साल 2022 में भारत की अर्थव्यवस्था ने औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है। इस साल अप्रैल में 1.68 लाख करोड़ रुपए के साथ जीएसटी कलेक्शन रिकॉर्ड स्तर पर रहा तो वहीं एक दिसंबर को सेंसेक्स और निफ्टी ऑल टाइम हार्ड का रिकॉर्ड कायम किया। वहीं क्रिप्टोकरेंसी को लेकर आरबीआई ने आगाह किया तो एफटीएक्स के सीईओ कंगाल हो गए। ऐसे में जानते हैं कि नए साल पर कैसी होगी इकोनॉमी की चाल। 2023 में निवेशकों को किन बातों का रखना चाहिए ख्याल।
2022 में वैश्विक अर्थव्यवस्था और बाजार रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, मुद्रास्फीति में वृद्धि और ब्याज दरों में तेज वृद्धि से प्रभावित रहे तो वहीं वर्ष का समापन आने वाले वक्त में कोविड मामले की संभावित वृद्धि की संभावनाओं पर हो रहा है। 2020 और 2021 में आजीविका और अर्थव्यवस्था पर कोविड के प्रभाव का असर अभी भी हर किसी के दिमाग में ताजा है। चीन में बढ़ते मामलों और भारत सहित अन्य देशों में संभावित प्रसार पर चिंता ने बाजार की भावनाओं को कुछ हद तक कम कर दिया है। जबकि बाजार खुदरा मुद्रास्फीति और विकास आशावाद में नरमी के साथ बेंचमार्क सेंसेक्स नए मील के पत्थर सेट के लिए तैयार दिख रहे थे और 1 दिसंबर को 63,583 के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया, तब से कोविड की चिंताओं के बाद यह लगभग 4 प्रतिशत नीचे गया है और 29 दिसंबर को 61,133.88 पर बंद हुए। बाजार विशेषज्ञ इसे अलग नजर से देखते हैं। हालांकि, इससे परे प्रकाश देखते हैं और निजी क्षेत्र के निवेश में जीविका, अर्थव्यवस्था के निचले छोर पर खपत में पुनरुद्धार, और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा धन के निरंतर प्रवाह पर अपनी उम्मीदें लगा रहे हैं, जो भारत को एक रणनीतिक गंतव्य के रूप में देखते हैं।
कोविड की टेंशन कितनी बड़ी है?
अज्ञात-अज्ञात से कोविड के वैरिएंट अब ज्ञात-अज्ञात हो गए है, इसलिए न तो अधिकारी और न ही लोग और न ही बाजार घबरा रहे हैं। हालाँकि, मामलों में वृद्धि के रूप में कुछ चिंताएँ प्रतिबंधों को जन्म दे सकती हैं जो अर्थव्यवस्था की चल रही पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया में देरी कर सकती हैं। पिछले तीन हफ्तों में बाजारों ने यही प्रतिक्रिया दी है। हालाँकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और सरकार द्वारा जनवरी में मामलों में संभावित वृद्धि की भविष्यवाणी के कारण चिंता है, उनके आकलन से कुछ राहत है कि भारत में बड़े पैमाने पर अस्पताल में भर्ती और मौतें नहीं होंगी।
2023 में कौन से कारक बाजारों को आकार देंगे?
