अर्थव्यवस्था को गति देने में अहम भूमिका निभाता है भारत में त्यौहारों का मौसम भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का विशेष महत्व है एवं भारतीय नागरिक इन त्यौहारों को बहुत ही श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाते है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, होली, ओणम, रामनवमी, महाशिवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, आदि त्यौहारों को भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में गिना जाता है। कुछ त्यौहारों, जैसे दीपावली, के तो एक दो माह पूर्व ही सभी परिवारों द्वारा इसे मनाने की तैयारियां प्रारम्भ कर दी जाती हैं। उक्त त्यौहार अक्सर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी लाते हैं क्योंकि देश के सभी नागरिक मिलकर इन त्यौहारों के शुभ अवसर पर वस्तुओं की खूब खरीदारी करते हैं जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। इन त्यौहारों के दौरान देश में एक से लेकर दो लाख करोड़ रुपए के बीच खुदरा व्यापार सम्पन्न होता है जो पूरे वर्ष के दौरान होने वाले खुदरा व्यापार का एक बहुत बढ़ा हिस्सा रहता है। त्यौहारों के खंडकाल में रोजगार के नए लाखों अवसर निर्मित होते हैं और नौकरियों की तो जैसे बहार ही आ जाती है। सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर ई-कॉमर्स तक, खुदरा व्यापार से लेकर थोक व्यापार तक, विनिर्माण इकाईयों से लेकर सेवा क्षेत्र तक- विशेष रूप से पर्यटन, होटेल एवं परिवहन आदि, लगभग सभी क्षेत्रों में न केवल व्यापार में अतुलनीय वृद्धि दर्ज होती है बल्कि रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं। भारत में पिछले 5/6 माह से लगातार वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण 140,000 करोड़ रुपए के आसपास बना हुआ है परंतु अब अक्टूबर 2022 माह में इसके 150,000 करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर जाने की उम्मीद की जा रही है क्योंकि दशहरा एवं दीपावली जैसे त्यौहार इस माह में आने वाले हैं। त्यौहारों के मौसम में न केवल टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, कपड़े, सोना, चांदी से निर्मित कीमती आभूषणों की खरीद बढ़ती है बल्कि दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों के साथ साथ कई नागरिक नए मकान एवं फ़्लैट खरीदना भी शुभ मानते हैं। कुल मिलाकर चारों ओर लगभग सभी क्षेत्रों में उत्साह भरा माहौल रहता है एवं सभी लोग कुछ न कुछ खरीदते ही नजर आते हैं। हालांकि इन त्यौहारों का आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व तो बना ही रहता है।इसे भी पढ़ें: मोदी सरकार की नीतियों की बदौलत कृषि क्षेत्र में तेजी से बढ़े हैं रोजगार के अवसरभारत के बारे में यदि यह कहा जाये कि यहां एक तरह से संस्कृति की अर्थव्यवस्था ही चल पड़ी है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा। वैसे भी पिछले हजारों सालों से भारत की संस्कृति सम्पन्न रही है और देश की संस्कृति जो इसका प्राण है, को मूल में रखकर यदि आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया जाएगा तो यह देश हित का कार्य होगा। अतः भारत की जो अस्मिता, उसकी पहिचान है उसे साथ लेकर आगे बढ़ने में ही देश का भला होगा। उदाहरण के तौर पर हमारे देश में उक्त वर्णित कुछ बड़े त्योहारों को ही ले लीजिए, ये भी सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं। इन्हें कैसे व्यवस्थित किया जा सकता है ताकि देश के नागरिकों में इन त्योहारों के प्रति उत्साह में और भी बढ़ोतरी हो और इन त्योहारों को मनाने का पैमाना बढ़ाया जा सके और इन त्योहारों पर विदेशी पर्यटकों को भी देश में आकर्षित किया जा सके, इसके बारे में आज विचार किए जाने की आवश्यकता है।
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