Gyan Ganga: पूतना राक्षसी के मरते ही पूरे ब्रज में सुगंध क्यों फैल गयी थी?
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि— कंस के कहने पर पूतना बाल कृष्ण को मारने के लिए नन्द भवन में प्रवेश कर गई। पूतना को देखकर बालकृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए प्रभु ने अपने नेत्र क्यों बंद किए? इस विषय पर संतों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, जिसे हमने पिछले अंक में पढ़ा।
आइए ! अब आगे की कथा प्रसंग मे चलते हैं— जब पूतना ने नेत्र बंद किए हुए प्रभु को देखा तब समझी कि बालक सो रहा है।
श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं- परीक्षित, जैसे कोई साधारण रस्सी समझकर विषधर साँप को उठा लेता है वैसे ही पूतना ने साधारण शिशु समझकर परमात्मा को उठा लिया।
तस्मिन् स्तनं दुर्जरवीर्यमुल्बणं घोरांकमादाय शीशोर्ददावथ ।
गाढंकराभ्यां भगवान् प्रपीड्य तत प्राणे: समं रोष समन्वितोsपिवत॥
जैसे ही अपना स्तन प्रभु के मुंह में दिया वैसे ही भगवान ने सबसे पहले उसका विष पिया फिर दूध पिया जब विष और दूध दोनों समाप्त हो गए तब उसके प्राणों को ही पीना प्रारम्भ कर दिया। प्राण खींचने से उसके मर्म स्थलों में भयंकर वेदना होने लगी। जब पूतना के प्राण निकलने लगे तब भीषण चीत्कार करके चिल्लाई।
सा मुंच मुंचालमिति प्रभाषिणि निष्पीड्यमानाखिलजीवमर्मणि
अरे, बेटा ! छोड़ दे। भगवान बोले- मौसी जी अब तो छोड़ूंगा नहीं। मैं जल्दी किसी को पकड़ता नहीं और पकड़ता हूँ तो छोड़ता नहीं। अब पूतना गोविंद को गोद में लिए भागी। ज्यों ही प्रभु ने उसके सम्पूर्ण प्राणों को हरण कर लिया त्यों ही उसने विकराल शरीर बनाया और धड़ाम से धरती पर गिरी। पूतना के गिरते ही धरती हिल गई। दशों दिशाएँ काँप उठीं। छह कोस की दूरी तक जितने घर मकान पेड़-पौधे थे, सब गिरकर चकनाचूर हो गए।
पतमानोपि तद्देहत्रिगव्युत्यंतरद्रुमान, चूर्णयामास राजेन्द्र महदासीत तद्भुतम।
गव्यूति कहते हैं दो कोश को त्रिगव्युति मतलब छह कोस। भयंकर आवाज से मैया घबरा गईं। अरे इतनी तेज आवाज कहाँ से आई, मेरो लाला तो डर गयो होगो, देखी तो पालना सूना। चारों तरफ भगदड़ मच गई। गोप-गोपियाँ इधर-उधर भागे। थोड़ी दूर पर देखा तो पूतना का विशाल शरीर जमीन पर गिरा पड़ा है और प्रभु उसके उदर पर बैठकर क्रीडा कर रहे हैं। जैसे-तैसे लोगों ने कृष्ण को पूतना के उदर से नीचे उतारा और माँ यशोदा की गोदी में लाकर दिया। मैया ने जब दूध पिलाया तब सांस में सांस आई। यशोदा सोचने लगी, आंखिर ! ये सब कैसे हुआ? मेरा लाल पूतना के पास कैसे पहुँच गया? पूतना कैसे मर गई? सभी अपनी अपनी बुद्धि लगाने लगे। मैया कान्हा को लेकर घर आई, सबसे पहले गैया के गोबर और गोमूत्र में स्नान कराया। फिर गैया के चरण रज गो धूलि पूरे शरीर में लगाई।
गोमूत्रेण स्नापयित्वा पुनर्गोरजसार्भकम्
लाला पर जब कोई संकट पड़े, तब सबसे पहले मैया पंचगव्य में स्नान कराती थी। शास्त्रों का कथन है कि-- गो माता के पंचगव्य में अपार शक्ति है। छोटे बच्चों पर कोई अलाय-बलाय आवे तो पंचगव्य में स्नान कराके गैया की पूंछ से झाड़ा मार देना चाहिए।
उधर नन्दबाबा गोकुल में प्रवेश करते हैं। ग्वाले घेरकर कहने लगे आप तो चले गए मथुरा और यहाँ गज़ब हो गया। क्या हुआ भैया ! बाबा का जी घबरा गया। जल्दी बोल क्या हुआ। तेरे घर में पूतना घुस गई। कान्हा को लेकर भागी पर पता नहीं कैसे मर गई देखो वहाँ पड़ी है। पर तेरो लाला सुरक्षित है। पूतना मर गई? हाँ, देखो ! वहाँ पड़ी है। नंदबाबा बोले— अब मैं समझ गया वसुदेव एक नंबर का ज्योतिषी है। मथुरा में ही मुझसे कहा था- तू जल्दी गोकुल भाग। कछु संकट आयो है। वसुदेव की बात कितनी पक्की निकली। मैं आ भी नहीं पायो तब तक आफत आ गई। नारायण ने मेरे लाल की रक्षा की। एक ब्रजवासी बोले- बाबा पूतना मरी तो मरी लेकिन पुरो रास्तो ही जाम कर गई। ये पहाड़ जैसा शरीर कैसे फेंकेगे? बाबा ने कहा- इसके एक-एक योजन हाथ-पैर काटकर जितने पेड़ टूटे हैं सब इसके ऊपर रखकर आग लगा दो। फरसा कुल्हाड़ी लेकर सब आ गए। हाथ-पैर काटकर एक जगह इकट्ठे किए और आग लगा दी। जैसे ही आग लगाई— दहयमानस्य देहस्य धूमश्च गुरु सौरभ;
पूतना का देह जब दग्ध होने लगा तब ऐसी दिव्य सुगंध निकली कि पूरा ब्रजमंडल सुगंधित हो गया। परीक्षित को आश्चर्य हुआ, पूतना पापिनी के दग्ध शरीर से सुगंध कहाँ से महाराज ? शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित ! अब पूतना को पापिनी कौन कहेगा? साक्षात प्रभु ने जिसकी गोद में जाकर स्तन पान किया हो, वो भला अब पापिनी कहाने योग्य है? धन्य है, प्रभु की लीला। जिस पूतना में एक भी सद्गुण नहीं था उस पूतना का पूरा परिचय सुनो—
पुतान् नयति या सा पूतना जो बच्चो को ही उठाकर ले जाए। पूत मतलब पवित्र भी होता है। जिसमें पवित्रता थोड़ी भी न हो। नाम बुरा काम भी बुरा, शायद खानदान अच्छी हो, वो भी नहीं, राक्षस कुल में पैदा हुई। आहार क्या है, रुधिरासना रुधिर है असन जिसका रक्त पान करने वाली। शायद भगवान से प्रेम करती हो वो भी नहीं हमारे श्लोक में विद्यमान है।
पूतना लोकबालघ्नी राक्षसी रुधिरासना
जिंघासयापि हरये स्तनंदत्वाSSपिसद्गतिम॥
वह तो भगवान को मारने की दुर्भावना से आई थी।
शेष अगले प्रसंग में ---------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
-आरएन तिवारी
Why did the fragrance spread throughout braj as soon as the demon putana died