लेफ्ट, राइट, सेंटर… नए राष्ट्रपति बने वामपंथी लूला, ब्राजील में क्यों जताई जा रही ट्रंप वाले कांड की आशंका?
2018 में उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध था क्योंकि उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया। लेकिन ठीक चार साल बाद अपने भाषण में उस व्यक्ति ने कहा कि आज एकमात्र विजेता ब्राजील के लोग हैं। ये मेरी या वकर्स पार्टी की जीत नहीं है। न ही उन पार्टियों की जो अभियान में मेरा समर्थन किया। राजनीति दलों, व्यक्तिगत हितों या विचारधारा से ऊपर उठ चुके लोकतांत्रिक आंदोलन की जीत है। ये लोकतंत्र के विजय होने का प्रतीक है। उपरोक्त शब्द वामपंथी वकर्स पार्टी के उम्मीदवार और ब्राजील के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा के है। जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंवदी ब्राजील के निर्वतमान और फ्रायर ब्रांड राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को कड़े चुनाव में हरा दिया। 580 दिनों तक जेल में बिताने के बाद राजनीति में वापसी करने वाले लूला की ये जीत कई मायनों में ऐतिहासिक है। आज आपको बताते हैं कि लूला डी सिल्वा ने ब्राजील का राष्ट्रपति चुनाव कैसे जीता। उनकी जीत के मायने क्या हैं और बोल्सोनारो अपने पीछे कैसी विरासत छोड़कर जाने वाले हैं।
ब्राजील के बारे में जानें
ब्राजील साउथ अमेरिका का सबसे बड़ा देश है। समूचे महाद्वीप की लगभग आधी जमीन ब्राजील की सीमा में आती है। पूरी धरती की बात करे तो ब्राजील क्षेत्रफल में 5वें और आबादी में छठे नंबर का देश है। साउथ अमेरिका में कुल 12 देश हैं। इनमें से चिली और एक्वाडोर ही ऐसे देश हैं जिनकी सीमा ब्राजील से नहीं लगती है। ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया है। सबसे बड़ा शहर साओ पाउलो है। रीयो डी जेनरो शहर भी सुर्खियों में रहता है जहां साल 2016 में ओलपंकि खेलों का आयोजन हुआ था। अमेजन के वर्षावनों का 60 प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में ही है। इसके अलावा ब्राजील यूनाइटेड नेशन, जी 20, ब्रिक्स जैसे ताकतवर अंतरराष्ट्रीय संगठनों का संस्थापक सदस्य भी रहा है।
कौन हैं लूला डा सिल्वा
ब्राजील में अभी-अभी हुए चुनाव में एक बड़ा फेरबदल देखने को मिला जिसमें लूला डा सिल्वा ब्राजील के नए राष्ट्रपति चुने गए । आम चुनाव में कुल पड़े 98.8 प्रतिशत मतों में डि सिल्वा को 50.8 प्रतिशत मत मिले। जबकि बोल्सोनारो को 49य 1 प्रतिशत वोट मिले। लूजा 1 जनवरी 2023 को पद संभालेंगे। तब तक बोल्सोनारो कार्यवाहक राष्ट्रपति बने रहेंगे। लूला 2003 से 2010 तक भी ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं। ब्राजील में राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 साल का होता है। पिछला चुनाव 2018 में हुआ था। लेकिन 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में लिप्त होने के कारण लूला आम चुनाव नहीं लड़ पाए थे। जिस कारण दक्षिणपंथी विचारधारा के बोल्सोनारो राष्ट्रपति बन गए थे। लूला ने पहली बार 1989 में चुनाव लड़ा था। इसके पहले 77 साल के सिल्वा 2003 से 2010 के बीच दो बार राष्ट्रपति चुने गए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी सिल्वा को बधाई दी है।
कैसे जीता चुनाव
ब्राजीली अर्थव्यवस्था की कमजोरी कोरोना महामारी, पूरी तरह ढह चुके देश के स्वास्थ्य ढांचे और अमेजन के जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण जनता बोल्सोनारो से नाराज थी। कोरोना के कारण ब्राजील में तकरीबन 6 लाख 80 हजार लोगों की मृत्यु हुई। उन सब मुद्दों पर लूला ने एक देश व्यापी मुहिम छेड़ी और इससे उन्हें ब्राजील की मूल जनजातियों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। जिसके बाद लूला ने राष्ट्रपति के चुनाव में बोल्सोनारो को मात दी। अप्रैल 2021 में कोर्ट ने लूला की सजा रद्द कर दी। इसके बाद उन्होंने राजनीति में लौटने का फैसला किया। 2022 में उन्होंने चुनाव लड़ने की आधिकारिक घोषणा की। ब्राजील में कोई भी व्यक्ति निर्दलीय राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ सकता। दावेदारी पेश करने के लिए रजिस्ट्रर्ड पार्टी की तरफ से नामिनेट किया जाना जरूरी है। फिलहाल ब्राजील में दो अहम पार्टियां हैं। बोल्सोनारो की पार्टी का नाम लिबरल पार्टी है, जबकी लूला डि सल्वा वकर्स पार्टी के हैं। ब्राजील में सीधे जनता राष्ट्रपति के लिए वोट डालती है। वहां 1996 से चुनाव में ईवीएम का चुनाव हो रहा है। राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट की जरूरत होती है।
ट्रंप वाले कांड की आशंका क्यों?
ट्रॉपिकल ट्रंप' नाम से प्रसिद्ध बोल्सोनारो इतनी आसानी से हार स्वीकार करने को तैयार नहीं है। वे पहले ही कह चुके हैं कि सिर्फ चुनावी धांधली के कारण चुनाव हारेंगे और हारे भी तो अपना पद नहीं छोड़ेंगे। अंतरराष्ट्रीय राजनीति की समझ रखने वाले विशेषज्ञों के द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है कि जैसा एक खेल अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के बाद व्हाइट हाउस पर देखने को मिला था। ऐसा ही कुछ ब्राजील में भी देखने को मिल सकता है।
लेफ्ट राइट सेंटर
भारत में साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई। साल 2017 में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार बनी थी। लेकिन जब जायर बोल्सोनारो ब्राजील के राष्ट्रपति बने तो कहा गया कि दुनिया दक्षिणपंथी पार्टियों के दबदबे की ओर बढ़ रही है। पहले अमेरिका में इसी साल बड़ा परिवर्तन जो बाइडेन के रूप में देखने को मिला और अब ब्राजील में उलटफेर हुआ है।
भारत और ब्राजील के संबंध
भारत गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में लूला की मेजबानी कर चुका है। भारत ने बोलसोनारो के साथ भी अच्छी बॉन्डिंग बनाई थी। महामारी के दौरान ब्राजील क्वॉड-प्लस का हिस्सा था, जिसमें दक्षिण कोरिया और इजरायल भी शामिल थे। एक दशक पहले भारत और ब्राजील ने रूस और चीन के बगैर IBSA (भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका) ग्रुप बनाया था।
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