अर्थव्यवस्था और बाजारों के अच्छा प्रदर्शन करने के लिए कुछ प्रमुख बुनियादी बातें हैं जिन्हें वापस पटरी पर लाने की आवश्यकता है। उनमें से मुद्रास्फीति, व्यापार घाटा, खपत में पुनरुद्धार और निजी क्षेत्र के निवेश की निरंतरता मुख्य हैं। हालांकि मुद्रास्फीति अभी भी एक चिंता का विषय बनी हुई है क्योंकि यह अभी भी आरबीआई की 6 प्रतिशत की सहिष्णुता सीमा के ऊपरी हिस्से के आसपास है और अर्थशास्त्रियों को लगता है कि केंद्रीय बैंक एक या दो और दरों में बढ़ोतरी कर सकता है, इससे पहले कि इसमें स्थिरता आए। अन्य कारक जो कई लोग महसूस करते हैं कि भारतीयों को ध्यान रखने की आवश्यकता है, बढ़ते आयात और निर्यात में वृद्धि के कारण इसका उच्च व्यापार घाटा है। अप्रैल-नवंबर 2022 के दौरान, आयात 29.5 प्रतिशत बढ़कर 493.61 अरब डॉलर हो गया, जबकि इसी अवधि में निर्यात 11 प्रतिशत बढ़कर 295 अरब डॉलर हो गया। नतीजतन, अप्रैल-नवंबर 2022 के लिए व्यापारिक व्यापार घाटा अप्रैल-नवंबर 2021 में 115.39 अरब डॉलर के मुकाबले बढ़कर 198.35 अरब डॉलर हो गया है। इससे रुपये पर दबाव पड़ सकता है।
2023 में क्या हैं विकल्प?
आगे बढ़ते हुए केंद्र द्वारा कैपेक्स की दिशा में त्वरित धक्का, निजी निवेश में अपेक्षित पुनरुद्धार, और बढ़ती मुद्रास्फीति, निफ्टी आय मजबूत रहने और वित्त वर्ष 22-24 के दौरान 17 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ने की उम्मीद है। सेंसेक्स, जिसने 2022 में 3.29 प्रतिशत की बढ़त हासिल की थी, बाजार को टेंटरहूक पर रखते हुए अस्थिरता के मुकाबलों के साथ अपनी आगे की गति जारी रखने की उम्मीद है।
ऐसी रही शेयर बाजार की चाल
घरेलू शेयर बाजार में इस साल दिसंबर में आल टाइम हाई का रिकॉर्ड बना। लेकिन इसके बाद से सेंसेक्स और निफ्टी दोनों इंडेक्स में जबरदस्त गिरावट आई है। सेंसेक्स जहां 60 हजार से नीचे चला गया वहीं निफ्टी 18 हजार से नीचे फिसल गया। देखना दिलचस्प होगा कि नए साल में इंडेक्स कब तक ऑल टाइम हाई पर पहुंचता है।
रिएल एस्टेट में बनी रह सकती है मांग
कोविड महामारी के कमजोर पड़ने पर इकॉनमिक गतिविधियों ने ल पकड़ ली और इसका पॉजिटिव असर रिएल एस्टेट पर भी पड़ा। नए घरों की बिक्री ने शानदार प्रदर्शन किया है। जानकारों की राय है घरों की बिक्री का ये सिलसिला अगले साल भी जारी रहेगा।
सोने की चमक फीकी या रहेगी बरकरा
इसस साल बढ़ती महंगाई और शेयर बाजार के औसत से कमजोर प्रदर्शन के बीच सोने ने अपनी भरपूर चमक बिखेरी। सोने की मांग से इस साल 14 प्रतिशत की बढोतरी नजर आई। जानकार नए साल में इसकी कीमत रिकॉर्ड स्तर पर जाने की बात कर रहे हैं।
महंगाई होगी कंट्रोल
महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने मई से ही रेपो रेट में बढ़ोतरी की शुरुआत कर दी। वहीं मंदी पर विश्व बैंक, आईएमएफ और भारत में वित्त मंत्रालय के साथ ही आरबीआई ने कहा है कि ग्लोबल मंदी का भारत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
क्रिप्टोकरंसी का क्या होगा?
पिछले कुछ सालों में क्रिप्टोकरेंसी ने बड़ी तेजी से लोकप्रियता हासिल की है। लेकिन इसने लोगों को जितनी तेजी से मालामातल किया है। उतनी ही तेजी से कंगाल भी किया है। इस साल एफटीएक्स जैसे प्लेटफॉर्म के ढहने से तो क्रिप्टो के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग गया। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने तो यहां तत कहा है कि अगला वित्तीय संकट क्रिप्टो की वजह से आएगा। -अभिनय आकाश
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