उत्तराखंड का जोशीमठ जिसे बद्रीनाथ धाम का द्वार माना जाता है। वहां रहने वाले लोगों के पैरों तले जमीन खिसक रही है। वहां के घरों, होटलों और सड़कों पर खतरनाक दरारे पड़ रही है। कई जगहों पर धंसने की वजह से जमीन से पानी निकल रहा है। इन दरारों की वजह से लोगों को अपने घर तक छोड़कर जाना पड़ रहा है। होटलों में रुकने तक पर रोक लगा दी गई है और एशिया की सबसे बड़ी रोपवे भी पर्यटकों के लिए बंद कर दी गई है। क्योंकि उसमें भी अब दरारे पड़ गई है। डरे-घबराए लोगों ने अब सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया है। उत्तराखंड की धार्मिक नगरी जोशीमठ में तेजी से हो रहे भू धंसाव की वजह से लोगों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। स्थानीय लोगों ने जिलाधिकारी को वीडियो संदेश भेजकर जोशीमठ में ही कैंप करने की मांग की है। जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय भी कहा जाता है। यह शहर ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 7) पर स्थित है।
पूरा जोशीमठ चपेट में आया
जोशी मठ के छावनी बाजार से शुरू हुई ये घटनाएं अब पूरे इलाके को अपने आगोश में लेती दिख रही है। लोगों ने घर ढहने के डर से लिंटर को रोकने के लिए बल्लियां लगाकर वचाव का इंतजाम करना शुरू किया है। कई लोग अपने घरों को ही छोड़कर पलायन को मजबूर हो गए हैं। घर ही नहीं, सड़कें भी धंस रही हैं। कई जगह सड़कों में गड्ढे हो रहे हैं। बदरीनाथ हाइवे पर भी दरारें दिख रही हैं। लोग पत्थर मिट्टी डालकर इन दरारों को पाटते रहे, लेकिन दरारें और चौड़ी होती रहीं। अब भयावह धरती फट जाने जैसी हो गई।
निर्माण और जनसंख्या का बोझ भी वजह
निर्माण कार्य और जनसंख्या के बढ़ते बोझ, बरसात, ग्लेशियर या सीवेज के पानी से मिट्टी को नर्म बना देने से चट्टानों का हिल जाना, शहर में ड्रेनेज सिस्टम का अभाव भी जोशीमठ का धंसाव का कारण है। जंगल को वेरहमी से तबाह करना भी इसका कारण माना था। करीब 6,000 मीटर की ऊंचाई पर बसे जोशीमठ की चोटियां मौसम के हमलों के लिए खुली हैं। बड़े पत्थरों को रोकने के लिए पेड़ों की कमी से भूस्खलन को रोकना चुनौती बन जाती है। रिपोर्ट में निर्माण रोकने समेत सड़क मरम्मत और पत्थरों को खोदकर या ब्लास्ट कर न हटाने की ताकीद की गई थी।
क्या थी मिश्रा समिति की रिपोर्ट?
साल 2021 के फरवरी में ग्लेशियर टूटने के बाद मार्च से दरारें दिखनी शुरू हुई। उसके बाद ये दरारें बड़ी होने लगीं। जोशीमठ का धंसना नई बात नहीं है। साल 1976 की मिश्रा कमिटी रिपोर्ट में शहर के धंसने का जिक्र है। यूपी राज्य में रहने के दौरान बढ़ती जनसंख्या और भवनों के बढ़ते निर्माण के दौरान 70 के दशक में भी लोगों ने भूस्खलन की शिकायत की थी। इसके बाद मिश्रा कमिटी बनी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र में स्थित है। यह शहर पहाड़ से टूटे बड़े टुकड़ों और मिट्टी के अस्थिर ढेर पर बसा है।
जोशीमठ में दरकते पहाड़
वार्ड का नाम | कितने मकानों में दरार |
गांधीनगर | 127 |
मारवाडी | 28 |
लोअर बाजार | 24 |
सिंहधार | 52 |
मनोहर बाग | 71 |
अपर बाजार | 29 |
सुनील | 27 |
परसारी | 50 |
रविग्राम | 153 |
जोशीमठ पर खतरे का क्या होगा असर
भारत के सीमावर्ती क्षेत्र बाड़ाहोती में चीनी सैनिकों की ओर से घुसपैठ की कई घटनाएं होती रही हैं। चीनी सैनिकों ने यहां 2022 में घुसपैठ कर एक पुल को भी तोड़ दिया था। 2021 में बाड़ाहोती में चीन के करीब 100 सैनिकों ने बॉर्डर क्रॉस किया था। इतना ही नहीं 2014-18 तक करीब 10 बार चीन सीमा पर घुसपैठ कर चुका है। आईटीबीपी की तैनाती के चलते चीन अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सका। जोशीमठ के ही पास औली में उच्च अक्षांशीय प्रशिक्षण संस्थान देश भर के सैनिकों को प्रशिक्षण देता है। साल 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद से जोशीमठ में भारतीय सेना का बिग्रेड मुख्यालय और भारत तिब्बत सीमा पुलिस की एक बटालियन तैनात है।
तकनीकी विशेषज्ञों की टीम पहुंची जोशीमठ
स्थानीय लोगों के कई दिनों के विरोध के बाद, उत्तराखंड सरकार ने 5 जनवरी को जोशीमठ में परिवारों को खाली करना शुरू कर दिया, जहां गहरी दरारें आने के बाद सैकड़ों घरों के गिरने का खतरा है। जिला अधिकारियों द्वारा बचाव और राहत अभियान चलाए गए और भूस्खलन के कारण जिन लोगों के घरों में दरारें पड़ गई हैं, उन्हें रैन बसेरों में स्थानांतरित कर दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार करीब 47 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। राज्य सरकार ने जोशीमठ के हिमालयी शहर में भूमि धंसने के कारणों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम का गठन किया है, जिसके परिणामस्वरूप इमारतों और सड़कों को काफी नुकसान पहुंचा है। लोगों में दहशत और भय के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जोशीमठ में स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है और वह स्थिति का आकलन करने के लिए वहां का दौरा करेंगे। -अभिनय आकाश
Who is responsible for the collapsing joshimath
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