवार को धन देकर उन्हें अपनी पत्नी बनाया। जिसके परिणामस्वरूप अमीर पुरुष कई पत्नियों के साथ रहने लगे, जबकि कुछ गरीब पुरुष अकेले हो गए। तो यह पुरुष थे जिन्हें विवाह भागीदारों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए उस धन की आवश्यकता थी (जबकि महिलाओं ने अपने पति के माध्यम से प्रजनन के लिए आवश्यक संसाधनों का अधिग्रहण किया)। यदि माता-पिता अपने पोते-पोतियों की संख्या को अधिकतम करना चाहते थे, तो उनके लिए यह समझदारी थी कि वे अपनी संपत्ति अपनी बेटियों के बजाय अपने बेटों को दें। इससे धन और संपत्ति औपचारिक रूप से पुरुषों के पास चली गई। इसका मतलब यह भी था कि शादी के बाद महिलाएं अक्सर अपने पति के परिवार के साथ घर से दूर रहने लगीं। ऐसे में महिलाओं ने शक्तियां खोना शुरू कर दिया। यदि भूमि, पशुधन और बच्चे पुरुषों की संपत्ति हैं, तो महिलाओं के लिए तलाक लगभग असंभव था। महिलाएं अपने खिलाफ लैंगिंग पूर्वाग्रह को झेल रही थीं। वर्तमान संदर्भ में गर्भपात पर प्रतिबंध यौन संबंधों को संभावित रूप से मुश्किल बनाता है। लोगों को विवाह के नाम पर फंसाता है और महिलाओं के करियर की संभावनाओं में बाधा डालता है।
मातृसत्तात्मक समाज
धन का स्त्री के पक्ष में प्रवाहित होना अपेक्षाकृत दुर्लभ था, लेकिन ऐसे समाज मौजूद थे। ये महिला-केंद्रित प्रणालियां कुछ हद तक सीमांत वातावरण में होती थीं। जहाँ शारीरिक रूप से प्रतिस्पर्धा करने के लिए बहुत कम धन होता था। उदाहरण के लिए अफ्रीका में ऐसे क्षेत्र हैं जहांमातृवंशीय प्रणालियों में समान्य तौर पर महिलाओं के पास अधिक शक्ति होती है। लंबी दूरी की यात्रा या उच्च मृत्यु दर की वजह से पुरुणों की संख्या कम हो गई। पोलिनेशिया में खतरनाक समुद्र में मछली पकड़ने की वजह से या फिर मूल अमेरिकी समुदायों में युद्ध की वजह से मातृसत्ता को बढ़ावा मिला।
मातृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाएं बच्चों की परवरिश में मदद करने के लिए अक्सर अपने पति के बजाय अपनी मां और भाई-बहनों का सहारा लेती हैं। महिलाओं द्वारा इस तरह के "सांप्रदायिक प्रजनन", जैसा कि चीन में कुछ मातृवंशीय समूहों में उदाहरण के लिए देखा जाता है, पुरुषों को घर में निवेश करने में कम दिलचस्पी (एक विकासवादी अर्थ में) होती है, क्योंकि परिवारों में न केवल उनकी पत्नी के बच्चे शामिल हैं, बल्कि कई अन्य महिलाओं के बच्चे भी शामिल हैं। जिनसे वे संबंधित नहीं हैं। यह शादी के बंधन को कमजोर करता है और महिला रिश्तेदारों के बीच धन के हस्तांतरण को आसान बनाता है। ऐसे समाजों में महिलाओं को यौन रूप से कम नियंत्रित किया जाता है क्योंकि यदि महिलाएं धन को नियंत्रित करती हैं और अपनी बेटियों को देती हैं तो पितृत्व निश्चितता चिंता का विषय नहीं है।
मातृवंशीय समाजों में, पुरुष और महिला दोनों बहुविवाह कर सकते हैं। दक्षिणी अफ्रीका के मातृवंशीय हिम्बा में इस तरह से पैदा होने वाले शिशुओं की दर सबसे अधिक है। आज भी शहरी परिवेश में, उच्च पुरुष बेरोजगारी अक्सर अधिक महिला केंद्रित रहने की व्यवस्था स्थापित करती है, जिसमें माताएं बेटियों को अपने बच्चों और पोते-पोतियों को पालने में मदद करती हैं, लेकिन अक्सर सापेक्ष गरीबी में। लेकिन भौतिक धन की शुरूआत, जिसे पुरुषों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, ने अक्सर मातृवंशीय व्यवस्थाओं को पितृवंशीय व्यवस्था में बदलने के लिए प्रेरित किया है। पितृसत्ता अपरिहार्य नहीं है। हमें दुनिया की समस्याओं को हल करने में मदद करने के लिए संस्थाओं की जरूरत है। लेकिन अगर गलत लोग सत्ता में आते हैं, तो पितृसत्ता फिर से पैदा हो सकती है। -अभिनय आकाश
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